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Showing posts from May, 2023

करोड़ों पर भारी तरबीयत की सवारी (संस्कार) भाग-3

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करोड़ों पर भारी तरबीयत की सारी (संस्कार) भाग-2 इधर नरगिस के आने से साहिल के घर में रौनक आगयी थी। दोनों मिलकर इबादत करते ग़रीबो की मदद करते। साहिल बहुत पैसे वाला नही था लेकिन पढ़ा लिखा होशियार था।  उसके वालिद मग़रूर आलम साहब की किराने की दुकान थी।  अब्बू हम एक मेडिकल स्टोर खोलना चाहते हैं।  क्यों बेटा ? अब्बू मुझे मेडिकल की दुकान का अच्छा अनुभव है और उसे हम अच्छे से चला सकते हैं। ठीक है बेटा खोल लो तुम अपना मेडिकल, लेकिन पैसे इतने है नही। अब्बू उसकी फिक्र आप ना करे हम लोग लोन ले लेंगे। नरगिस ने भी अपनी पढ़ाई पूरी कर ली थी। बेटा नरगिस आप क्या करेंगी ? अब्बू अभी तो कुछ सोचा नही है। साहिल ने एक मेडिकल स्टोर खोल लिया था। इसी बीच रोशन के अब्बू के इंतेक़ाल की ख़बर आई।  बेटा हमे जनाज़े में शरीक़ होना होगा, अब्बु आप क्यों जाएंगे वो आपके लगते क्या थे ?  मशकूर आलम ने सारी दास्तां बयां कर दी।  बेटा वो तुम्हारे सगे चाचा है।  व्हाट, साहिल को जैसे शॉक्ड लगा हो।  अब्बू हमारे रिश्तेदार भी है, हाँ बेटा, वो हमारे सगे रिश्तेदार है लेकिन गुर्बत की वजह से उन्होंने क...

करोड़ों पर भारी तरबीयत की सवारी (संस्कार) भाग-2

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करोड़ों पर भारी तरबीयत की सवारी भाग-1 नरगिस पूरी रात बैचैन थी, सफ़ीना ने जब अपनी बच्ची को इस क़दर बैचैन देखा तो आकर उसके पास पूछा। नरगिस क्या बात है बेटा आज आप बहुत परेशान नज़र आरही है। नरगिस जो कि कभी झूठ नही बोलती थी लेकिन इस डर से की कहीं उसकी अम्मी उसे डांटे ना उसने झूठ बोल दिया कि उससे फीस का पैसा गिर गया है। जिसकी वजह से वो एग्जाम फीस जमा नही कर पाएगी। पहले तो उसकी अम्मी नाराज़ हुई लेकिन जब नरगिस के मासूम चेहरे को देखा तो फौरन उनका गुस्सा शांत होगया।  रो मत बेटा अल्लाह इंशाअल्लाह कोई सूरत ए हाल बना देगा उसपर भरोसा रखो। तुम तो जानती हो हमारे लिए पंद्रह हज़ार की रक़म बहुत बड़ी रक़म है।  तुम्हारे अब्बू एक मामूली टेलर हैं। और तुम जो मेहनत करके बच्चों को पढ़ाती हो उसी से घर का और तुम्हारी पढ़ाई का ख़र्च निकलता है। मेरी बहादुर बच्ची इस तरह रोते नही है, अल्लाह पर भरोसा रखो इंशाअल्लाह एक दिन सब ठीक होजाएगा।  नरगिस परेशान आख़िर वो कहाँ से इतनी जल्दी इतने पैसे लाएगी।  वो एक दवा की दुकान पर अपने अब्बू की दवा लेने जाती है, अक्सर ही वहाँ वो जाती है लेकिन उसे आज एक नया चेहरा ...

करोड़ों पर भारी तरबीयत की सवारी (संस्कार) भाग-1

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शहर का सबसे अमीर घराना था मग़रूर आलम का। मग़रूर साहब का एक ही एकलौता बेटा था ,रोशन और वो चाहते थे उसकी शादी किसी अच्छी लड़की से होजाए। मग़रूर साहब के एक भाई थे मशकूर आलम, दोनों भाइयों में बनती नही थी। मशकूर साहब गुर्बतज़दा तो मग़रूर साहब दौलत से हैरतज़दा थे। बेशुमार दौलत लेकिन भाई का उसमे कोई हक़ नही। शहर का दूसरा सबसे अमीर घराना था मैमुना बेग़म का, शौहर का नाम रफ़क़त अली था। रफ़क़त साहब कम पढ़े लिखे थे लेकिन मैमुना बेग़म एमबीए की हुई थी। दोनों की मोहब्बत की शादी थी जिनसे उन्हें एक औलाद थी ज़ीनत नाम की। ज़ीनत अपने बाप के घर की ज़ीनत थी। मैमुना ने गुर्बत में ज़िन्दगी गुज़ारी थी और अपने दम पर अमीर बनी थी, शौहर की एक छोटी सी नाश्ते पानी की दुकान को "ज़ीनत रेस्टॉरेंट" की पूरी चैन बनाने वाली औरत का नाम था मैमुना। मैमुना दो बहने थी, मैमुना और सफ़ीना, सफ़ीना सलीक़े की होशियार फरमाबरदार औरत थी। सफ़ीना ग़रीब ज़रूर थी लेकिन उन्होंने अपनी बच्ची नरगिस को " संस्कार " दिए थे। अब चूंकि दोनों की बच्चियां जवान होने लगी । क़िस्मत एक बार दोनों को फिर से मिलाने पर आमादा थी। जिस कॉलेज में मग़रूर आलम का ...