एक बहन जो अपने बड़े भाई के लिए माता-पिता बन गयी । पढ़िए एक सच्ची कहानी मेरी ज़ुबानी

आपसे निवेदन है कि इसे एक बार पूरा ज़रूर पढ़ें शेयर भी करें होसके तो मदद भी कर दे किसी ग़रीब की 

ज़माने जदीद में मिलती नही मिसाल
मिस्ले वालिदैन बनी एक बहन भाई के लिए

जब औलाद माता पिता से मुँह मोड़ ले जब भाई शादी के बाद अलग होजाएं जब सारे ताल्लुक़ात मतलब की बुनियाद पे रख दिये जाएं उस दौर में कोई ऐसा है जो अपने परिवार वे लिए माता पिता की भूमिका निभाने लगा । आज हम आपको ऐसे ही एक लड़की की सच्ची कहानी बताने जा रहें हैं जो अपने भाई की ख़ातिर उसके लिए वालिदैन (माता पिता) का फ़र्ज़ निभाने लगी ।

सुनने में जितना आसान लग रहा है उसे महसूस करने में पत्थर भी रो देगा । ये कोई फ़िल्मी कहानी नही हक़ीक़ी कहानी है एक लड़की की जिसने हालातों के आगे हिम्मत नही हारी ना उसे उसकी ग़रीबी रोक सकी ना समाज की "लोग क्या कहेंगे" कि बनाई प्रथा जिसमे ये कहा जाता है एक लड़की घर से बाहर नही निकल सकती । शौक़ में कोई नही निकलता मजबूरियां दहलीज़  नाघाती है ।

एक लड़की से मेरी दोस्ती फेसबुक के माध्यम से हुई लड़की का नाम शाहीन (काल्पनिक नाम) हैं । उसकी पोस्ट उसकी हरक़तें देख के लगता था जैसे इस लड़की कोई कोई ग़म ही ना हो हमेशा अपनी मौज में बहने वाली दूसरों को भी अपनों बातों से प्रेरित करने वाली लड़की के अंदर ग़मो का ज्वालामुखी धधक रहा है ये कभी जान ही नही पाते अगर उससे फोन पर बात ना होती । ज़रूरी नही हर मौज मस्ती हँसी मज़ाक करने वाली लड़की लड़का ख़ुश ही हो कुछ अपने ग़म को भुलाने के लिए अपनी हँसी के पीछे अपने ग़मो को छुपा देते हैं । शाहीन से मेरी बात होने लगी बात दोस्ती में बदल गयी उसे पता चला मैं एक NGO से जुड़ा हुआ हूँ जो सामाजिक कार्य करती है उसने मुझे अपना नंबर दिया । पता नही क्यों मुझे बार बार ये लगता रहा है इसकी हँसी के पीछे कोई राज़ ज़रूर छिपा है लड़की के अंदर डर नही है पर हया है थकान तो है पर कुछ कर गुज़रने का जुनून है , बहुत फ्रेंक बातों से कभी कोई अंदाज़ा ही नही लगा सकता किस तक़लीफ़ से वो गुज़र रही है । 

हमारी बात चीत शाहीन से शुरू हो चुकी थी क्योंकि जिस सामाजिक कार्य से मैं जुड़ा हूँ उसका कर्ताधर्ता मैं ही हूँ । अक़सर में लड़कियों वे फेसबुक पर नंबर मांग लेता हूँ इसलिए नही की मुझे उनसे इश्क़ लड़ाना है बल्कि इस लिए की होसकता है उनके किसी काम अजाऊँ क्योंकि जिस सामाजिक कार्य से मैं जुड़ा हुआ हूँ वो लड़कियों के उत्थान के लिए ही काम करती है मुझे सख़्त हिदायत है फेसबुक पर बिना अपनी पहचान ज़ाहिर किये तुम्हे ये काम करना है । ये संस्था ख़ास तौर से लड़कियों के लिए ही बनाई गयी है जिसमे उनके सामाजिक जीवन के एक बहुत अहम हिस्से पर काम होता है जैसे शादी ब्याह पढ़ाई लिखाई नौकरी इत्यादि की तलाश , ज़रूरत पड़ने पर आर्थिक मदद भी हम लोग करते रहते हैं ।

