ख़ुद के अंदर हज़ार कमी लेकर हमे रिश्ता "कस्टमाइज़" चाहिए।

*रिश्ते ख़ुदा की जानिब से बनाए जाते हैं या इंसान की तरफ से ?*

रिश्ते इतने अज़ीम है कि जनाबे आदम अस. की ख़िलक़त के लगभग सौ साल बाद जनाबे हउवा अस. को अल्लाह ने ख़ल्क़ किया।

उन्हें ज़मीन पर एक मक़सद के तहत उतारा उन्हें औलाद अता की और हुक़्म दिया इनका अक़्द करो जिससे तुम्हारी नस्ल परवान चढ़े।

इसी तरह अहलेबैत अस के लिए भी जोड़े का इन्तेख़ाब किया। यहाँ तक कि कनीज़ों को भी अपनाया। 
 
आज दुनिया *कस्टमाइज़ रिश्ता* चाहती है ख़ुदा ने जो उनके लिए जोड़ा बनाया है वो नही, हला की बाद में उन्हें वही लड़की मिलती है जो उनके नसीब में रहती है। दुनियाभर की ख़ाक़ छानने के बाद वो लौट के अपनी असली सूरत में आजाते हैं। इंसान को अल्लाह ने अशरफुल मख़लूक़ात बनाया है, अक़्ल शऊर दिया, लेकिन इंसान आज जानवर से बदतर है।

और क़ौम के मुक़ाबले शिया पर अमल का हक़ कुछ ज़्यादा है। ये दीन ए इस्लाम हमे ऐसे नही मिला और शीयत इतनी आसानी से नही बढ़ी है इसके लिए क़ुर्बनियाँ दी गयी। और उन क़ुर्बानियों से पहले अमल किया गया। किसी भी एक अम्बिया, ईमाम का नाम बता दें जी जिन्होंने ख़ुद के नाम के आगे *"सैय्यद"* लिखा हो ? अव्वलन लोगों को *सैय्यद और सादात* में फ़र्क़ समझना चाहिए। सादात यानी औलाद ए अली अस. और उनकी नस्ल से चले लोग और सैय्यद उस वक़्त अरब क़बीले के सबसे पॉवर फूल शख़्स को कहा जाता था जो क़बीले का *"सरदार"* होता था। जस वक़्त के हिसाब से देखे आपके मोहल्ले के पार्षद,प्रधान,विधायक सांसद चेयरमैन, इत्यादि को भी अगर अरबी लुगत से देखेंगे तो इनके नाम मे सैय्यद आएगा। 

हर शख़्स आज सैय्यद है। अगर ख़ुद को आप नस्ल ए अली अस. से मानते हैं तो आप पर अली अस. की इताअत लाज़िम है। हर फ़िरके से ज़्यादा दीन ए इस्लाम में शीयत के ऊपर अमल लाज़िम है। हम वो है जो अल्लाह पर यक़ीन रखने वाली क़ौम है। लेकिन आज ये क़ौम अल्लाह से कोसो दूर है, उन्हें यक़ीन ही नही अल्लाह के वजूद पर।  सोचे अगर इस वक़्त मौला मौजूद रहते तो वो आपके लिए सबसे पहले क्या देखते ?? एक तरफ आप ईमाम ज़माना अस. के ज़हूर की दुआ कर रहे हैं दूसरी तरफ़ आपको ख़ुद ईमाम का यक़ीन नही है। सोचे अभी औलाद ए अली अस. आजाए और कहें फलां लड़की/ लड़के से शादी कर लो और वो लड़की/लड़का आपको नही पसंद हो आप क्या कहेंगे ? कहेंगे कि मौला हम इस लड़की/लड़के से शादी नही कर सकते हैं ? याद रखे अगर आपके पास रिश्ता आता है तो वो ख़ुदा की जानिब से है उसे देखे समझे अगर सही हो फौरन निक़ाह कर ले। लेकिन हम बस अपनी मुसीबत में अल्लाह और अहलेबैत अस. को पुकारते हैं जब हम पर मुसीबत आती है ऐसे सारा काम अपने मन से ही करते हैं। ना दीन से मतलब है ना शरीयत से। ईमाम क्यों कर आएंगे जब आपको यक़ीन नही वो आपको और आपकी हरक़तों को देख रहे हैं। आख़िर एक लड़की/लड़के में बुनियाद ज़रूरत के लिए क्या चाहिए ? ज़ात ? बिल्कुल नही इतना हो कि हलाल तरीक़े से कमा सके, ख़ौफ़ ए ख़ुदा हो, मेहनत कश हो, इल्म इतना हो कि कोई बेवकूफ़ ना बना सकें, घर इतना बड़ा और मज़बूत हो कि दरिंद्र चरिंद्र परिंद से और मौसम की मार से हिफ़ाज़त कर सकें। उन ज़रूरत को पूरा कर सके जो जो एक ज़ौजा/शौहर का हुक़ूक़ है। औरत बच्चों की तरबीयत कर सकें, मजनून ना हो, बे हया ना हो, बदचलन ना हो, शौहर के ऊपर हुक़्म चलाने वाली ना हो। शौहर की इताअत गुज़ार हो। लेकिन आज कल क्या होरहा है।

