बेटा अली अकबर मार जाएगा ये ज़ईफ़ बाप तेरे जाने से , मुझे कुछ नही दिखता तेरे जाने से
अल्लज़ी खल्क़ल मौत वल हयात लि यबलुव-कुम अय्युकुम अहसनु अ-म-ला (सूरह मुल्क़ आयत 2)
' तर्जुमा : वह हर चीज़ पर क़ादिर है जिसने "मौत" और ज़िन्दगी को पैदा किया ताकि तुम्हे आज़माये कि तुम मे से काम में (नेकी की राह में ) सबसे अच्छा कौन है,और वा ग़ालिब बड़ा बख़्शने वाला है ।
क़ुरआन पाक़ की इस आयत पर ग़ौर करें तो अल्लाह फ़रमा रहा है उसने पहले "मौत" को पैदा किया । मतलब जब ज़िन्दगी का कोई अस्तित्व नही था तभी ये सुनिश्चित होगया था एक दिन मरना है और मरना निश्चित है इसीलिए इस आयत में ज़िन्दगी से पहले मौत का ज़िक्र आया है । जैसा कि मैंने पहले बताया था इमाम हुसैन (अ) की विलादत (जन्मदिन) पर ही आसमानी फ़रिश्ते जनाबे जिबरईल हज़रत मोहम्मद s.a.w.w. के पास आते हैं और इमाम हुसैन की शहादत की ख़बर देते हैं । किस तरह इमाम हुसैन को कर्बला में 3 दिन का भूखा प्यासा शहीद किया जाएगा कौन कौन लोग इमाम हुसैन के साथ रहेंगे क्या क्या होगा सारी बातें जनाबे जिबरईल पहले ही बता देते हैं । क़ुरआन की इस आयत और कर्बला के वाक़ये से ये तो निश्चित होगया अल्लाह ने सारी चीज़ें पहले से तय कर रखी है आप देखिए पैदाईश के ही दिन शहादत की ख़बर दे दी जब कि पैदाइश 3 शाबान 4 हिजरी को हुयी और शहादत 10 मुहर्रम (जिसे आशूरा कहा जाता है) सन 61 हिजरी को हुयी आप देखिए 57-58 साल बाद क्या होगा ये पहले ही बता दिया और क़ुरआन ने भी सूरह मुल्क़ की ऊपर दी हुयी आयत से साबित कर दिया कि अल्लाह ने सब पहले से तय कर रखा है अपने सभी बन्दों के लिए । क़ुरआन में हर ख़ुश्क ओ तर (अर्थात जो चीज़ ज़मीन और पानी , ज़मीन आसमान में है सब का पता है) चीज़ों का ज़िक्र है । अल्लाह क़ुरआन में फरमाता है समझने वालों के लिए हमने बड़ी निशानियाँ बयान कर दी है अब जो क़ुरआन पर ग़ौर ओ फ़िक़्र करेगा उसे दुनिया के हर अनसुलझे सवालों का जवाब मिल जाएगा ।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को क़ुर्बानी के लिए क्यों चुना गया ?
दुनिया में अच्छाई को और एक ईश्वरवाद का सन्देश देने के लिए दुनिया में एक लाख चौबीस हज़ार संदेष्टा (अम्बिया) आए उसमे सबसे आख़िर पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद साहब है जिसके बाद अल्लाह ने कोई पैग़म्बर नही भेजे । इमाम हुसैन हज़रत अली (अ) और हज़रत शहज़ादी फ़ात्मा ज़हरा (स) के बेटे है हज़रत फ़ात्मा ज़हरा हज़रत मोहम्मद साहब की एकलौती बेटी हैं । हज़रत इमाम हुसैन हज़रत मोहम्मद साहब के नवासे हैं । अब चूँकि दुनिया में रिश्तों का विस्तार होरहा था और हज़रत मोहम्मद साहब की शिक्षा और हज़रत अली के अदल ओ इंसाफ से भाई चारा मोहब्बत क़ायम हो चुकी थी । इससे पहले कोई मरने पर रोटा नही था क्योंकि रिश्तों का एहसास नही था । हज़रत अली (अ) ने फ़रमाया मुर्दा वो नही है जो मर गया है बल्कि मुर्दा वो है जिसमे एहसास ना हो । इस एहसास के रिश्ते को हज़रत रसूल ए ख़ुदा ने शुरू