शादियों में रस्म रिवाज खाना फ़िज़ूल है, ये तो बस चमड़ी बेच कर झूठी शान दिखाने का नाटक है

शादी एक अज़ीम रिश्ता है ,ज़ात ए पाक़ की ख़लकीयत का बेहतरीन नमूना है अर्श ए आज़म से फ़र्श ए ज़मीन पर आने से लेकर फ़ना होजाने तक वालिदैन के बाद अगर कोई पाक़ रिश्ता होता है तो वो शादी का । पैदा होने से लेकर जवान होने तक मेरा बेटा ये बनेगा मेरा बेटा ये करेगा । बेटा अब तेरी शादी की उम्र होगयी है शादी कर ले । पैदाईश से लेकर खाक़ज़ाई तक इंसान के इर्दगिर्द शादी शब्द गूँजता रहता है । तब की शादियाँ और होती थी लड़का लड़की एक दूसरे को देखते नही थे काली, गोरी, मोटी ,लम्बी ,नाटी अमीर ग़रीब का रिवाज नही था । लड़का कमाता भी नही था फिर भी शादी के रिश्ते में बांध कर ज़िम्मेदारियों के हवाले कर दिया जाता था । बेलगाम घोड़े को राहे रास्त पर लाने का सबसे बढ़िया तरीक़ा शादी का रिश्ता ही था । नालायक़ से नालायक़ लड़का भी शादी के बाद सुधर जाता था । वो तब तक निभाता जब तक मौत उन्हें जुदा नही कर देती थी । इतना पाक़ रिश्ता था, होता भी क्यों नही जब रिश्ता अनजान हो एक दूसरे की कमी खूबी से वाक़िफ़ ना हो तो एक दूसरे को जानने समझने की दिलचस्पी ही अलग रहती है सालों लोग एक दूसरे का साथ हँसी खुशी से गुज़ार देते थे । पर अब ऐसा क्यों नही ह...