*कस्टमाइज़ रिश्ते* का चलन ऐसा बढ़ गया है कि पूछिये मत। पहले लोग आते हैं कॉल करते हैं तो कहते है बहुत परेशान है बेटी/बेटे की शादी नही होरही है। बस शादी होजाए तो सुकून मिले। हम लोग भी ये सोच कर रिश्ते बताते हैं कि बस *शादी* करनी है लेकिन फिर शुरू होता है लड़की/लड़के के अंदर *"कस्टमाइज़िशन* लड़की गोरी हो, लम्बी हो,ख़ूबसूरत हो, मोटी ना हो,पतली ना हो,इतनी पढ़ी लिखी हो उतनी पढ़ी लिखी हो, यहाँ की ना हो वहाँ की ना हो पढ़ाई में ये की हो वो की हो, रंग तो गोरा है लेकिन नक्शा सही नही है, नक्शा तो है रंग भी है लेकिन क़द नही है। क़द है रंग-रूप है पढ़ी लिखी है लेकिन *"सैय्यद"* नही है

लड़की वाले पहले कहते हैं लड़की की उम्र निकल रही है बस शादी हो जाए, फिर शुरू होता हैं उनका *कस्टमाइज़िशन* लड़का अच्छा हो, पढ़ा लिखा हो, सब है तो बहुत कम कमाता है इतने में क्या होगा, पैसा है तो अरे बहुत बड़ा है अब बूढ़े से थोड़ी नही अपनी बेटी बियाह देंगे, सब अच्छा है तो कास्ट नही सही है। वो सब सही है तो ख़ानदान नही सही हैज़ दादा कांड करके भागे थे, दादी पर दादी दूसरे कास्ट की थी। सब सही है तो लड़का लड़की बाज़ लग रहा है भला इतना अच्छा लड़का रहे कोई शादी ना करे कोई कमी रही होगी तभी कोई नही किया। सब सही है तो घर छोटा है, घर-बार मकान दुकान रंग रूप क़द काठी सही है तो ये नही सही वो नही सही। और जब सही तो लड़के वालों को लड़की नही पसंद। जितना लोग रिश्ते में देरी करते हैं धीरे धीरे अच्छा अच्छा रिश्ता हाथ से निकल जाता है। *लोग बेहतरीन की तलाश में बेहतर भी खो देते हैं*।  ऐसे कई केस है कि लड़की लड़के में हज़ार कमी है यहाँ तक कि जिस्मानी तौर पर भी उन्हें हाथ पैर से दिक़्क़त है फिर भी शादी उन्हें *"कस्टमाइज़* करवा के करनी है। 