किया जब अपने चाचा जनाबे हम्ज़ा की शहादत पर जिसे यज़ीद की हिन्दा नामक दादी ने बहुत शहीद करवा कर बहुत बेरहमी से उनका कलेजा निकाल कर चबा गयी थी । इस ख़बर से हज़रत मोहम्मद बहुत आहत हुवे थे और अपना सीना पिट कर रोकर मातम किया था हज़रत हम्ज़ा के ग़म में उस वक़्त लोगो ने चाचा भतीजे की अटूट मोहब्बत को देखा था । उसके बाद हज़रत अबुतालिब (अ) की वफ़ात पर भी हज़रत मोहम्मद साहब ने बहुत अफ़सोस किया और ख़ूब रोये थे । उसके बाद उनकी पत्नी हज़रत ख़दीजा के भी मरने पर बहुत उदास हुवे थे इस पूरे साल को उन्होंने "ग़म का साल" कहा था । बस यहाँ से ये रिश्ता शुरू होता है ये मोहब्बत ये रिश्ता । हज़रत मोहम्मद साहब जानते थे एक वक़्त ऐसा आएगा की लोग अपने अज़ीज़ों की मौत की ख़बर बर्दाश्त नही कर पायेंगे अपने अज़ीज़ों का ग़म बहुत बड़ा होता है कोई सब्र नही कर पाता । अल्लाह ने इस इम्तेहान के लिए इमाम हुसैन को चुना था ताकि दुनिया के सामने एक नज़ीर पेश की जा सके कि ग़म को कैसे बर्दाश्त किया जाता है कैसे सब्र किया जाता है रिश्तों की अहमियत क्या होती है । इंसानी फितरत है वो जो देखता है सुनता है पढ़ता है अपने आपको भी ऐसा ही ढाल लेता है और वो कहता है अरे हम क्या चीज़ है जब फलां के साथ ये होगया तो लोग किसी के मरने पर जब पुरसा देने जाते है तो किसी ना किसी का हवाला देकर ढांढस बांधते है ताकि वो सब्र कर ले । इमाम हुसैन से बड़ा आज दुनिया में कोई उदहारण ही नही है अपने ग़मो को सब्र करने का । इमाम हुसैन के साथ दोस्त, भाई, बहन, बेटी, बेटा, भतीजा, भतीजी, भांजा, बूढ़े जवान, बच्चे, मर्द औरत सब थे यानी अल्लाह ने दुनिया को सब्र करने का एक बेहतरीन उदहारण पेश करना चाहता था जिसके लिए सभी को एक साथ कर दिया अगर इमाम हुसैन की शहादत ना होती तो दुनिया कभी अपनो का ग़म बर्दाश्त नही कर सकती थी बस इसीलिए ये इम्तेहान हज़रत इमाम हुसैन ने दिया ताकि दुनिया वाले जान ले अपने सभी प्यारों को खो कर भी किस तरह से सब्र किया जाता है और दुनिया में कैसे जीया जाता है ।
आइये आपको लेकर चलते हैं कर्बला तैयार होजाइये उस घटना को पढ़ने को जो दुनिया को जीने का हौसला देती है ।
कर्बला को कभी इमाम हुसैन की जंग के लिए या क़ुर्बानी के लिए याद ना करें बस कर्बला को याद रखें कैसे अपने घर परिवार को लूटा कर भी सब्र किया जाता है । आज हमारी नौकरी चली जाए पैसा ना हो रिश्ता ना हो कोई धोखा दे दे तो हमारे मन में सबसे पहला ख़्याल मौत को गले लगाने का आता है सोचते हैं अब इसके बाद जी कर क्या करेंगे । आइए कर्बला से सीखे कैसे जिया जाता है । किसी का अगर जवान भाई मर जाए वो कैसे जिए किसी का जवान बेटा मर जाये वो कैसे बर्दाश्त करे किसी का दोस्त , बाप मर जाए तो वो कैसे बर्दाश्त करे । अपनी आँखें बंद कीजिए और महसूस कीजिये कर्बला में हुवे ज़ुल्म ओ ख़ुद पर ये सोचिए ये अगर आपके साथ होता तो आप क्या करते ? अगर कोई आपके पूरे परिवार को मार दे तो आप क्या करेंगे ? पूरी कर्बला बयां नही होगी बस 3-4 वाक़या ही बतायेंगे और मेरा यक़ीन है आपको समझ में आजाएगा कर्बला में कितना ज़ुल्म हुवा था
