ये बुज़ुर्ग किसी अनमोल धरोहर से कम कम नही है इनका संरक्षण करें। बुज़ुर्गों के साथी बने

बहुत सारे रिश्ते हैं पर हर रिश्ते से परे दोस्ती का रिश्ता है। दोस्ती का रिश्ता क्यों ज़रूरी है ये उन बुज़ुर्गों से पूछो जिनके बच्चे जवान होकर किनारे होगए हैं। वो किसके साथ अपने दिल की बात करें किससे कहें अकेले वक़्त गुज़रना बहुत मुश्किल होता है। जवान है तो कई सारे दोस्ती के रंग देखेंगे बहुत सारे साथी मिलेंगे पर जैसे जैसे उम्र गुज़रती जाती है किसी ऐसे हंसी ठिठोली करने वाले साथी की ज़रूरत बढ़ती जाती है जो बिना कहे उसका दर्द, उसकी बीमारी उसकी परेशानी उसके हालात हो समझ ले। किसी का कोई कॉलेज का साथी होता है कोई साथ मे काम करने वाला कोई दूर का कोई आस पड़ोस का। बुज़ुर्गों के लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी आस पड़ोस के दोस्त होते हैं जिसके साथ वो वक़्त बिता सकें अपने दुख दर्द को साझा कर सकें बच्चे तो बुज़ुर्गों को बुढ़ा समझ कर नज़रअंदाज़ कर देते है। उनकी हर बात सुई की तरह चुभने लगती है आज के नौजवान और बच्चे तो तूनकमिज़ाज होते हैं उनसे कुछ कहोगे तो वो उल्टा आप पर ही चिल्लाने लगेंगे। इंसान अपनी बुज़ुर्गी में बिल्कुल बच्चे की तरह होजाता है अल्लाह ने क़ुरआन के सूरह यासीन में फ़रमाया "हम इंसान की उम्र को उसकी...