क्या इमाम हुसैन अ. स की अज़ादारी का "हमारी अर्थव्यवस्था" में योगदान है ?

इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार साल का पहला महीना मोहर्रम होता है. इसे 'ग़म का महीना' भी माना जाता है.

12वीं शताब्दी में ग़ुलाम वंश के पहले शासक क़ुतुबुद्दीन ऐबक के समय से ही दिल्ली में इस मौक़े पर ताज़िये (मोहर्रम का जुलूस) निकाले जाते रहे हैं.

उनके बाद जिस भी सुल्तान ने भारत में राज किया, उन्होंने 'ताज़िये की परंपरा' को चलने दिया. हालांकि वो मुख्य रूप से सुन्नी थे, शिया नहीं थे.

पैग़ंबर-ए-इस्‍लाम हज़रत मोहम्‍मद के नाती हज़रत इमाम हुसैन को इसी मोहर्रम के महीने में कर्बला की जंग (680 ईसवी) में परिवार और दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था.

कर्बला की जंग हज़रत इमाम हुसैन और बादशाह यज़ीद की सेना के बीच हुई थी.

आपको ये भी रोचक लगेगा
मोहर्रम में मुसलमान हज़रत इमाम हुसैन की इसी शहादत को याद करते हैं.

हज़रत इमाम हुसैन का मक़बरा इराक़ के शहर कर्बला में उसी जगह है जहां ये जंग हुई थी. ये जगह इराक़ की राजधानी बग़दाद से क़रीब 120 किलोमीटर दूर है और बेहद सम्मानित स्थान है.

कर्बला में इमाम हुसैन की मज़ार पर लाखों की तादाद में शोक मनाते शिया मुसलमान
मोहर्रम महीने का दसवाँ दिन सबसे ख़ास माना जाता है. मुहर्रम के महीने में दसवें दिन ही इस्‍लाम की रक्षा के लिए हज़रत इमाम हुसैन ने अपने प्राणों का त्‍याग दिया था. इसे आशूरा भी कहा जाता है.

इस दिन शिया मुसलमान इमामबाड़ों में जाकर मातम मनाते हैं और ताज़िया निकालते हैं. भारत के कई शहरों में मोहर्रम में शिया मुसलमान मातम मनाते हैं लेकिन लखनऊ इसका मुख्य केंद्र रहता है. यहाँ के नवाबों ने ही शहर के प्रसिद्ध इमामबाड़ों का निर्माण करवाया था.
लखनऊ में मोहर्रम
उस वक़्त लखनऊ को अवध के नाम से जाना जाता था. नवाबों की रियासत में ही शायरों ने मोहर्रम के लिए मरसिया (किसी की शहादत को याद करते हुए लिखी गई कविता) लिखा और उसे पढ़ा भी.

उनमें से सबसे प्रसिद्ध थे मीर अनीस, जिन्होंने कर्बला की जंग का अद्भुत वर्णन किया है ।
मोहर्रम में जो मरसिया गाया जाता है उसमें इमाम हुसैन की मौत का बहुत विस्तार से वर्णन किया जाता है. लोगों की आँखें नम होती हैं. काले बुर्के पहने खड़ीं महिलाएं छाती पीट-पीटकर रो रही होती हैं और मर्द ख़ुद को पीट-पीटकर ख़ून में लतपत हो जाते हैं.
 पेशावर में मोहर्रम के नौवें दिन मातम करते शिया मुसलमान
'या हुसैन, हम न हुए'
और ताज़िये से एक ही आवाज़ सुनाई दे रही होती है- "या, हुसैन, हम ना हुए". इसका मतलब होता है, "हमें दुख है इमाम हुसैन साहब कि कर्बला की जंग में हम आपके लिए जान देने को मौजूद न थे."

मुग़ल शासक सुन्नी थे. हालांकि बादशाह जहाँगीर की पत्नी नूर जहाँ शिया थीं जिन्होंने ईरान-इराक़ की सीमा पर शुस्तर नामक जगह पर बसे क़ाज़ी नुरुल्लाह शुस्तरी को मुग़ल दरबार में शामिल होने का न्योता भेजा. काज़ी शुस्तरी ने मुग़ल सल्तनत में शियाओं का प्रचार किया.

लेकिन बाद में जहाँगीर के आदेश पर क़ाज़ी शुस्तरी को मौत के घाट उतार दिया गया. क़ाज़ी पर ये आरोप लगा कि उन्होंने शेख़ सलीम चिश्ती का कथित तौर पर अपमान किया था.

