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Showing posts from May, 2021

श्री दहशत और जनाबे तबाही की एक ख़ास गुफ़्तगू

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बमरोधी दस्ता जैसे सूट बूट चार पाँच लोगों को अपनी तरफ आते देख कोने में पड़ा बम मुस्कुराने लगा मन ही मन सोचने लगा भौकाल टाइट है गुरु अपनी । हैं ये क्या ये साले किधर जा रहे हैं बम बुदबुदाते हुआ झुँझलाहट से कहने लगा अबे दहशत इधर पड़ी है तुम लोग किधर जा रहे हो। तभी देखा वो बमरोधी दस्ते जैसे दिखने वाले लोग किसी व्यक्ति को जल्दी से लेकर अंदर कमरे में लेकर भागते हैं उसके साथ ही अगल बगल मुँह पर चड्ढी पहने लोगों में भगदड़ मच जाती है हटो बचो भागो ये कोरोना पॉजिटिव मरीज़ है। बम डिफ्यूज़ से पहले कंफ्यूज़ ये क्या बलाह आगयी है बे मार्केट में। ये सोच ही रहा था कि उसके कान में एक अदृश्य आवाज़ सुनाई दी अरे बमवा सुन बे । बम सकपकाते हुवे कौन है बे किसकी इतनी हिम्मत हुई कि आतंक का दूसरा नाम बम वाले दहशत भाई को बे बोल रहा है । तभी सार्स 2 कोविड 19 कोरोना वायरस ने कहा ओह भूतनी मालूम है मालूम है चल अपने बाप को मत सीखा। रही होगी तेरी दहशत कभी पर 2019 से अपुन ही भगवान है दहशत का दूसरा नाम है तेरे नाम से लोगों की पैंट गीली होती है पर मेरे नाम से गला ना गीला होजाये इसीलिए सुसरे मुँह पर भी चड्ढी पहनने लगे हैं...

एक बहन जो अपने बड़े भाई के लिए माता-पिता बन गयी । पढ़िए एक सच्ची कहानी मेरी ज़ुबानी

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आपसे निवेदन है कि इसे एक बार पूरा ज़रूर पढ़ें शेयर भी करें होसके तो मदद भी कर दे किसी ग़रीब की  ज़माने जदीद में मिलती नही मिसाल मिस्ले वालिदैन बनी एक बहन भाई के लिए जब औलाद माता पिता से मुँह मोड़ ले जब भाई शादी के बाद अलग होजाएं जब सारे ताल्लुक़ात मतलब की बुनियाद पे रख दिये जाएं उस दौर में कोई ऐसा है जो अपने परिवार वे लिए माता पिता की भूमिका निभाने लगा । आज हम आपको ऐसे ही एक लड़की की सच्ची कहानी बताने जा रहें हैं जो अपने भाई की ख़ातिर उसके लिए वालिदैन (माता पिता) का फ़र्ज़ निभाने लगी । सुनने में जितना आसान लग रहा है उसे महसूस करने में पत्थर भी रो देगा । ये कोई फ़िल्मी कहानी नही हक़ीक़ी कहानी है एक लड़की की जिसने हालातों के आगे हिम्मत नही हारी ना उसे उसकी ग़रीबी रोक सकी ना समाज की "लोग क्या कहेंगे" कि बनाई प्रथा जिसमे ये कहा जाता है एक लड़की घर से बाहर नही निकल सकती । शौक़ में कोई नही निकलता मजबूरियां दहलीज़  नाघाती है । एक लड़की से मेरी दोस्ती फेसबुक के माध्यम से हुई लड़की का नाम शाहीन (काल्पनिक नाम) हैं । उसकी पोस्ट उसकी हरक़तें देख के लगता था जैसे इस लड़की कोई कोई ग़म ही ना हो हमेशा अ...

कौन है हज़रत अली, जाने कब और कैसे हुई शेरे ख़ुदा की शहादत

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दुनिया में कौन ऐसा होगा जिसने हज़रत अली (अ. स) का नाम नही सुना होगा । कौन अली जिसको मदद के लिए पुकारों तो हर हाल में मदद होती है , हर मज़हब हर ज़ात हर रंग ओ ज़बान के लोग जिसे माने वो अली फिर चाहे वो मुसलमान हो या हिन्दू सिख ईसाई कोई ऐसा नही होगा जो हज़रत अली को मानता नही होगा । हज़रत अली मुसलमानों के चौथे ख़लीफ़ा और शियों के पहले ईमाम (नेता,रहनुमा,दिशानिर्देशक) हैं । हज़रत अली इंसाफपसंद इस्लाम पसंद करते थे । यतीमों और ग़रीबो को अपना दोस्त समझते थे जब अरब में ईसाई , यहूदी और मुस्लिम के बड़े बड़े घराने हज़रत अली को दावत पर बुलाते थे तो हज़रत अली ये कह कर मना कर देते थे की मेरी जगह इन यतीमों और ग़रीबो को दावत पर बुलाओ , रात के अंधेरे में छुप कर आप ग़रीबो के घर खाना पहुंचाते थे ।  आपसे बड़ा आलिम कोई नही था ना आपसे बड़ा कोई बहादुर आपसे दुनिया का कोई भी सवाल पूछा गया आपने उसका जवाब दिया आपने फ़रमाया ये सीना इल्म की दीवार है पूछ लो जो भी पूछना हो इससे पहले की मैं तुम्हारे दरमियान से चला जाऊं । आप जंग में भी अव्वल रहते थे और इल्म में भी आपने ही फ़रमाया कोई काम छोटा नही होता है ख़ुद अरब के सबसे मशहू...