आँखें बंद कीजिए तसव्वुर (महसूस) कीजिए अब ।
18 साल का नौजवान बेटा जिसका नाम अली अकबर है ख़ूबसूरत हसीन माँ, फुफ़ी (बुआ) चाचा, बहनों सबका प्यारा । माँ को तो एक पल भी सुकून नही मिलता था जब तक अली अकबर का चेहरा ना देख ले इमाम हुसैन के सबसे बड़े बेटे हैं बाप के दिल का सुकून है हसरत है । जैसें आप हम अपने माँ बाप के प्यारे हैं जिस तरह आपको हमे हमारे माँ-बाप चाहते हैं बिल्कुल उसी तरह उससे भी ज़्यादा चाहने वाले बेटे को कर्बला के मैदान में ज़ालिम 3 दिन का भूखा प्यासा कैसे मारते हैं । अली अकबर जंग के मैदान में जाते हैं प्यास से बेहाल है कहते हैं बाबा बहुत प्यास लगी है पानी पिला दीजिए । इतना मजबूर बाप जो अपने बेटे की हर हसरत को पूरा करता हो वो आज पानी नही पिला सकता था । इमाम हुसैन ने कहा बेटा आज तेरा बाबा बहुत मजबूर है । इमाम हुसैन एक चमत्कारिक शख़्सियत हैं उनके लिए ना पानी मुश्किल था ना जंग एक मिनट भी ना लगता 9 लाख के लश्कर को तबाह करने में पर उन्हें कोई चमत्कार नही दिखाना था बल्कि एक इंसान की तरह जंग करना था हर ज़ुल्म सहना था ताकि दुनिया सब्र करना सीख ले हर ग़म को सहना सीख ले भूख प्यास बर्दाश्त करना सीख ले । अब जनाबे अली अकबर जंग करते करते प्यास और धूप सी शिद्दत से निढाल होने लगे तभी हसीन इब्ने नोमेरे नामक शख़्स ने इमाम हुसैन के लख्ते जिगर के सीने में बर्छी का ऐसा वॉर किया कि वो सीने के अंदर घुस गई जनाबे अली अकबर घोड़े पर संभल ना सके चिल्लाए बाबा आइये बाबा आइये ज़ालिम तलवारों से तीरों से मारते जाते है । इमाम हुसैन को जोहीँ जनाबे अली अकबर की आवाज़ सुनाई दी वो बेतहाशा दौड़ते भागते गिरते हुवे अपने बेटे की तरफ़ भागे अरे इमाम है तो क्या हुआ हैं तो एक बाप ही ना बाप की बेटे से मोहब्बत कैसी होती है बताने की ज़रूरत नही । बेटा कहाँ हो बेटा मुझे कुछ दिखाई नही देता बेटा आवाज़ दो इमाम हुसैन ने अपने बेटे की आवाज़ जैसे ही सुनी थी मानो आँखों के सामने अंधेरा होगया कुछ दिखाई नही दे रहा था 57 साल के इमाम हुसैन अभी तक अपने भाई, भतीजे, दोस्त, भांजे का लाशा उठा कर लाए थे ऐसी हाल ना थी पर बाप तो बाप ही होता है इमाम हुसैन गिरते संभलते जनाबे अली अकबर के पास गए जनाबे अली अकबर ज़मीन पर पड़े थे इमाम हुसैन ने अपने पैरों पर सर को रखा दिल तेज़ी से धड़कने लगा बेटा बाप की आग़ोश में दम तोड़ने वाला है अल्लाह किसी को ये मंज़र ना दिखाए । जनाबे अली अकबर कहते हैं बाबा सीने से बर्छी निकाल दीजिए साँस नही लिया जाता इमाम हुसैन काँपते हाथों से जैसे ही अपने जवान बेटे के सीने से बर्छी निकलते है । जनाबे अली अकबर की रूह निकल जाती है बाप चिल्लाता है अली अकबर मेरे लाल मेरे लख्ते जिगर मेरी उठो अरे इस तरह बाप को ज़ाइफी (बुढ़ापे) में छोड़ कर कोई जाता है क्या ऐ बेटा उठो अरे तेरी माँ को कैसे तेरे मरने की ख़बर दे बेटा तुही तो सहारा है देख सब ख़त्म होगया है ना तेरे चचा अब्बास