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शाहीन का घर पूर्वी भारत के एक राज्य में एक छोटे से गांव में है । शाहीन ने विज्ञान विषय में मास्टर की डिग्री प्राप्त की है । डिग्री हासिल करना इतना भी आसान नही था उसके लिए लोन लेना पड़ा क्योंकि पैसा इतना था नही की वो पढ़ाई ख़ुद के पैसे से कर पाती बचपन में ही बाप गुज़र गया जिस बच्चे के सर पर बाप का साया ना हो वो हिम्मत हार जाते हैं ख़ासकर अगर वो एक लड़की हो पर शाहीन ने हिम्मत नही हारी उसे अपने परिवार के लिए कुछ करना था । कुछ कर गुज़रने का जुनून था बाप का साया पहले ही उठ चुका था ग़रीबी सर पर हिमालय के पहाड़ जैसी खड़ी थी खाने को कुछ नही ज़िन्दगी फाके और रोज़े में गुज़रने लगी जैसे तैसे मास्टर की तरफ़ बढ़ ही रही थी कि माँ ने भी उसका साथ छोड़ दिया यूं लगा मानो ऊपर वाले ने इम्तेहान की किसी स्पेशल क्लास में खड़ा कर दिया हो । कहने को एक भाई वो भी मजबूर ऊपर से मज़दूर जैसे तैसे कर के शाहीन ने मोर्चा संभाला ग़मो की टूटी और ग़रीबी की सताई लड़की का कोई सहारा नही बना रहने को मकान नही खाने को समान नही । शाहीन ने लोकल स्तर पर काम करना शुरू किया और साथ ही पढ़ाई भी जारी रखी धीरे धीरे कुछ पैसे से किराये पर एक छोटा सा मकान लिया । ख़ुद खाना नही खाती अपने बड़े भाई को खिलाती क्योंकि वो उस दौरान बीमार रहता था काम कर नही सकता था । शाहीन की पढ़ाई पूरी हुई क़िस्मत की मारी लड़की ने घर से बाहर निकलने का कुछ करने का फैसला किया । बाहर एक कम्पनी में उसको नौकरी मिल गई पर कहने को नौकरी थी उसमें वो नौकर ही थी । शुरू में उसको दस बारह हज़ार रुपये मिलने लगे उस पैसे को वो घर भेजने लगी ख़ुद बस रूम का किराया निकाल पाती दो दिन में एक दिन बस खाना खाती । पैसा जुटा कर उसने भाई को फुटपाथ पर एक छोटी सी दुकान करवा दी जो काम माता पिता को करना चाहिए था उसे एक बहन ने संभाल लिया था । वो अपना पेट काटती रही और भाई को पालती रही पाई पाई जोड़ के भाई की शादी करवायी । धीरे धीरे भाई का कुनबा बड़ा हुआ तो बच्चों को भी ज़िम्मेदारी शाहीन पर आगयी एक तो ख़ुद्दार ऊपर से इज़्ज़तदार लड़की ना भीख मांग सकती थी ना किसी के आगे हाथ फैला सकती थी ये दुनिया भूखे भेड़िये की जिस्म की तलाश में रहते हैं बिना मतलब कोई मदद नही करता ये बात उसे अच्छी तरह पता थी कि किसी से मदद मांगना मतलब अपने जिस्म का सौदा करना । समाज की निग़ाह गिद्ध की तरह उसपर लगी रहती पर जिसे इज़्ज़त अल्लाह देना चाहे जिसकी हिफ़ाज़त करना चाहे उसे कौन छू सकता है । लड़की सादात होते हुवे भी उसे क़ौम के इदारों (समाजिक संस्थाओं)  से कभी कोई मदद नही मिली । कच्ची उम्र में जिसने अपने माँ बाप को खो दिया हो उसके पास खोने को बचा ही क्या है ,लोग क्या कहेंगे समाज