मुग़ल दरबार में शेख़ सलीम चिश्ती का विशेष सम्मान था क्योंकि ऐसा विश्वास था कि उन्हीं की दुआओं के बाद बादशाह अकबर के घर जहाँगीर का जन्म हुआ था.
जहाँगीर की अदालत में एक और मशहूर शिया नाम महाबत ख़ान का था, जिनका घर उस वक़्त दिल्ली में (आज के समय सेंट्रल दिल्ली में आईटीओ के पास) स्थित था.

ये जगह दिल्ली में मोहर्रम का मातम मनाने के लिए प्रमुख केंद्र रही है. यहाँ उनके नाम की एक सड़क भी है.

मोहर्रम में खाया जाने वाला मुख्य पकवान खीचड़ा या हलीम है, जो कई क़िस्म के अनाज और मांस के मिश्रण से बनाया जाता है.

इसके पीछे ये मान्यता है कि जब सारा भोजन समाप्त हो गया तो कर्बला के शहीदों ने आख़िरी भोजन के तौर पर हलीम ही खाया था.
दिल्ली का मिनी कर्बला
मोहर्रम के महीने में आपको हरे कुर्ते पहने लड़के मिल जायेंगे. उनकी कमर पर घंटियाँ बंधी होंगी. ये बच्चे नौ रातों तक स्थानीय क़ब्रिस्तान में जाते हैं और दसवीं रात को युद्ध का दिन कहा जाता है.

शिया मुसलमानों ने दिल्ली में एक 'मिनी कर्बला' भी बना रखा है जो ज़ोरबाग में स्थित है. इसे एक बार सफ़दरजंग के मक़बरे तक फैलाने की कोशिश की जा चुकी है.

(Source BBC HINDI NEWS ..)

_________________________
ईमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत को याद करके हम रोते है । हर शिया इमाम हुसैन की शहादत को याद करके रोता है किस तरह 3 दिन का भूखा प्यासा ईमाम हुसैन के परिवार वालों को कर्बला में शहीद कर दिया गया । रोने से दिल ज़िन्दा होता है मुर्दा दिल वाले कभी रोते नही है । एक रिसर्च के मुताबिक़ रोने से हमे दूसरों के ग़म का एहसास होता है । यही वजह है आप किसी भी शिया मुस्लिम को किसी आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त नही पायेंगे ना ही किसी भी शिया मुस्लिम के अंदर ज़ुल्म पायेंगे पूरी दुनिया में शिया मुस्लिम अमनपसंद क़ौम है जो इमाम हुसैन की शहादत के ज़रिए दुनिया को ये पैग़ाम देती है ज़ुल्म ज़ोर ज़बरदस्ती अत्याचार का नामोनिशान नही रहता इंसानियत और मोहब्बत हमेशा ज़िन्दा रहती है । एक रवायत के मुताबिक़ यज़ीद ने 9 लाख के लश्कर को लेकर इमाम हुसैन को कर्बला में घेर कर 3 दिन का भूखा प्यासा सापरिवार शहीद कर दिया यज़ीद ने इमाम हुसैन के 6 महीने के बच्चे को भी नही छोड़ा जब इमाम हुसैन ने प्यास से परेशान अली असग़र को मैदान ए कर्बला में लाकर दुश्मनों से ये कहते है मैं तुम्हारा दुश्मन हूँ ये बच्चा नही इसे तो पानी पिला दो 3 दिन का भूखा प्यासा बच्चा है इसपर तो रहम करो । जब इमाम हुसैन अपने हाथों पर उठा कर यज़ीद के लश्कर को दिखा रहे थे कि देखो ये बच्चा कितना छोटा है 6 महीने का है तभी एक हुर्मुला नामक तीरंदाज़ ने बड़े बड़े जानवरो को मारने वाला 3 भाले के तीर से वार करके इमाम हुसैन के बेटे अली असग़र के गले के आरपार कर दिया । 

शिया मुसलमान 1400 साल पहले 10 मुहर्रम सन 61 हिजरी को इमाम हुसैन की शहादत को याद करके रोते है ।