है ना भाई क़ासिम ना औन ओ मोहम्मद बेटा तुही मेरा सहारा है उठ जा ना बेटा और ये कहर रोने लगे रोते रोते सर ऊपर उठाया देखा कोई खड़ा है । पूछा तू कौन है कहा मैं मदीने से आया हूँ यहाँ जनाबे अली अकबर कौन हैं उनकी बहन सुग़रा ने ख़त भेजा है अपनी बहन के लिए । अब तो इमाम हुसैन की जैसे रूह निकल गयी हो क्या जवाब दे ख़त का कैसे उस बीमार बहन को अपने सबसे प्यारे सबसे चहिते भाई के मरने की ख़बर दे वो बीमार है सुनकर सदमे से मर ना जाए जिससे भाई अली अकबर ने वादा किया था कर्बला से लौट कर आऊँगा बहन तब तक तू भी ठीक होजाएगी उस बहन को अपने जवान भाई की शादी का बहुत अरमान था । ख़त में सलाम दुआ के बाद ख़ैरियत पूछी गयी थी और लिखा था
भईया जल्दी से वापस आना आपकी शादी का जोड़ा अपने हाथों से सजाऊंगी
भईया बीमार हूँ हर नमाज़ में मेरे हक़ में दुआ करना
भईया तन्हा तो छोड़ कर चले गए हो आपकी याद में रोती हूँ जल्द से जल्द वापस आजाओ ना भईया
भईया मेरे प्यारे भईया आपने वादा किया था कि आप लौट कर आयेंगे पर दिल बहुत बेचैन है बहुत घबरा रहा है अपना हाल सुना दो भइया क़ासिद से मेरा दिल बहुत बैठा जा रहा है जबसे आप गए हो भईया वादा किया था ना आना ज़रूर वरना आपसे कभी बात नही करूंगी भईया मैं पहले से ही बीमार हूँ आपकी जुदाई ने और बीमार कर दिया है मेरी हर सुबह आपका चेहरा देख कर होती थी भईया मुमक़िन हो तो एक बार चेहरा दिखा दो बहुत ज़्यादा मन कर रहा है आपको देखने का ।
इमाम हुसैन लाशाये अली अकबर बस ख़त को पढ़ पढ़ के बेज़ारो क़तार रोते जा रहे हैं । बेटा अली अकबर तेरी बीमार बहन का ख़त आया है उसे कैसे तेरे मरने की ख़बर दूँ बेटा वो मर जाएगी मेरा पूरा घर बर्बाद होगया है एक वो ही बची है अगर उसे तेरे मरने की ख़बर दूँ तो वो मर जाएगी ।
लाशाये अली अकबर से क्या आवाज़ आयी जिसे शायर ए अहलेबैत "रज़मी जौनपुरी" साहब ने कुछ यूं लिखा है।
वादा तो मरीज़ा से बसत शौक़ किया था
मर जाऊँगा सहरा मे ये बिल्कुल ना पता था
खाऊंगा मैं बर्छी मेरी क़िस्मत में लिखा था
बाबा मैं इसी दिन के लिए ही तो पला था
उम्मीद नही है कि मैं रह पाऊंगा ज़िन्दा
इमाम हुसैन लाशा ए अली अकबर को उठाए हुवे ख़ैमे की तरफ बढ़े दिल को और ख़ुद को संभाले बढ़े जैसे ही ख़ैमे के दर पर पहुँचे एक शोर सा उठा अली अकबर शहीद होगए । ख़ैमे में कोहराम मच गया फुफ़ी शहज़ादी ज़ैनब ये सुन कर रोते रोते बेहोश होगयी ।
जनाबे लैला जो जनाबे अली अकबर की माँ हैं उन्हें बताने एक कनीज़ गयी तो देखा कभी वो उधर टकराती है कभी वो उधर टकरा रही है कनीज़ ने रोते हुवे पूछा शहज़ादी ये क्या हुआ । जनाबे अली अकबर की मां ने कहा मैं क्या करूँ मुझे कुछ दिखाई नही देता । अल्लाह हु अकबर एक माँ जिसका जवान बेटा उसका सहारा हो उसकी आस हो उस माँ की जान हो वो भला कैसे ये ग़म बर्दाश्त करें । कोई भी माँ अपने बेटे का ग़म बर्दाश्त नही कर सकती हैं । 😭😭😭😭💔💔💔😭
आगे क्या हुआ दूसरी पोस्ट में पढ़े हैं । 😭😭😭😭💔💔💔😭
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