आपने कभी सोचा है आपकी इन हरक़तों की वजह से लोगों का ज़हनी सुकून कहाँ जा रहा है ? लोग डिप्रेशन में जा रहे हैं, लड़कियां उम्र निकलने की वजह से दूसरी क़ौम में भाग रही है। हराम इतना आम होरहा है उसके  ज़िम्मेदार हम और आप है। फिर किस मुँह से आप ख़ुद को *सैय्यद और अली वाला कह रहे हैं ?* आपकी हरक़तों की वजह से ईमाम ए ज़माना अस. ख़ून के आँसू रो रहे हैं। आपने तो आसानी से ख़ुद को अली वाला सैय्यद बता दिया लेकिन अमल मुआविया वाला किया और आप जितनों का दिल दुखाते हैं जितनों के साथ ग़लत करते हैं आपके हर अमल का ज़ख़्म मौला को पहुँच रहा है। क्योंकि आपने ख़ुद को उनकी औलाद बता कर ऐसा किया है। एक घर में दो बेटे हो एक ग़लत हो एक सही तो लोग बाप को ही बुरा कहते हैं। 

ख़ुदा के वास्ते अपनी आख़िरत को सँवारे *कस्टमाइज़िशन* बंद करें। आपको नही पता मरने के बाद आपको कितने साल तक यू ही भटकना है जब तक क़यामत नही आएगी। अल्लाह ने जनाबे आदम को ज़मीन पर उतारने से पहले अहद लिया था ऐ आदम हम तुम्हे चंद लम्हो की मोहलत देकर ज़मीन पर भेज रहे हैं फिर तुम्हे पलट कर हमारी ही तरफ़ आना है। दुनिया की आराम तलबी में अपनी आख़िरत को ना भूल जाएं। आपको पलट ले अल्लाह की जानिब जाना है और आख़िरत का एक दिन दुनिया के एक साल के बराबर रहेगा। आप यहाँ की तल्ख़ी झेल नही पा रहे हैं वहाँ कैसे रहेंगे। 

अल्लाह वो है जिसके क़ब्ज़े क़ुदरत में हम सब की जान है, वही हँसाता है वही रुलाता है और उसकी मशीयत आदमी को मोहताज बना देती है। अगर अल्लाह ना चाहे तो आप करोड़ो कमा कर भी दाने दाने को मोहताज हो जाएंगे और अगर अल्लाह चाह जाए तो आप फ़क़ीर हो कर भी बादशाह वाले मज़े ले सकते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मोहीब ए अहलेबैत अस. *अबा वहाब "बहलोल दाना* है। जो बादशाह और काज़ी ना होते हुवे भी लोग उनकी बादशाह और काज़ी की तरह इज़्ज़त करते थे। इसी तरह जनाबे सुलेमान अस. के पास सब कुछ होकर भी अपने लोगों से वसीयत तक नही कर पाए थे। इल्म का हल्का सा तिनका बराबर ख़्याल जनाबे मूसा अस. के दिल में आया कि अल्लाह ने हमे साहिबे किताब बनाया, अल्लाह ने हुक्म दिया ऐ मूसा जाओ दरिया ए नील के पास मेरे एक बंदे (जनाबे ख़िज़्र अस) से इल्म हासिल करो। ईमाम अस. ने कनीज़ों से निक़ाह किया, ओलेमा ने ग़ैर सादात से निक़ाह किया जबकि वो आपसे हमसे अफ़ज़ल थे। मरजा का हुक़्म है ग़ैर सादात और सादात मे शादी हो सकती है लेकिन लोग अपने बाप दादा की मिरियास को लेकर चल रहे हैं। बिल्कुल उस तरह जैसे अबू जहल रसूल अल्लाह स.अ व.व. से कहता था ऐ मोहम्मद ये मेरे बाप दादा का दीन (बूत परस्ती) है और तुम चाहते हो तुम्हारे नए दीन के लिए हम अपने बाप दादा का दीन छोड़ दें। आज लोग भी अबू जहल वाली हुज्जत करते हैं जबकि क़ुरआन हदीस बा अमल नेक शरीफ़ दीनी लड़की/लड़का से शादी का हुक़्म देता है।  वो क़ुरआन में फ़रमाता है तुम निक़ाह करो अगर तंगदस्त हुवे तो ख़ुदा तुम्हे अपने फ़ज़लों करम से मालामाल कर देगा (सूरह नूर आयात 32)