 क्या कोई ऐसी क़ौम होगी जिसके अंदर उसके आक़ा की इतनी मोहब्बत होगी जिस जंग को देखा नही बस उसे सुन कर रोने लगते है भला वो शिया मुसलमान किसी पर कैसे ज़ुल्मों अत्याचार कर सकते हैं । कभी कभी जब हमे कोई दुख कोई दर्द होता है लोग कहते है रो लो मन हल्का होजाएगा इसका मतलब रोना भी शरीर के लिए ज़रूरी है वरना शरीर में बहुत तरह की बीमारी पैदा होजाएगी ।
रोने से क्या फ़ायदे होते हैं ?
आपको यह सुनकर आश्‍चर्य हो सकता है कि रोने के भी फायदे होते हैं। यह सच भी है। अध्‍ययनों से पता चलता है कि रोने के दौरान हमारे शरीर में ऐसे हार्मोन उत्‍पन्‍न होते हैं जो दर्द को कम कर सकते हैं। हमारा शरीर बहुत देर तक रोने से ऑक्सीटोसिन और एंडोजीनस ओपियोड (oxytocin and endogenous opioids) का स्राव करता है। ये हार्मोन हमारे शरीर को सुखद अनुभव कराने में मदद करते हैं साथ ही दर्द को कम करने में सहायक होते हैं। एक बार एंडोर्फिन जारी होने के बाद आपका शरीर कुछ हद तक स्थिर हो सकता है। ऑक्सीटोसिन आपको शांत या सुखद अनुभव करा सकता है। इस तरह से रोना हमारी सेहत के लिए फायदेमंद हो सकता है। दिल हल्का होता है दिमाग़ ठंडा रहता है आँखे स्वस्थ रहती है साँस की बीमारी नही होती मन शांत रहता है गुस्सा नही आता नींद अच्छी आती है चेहरे पर चमक रहती है मासूमियत रहती है । 

क्या शिया मुस्लिम देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान देते हैं ?

जी हाँ : वर्तमान में देश में शिया मुस्लिम की जनसंख्या एक आंकड़े के अनुसार 35 से 40 करोड़ के आस पास है हर शिया मुस्लिम सभी त्योहारों पर खरीददारी करता हैं । पर मुहर्रम वो महीना है जो कोई त्योहार नही है ये एक शोक का महीना है हर शिया अनिवार्य रूप से 12 दिन मजलिस करता है अगर मान ले एक घर में 100₹ रुपये का  तबर्रूक आता है तो उस हिसाब से हर शिया एक दिन में 4 अरब और 12 दिन मे 48-50 अरब रुपये ख़र्च करता है । इससे व्यपारियों कप फ़ायदा होता है जब व्यवसाय ज़्यादा होगा तो वो ज़्यादा टैक्स भी देंगे । इस तरह छोटे से लेकर बड़े व्यपारियों की आमदनी केवल मुहर्रम माह में इतनी होजाती है जितनी पूरे साल नही हो पाती । बिस्किट, टोस्ट,ब्रेड, केक, फल,जूस, बर्तन,खाना, तथा विभिन्न प्रकार के समान को अपनी हैसियत के अनुसार लोग मजलिसों के तबर्रूक में बाटते हैं । अगर दुनियाभर के शिया का योगदान देखे तो वो बस मुहर्रम माह से लेकर सफ़र माह तक मे 5 ट्रिलियन डॉलर का योगदान देता है । अकेले भारत में ही 2 महीने में 1-2 ब्रिलियन डॉलर का योगदान भारतीय अर्थव्यवस्था में देता है । हम शिया मुस्लिम हमेशा से भारत को अपने दिल में बसा कर रखते है और देश के प्रति हमेशा से वफ़ादार है हमारे ।
ईमाम हुसैन ने अपने आख़िरी वक़्त में यज़ीद से कहा था मुझे हिन्द (हिन्दोस्तान ) जाने की इजाज़त दे दो हम हिन्दोस्तान चले जायेंगे । यही वजह है हम शिया मुस्लिम हिन्दोस्तान और यहाँ की अवाम से बेइंतेहा मोहब्बत करते हैं 

मशहूर मुस्लिम शिया शायर बेताब हल्लौरी का एक शेर है

बेताब दोनों पर बस ये दिल क़ुर्बान है
एक नामे हुसैन है तो दूसरा हिन्दोस्तान है

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

IMAM ZAMANA A.S KI ZAHOOR KI ALAMATEN

ख़ुद के अंदर हज़ार कमी लेकर हमे रिश्ता "कस्टमाइज़" चाहिए।

कर्बला का अर्बाइन अपने आप में एक अजूबा है,जाने कैसे ?