क्या कहेगा से ज़्यादा उसे फ़िक़्र थी हम कैसे बचेंगे घर कैसे चलेगा । शाहीन के भाई के भाई के दो बच्चे भी हैं अब बच्चों का भी ख़र्च उसी के सर किसी तरह एक दूसरी नौकरी हासिल की जिसमे बस बीस-पच्चीस हज़ार मिलता है उसमें भी भाई के परिवार का ख़र्च घर का किराया एजुकेशन लोन मोबाइल की EMI अपने रूम का ख़र्च और कम्पनी तक  आने जाने का किराया निकाल कर खाने के नाम पर कुछ नही बचता अपने ग़मो को अपनी हँसी में छुपाने वाली लड़की के बारे में कोई सोच भी नही सकता किस तरह संघर्ष चल रहा है उसकी ज़िन्दगी में । दो दिन पर एक दिन आज भी उसके खाने की ग़िज़ा है अगर आज रात में खाना खाया तो दूसरे दिन ही रात में खाना खा पाती है फिर भी ना कभी किसी के आगे हाथ फ़ैलाया ना अपने ज़मीर का सौदा किया ना किसी सामाजिक क़ौमी संस्था ने मदद की ना किसी तरह की सरकारी मदद मिली । 
शाहीन बिहार से ताल्लुक़ रखती  है पिछले साल से ही भाई भी घर पर बैठा हुआ है फुटपाथ पर दुकान लगाता था लॉक डाउन से सब बंद है साथ ही सभी की तबीयत ख़राब । सलाम हो शाहीन जैसी लड़कियों पर जो अपने माँ बाप का नाम रोशन करती है आज जहां लड़के भी ज़िम्मेदारियों से मुँह मोड़ लेते हैं वैसे भी शाहीन जैसी लड़की समाज के लिए एक मिसाल है । हौसला हो तो क्या नही होसकता सब कुछ खो कर भी वो कभी अपने ग़म का इज़हार नही करती ना किसी के आगे हाथ फैलाती है शर्म करनी चाहिए उन मौलवी मौलानाओं सामाजिक संस्थाओं को जो क़ौम के ग़रीबो के नाम पर करोड़ों डकार जाते है । यतीमो मिस्कीनों का हक़ खा जाते हैं सही सलामत होते हुवे भी चोरी बेईमानी और लूट से खाते हैं उन्हें शाहीन से सबक लेना चाहिए कि ज़िन्दगी कैसे जी जाती है । शाहीन को जुनून है कुछ कर गुज़रने का कुछ बनने का और अपने जैसे लोगों लोगों की मदद करने का वो कहती है जो ग़म मैंने उठाएं है वो कोई ना उठाए ग़रीबो के साथ यतीमी का सितम उसपर से ना कोई यावर ओ मददगार अकेले ही ज़िन्दगी की जंग लड़नी है । शाहीन को अपने भाई को बिहार में एक दुकान करवानी है जिससे उसका मुस्तक़बिल संवर जाएं पर इतना पैसा नही है उसके पास । शादी की उम्र होगयी है पर ग़रीबो से कौन शादी करता है ना देने को दहेज़ है ना ही खिलाने को खाना । शादी को जितना आसान बनाया हज़रत मोहम्मद साहब ने समाज ने उसे उतना ही मुश्किल बना दिया झूठी शान के लिए ना जाने शाहीन जैसे कितनी लड़की लड़के ऐसे होंगे ।

अगर आप शाहीन की मदद करना चाहते हैं तो मुझे ईमेल करें मैं आपको बाक़ी की जानकारी उपलब्ध करवाता हूँ । लड़की मुस्लिम है सादात है अगर आप मे से कोई भी शाहीन की तक़लीफ़ को दूर करना चाहता हो तो मुझे कॉल या ईमेल करें  । Mother's Day special

ईमेल - Chirkutiyaadil@gamil.com

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