ईमाम जाफ़र सादिक़ अस. फ़रमाते हैं जो इस डर में निक़ाह नही करता कि उसके पास कुछ नही है वो यक़ीनन अल्लाह पर शक़ करता है। 

ईमाम ज़ैनुलआब्दीन अस. के पास दौरान ए हज लोग आए और फ़रमाया मौला इस साल आपके मोहीबो की तादात बहुत ज़्यादा है , मौला ने कहा कहाँ ? कहने लगे सामने देखिए जो हज कर रहे हैं। मौला ने उन्हें अपनी दो उंगलियों के दरमियाँ दिखाया तो सब जानवर ही नज़र आए कुछ को छोड़ कर जो हक़ीक़ी मोहीब ए अहलेबैत अस. थे। वैसे ही मौला की नज़र में आज हम सब है भले ख़ुद को शिया कहें या  सैय्यद ओ सादात कह ले। हक़ीक़त में हम सब जानवर है। 

ईमाम अली अस. फ़रमाते हैं अपने बराबर में रिश्ता करो, लेकिन लोग ये नही देखते की सामने वाला क्या है और वो क्या है। ख़ूबसूरती और पैसे की लालच में लड़की/लड़के के वालिदैन ज़लील होरहे हैं। बे दीन इंसान से दीनी रीती रिवाज से शादी करवाने का क्या मतलब है ? जिसे बारह ईमाम अस. के नाम ना पता हो नमाज़ रोज़े से मतलब ना हो लोग उसे बस पैसे के दम पर अपनी लड़की दे देते हैं, बाद में पता चलता है कि लड़के के अंदर हज़ार बुराई फिर वही होता है जिसका डर है, तलाक़। लड़की भी ख़ूबसूरत चाहिए चाहे बे पर्दा बे शर्म बे हया हो, बाद में यही लड़के वाले कहते हैं लड़की को कुछ आता नही है खाना पकाने नही आता तमीज़ नही है नौहा हदीस नही आता। अदब ओ तहज़ीब नही है, अफेयर है। क्यों भाई, आपने लड़की में ये सब देखा था सिवाए ख़ूबसूरती के और उसकी दुनियावी पढ़ाई के ? फिर आप उम्मीद कैसे कर सकते हैं अदब ओ तहज़ीब की। ख़ूबसूरती हया में है, दीन में है, ईमान ऐसा हो कि सामने कुबेर का ख़ज़ाना भी हो तो वो नज़र उठा कर ना देखे। जब वो आपका पैसा देख कर आ सकती है तो दूसरे के पैसा देख कर उसके पास भी जा सकती है। ईमान और लालच में यही फ़र्क़ है। एक वफ़ादार ईमानदार लड़की आपका घर जन्नत बना सकती है और पैसे की लालची  लड़की आपका घर जहन्नुम बना सकती है। बा हया दीनी लड़की तलाश करें, बे हया नही। जिनके पर्दे बाज़ारों मे और शादियों में उतर जाएं और सोशल मीडिया पर ख़ुद को हिजाबी क्वीन ,कनीज़ ए फात्मा स.अ कहें। लड़का भी ऐसा हो जिसमें ख़ौफ़ ए ख़ुदा हो ज़मीर ज़िन्दा हो ।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं, जाहिल वो नही है जिसने इल्म हासिल नही किया, जाहिल वो है जिसमे अदब ओ तहज़ीब ना हो। 

आदिल ज़ैदी काविश

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