आसमानी फ़रिश्ते "जिबरईल" ने ऐसा क्या कह दिया जिसे सुन कर हज़रत मोहम्मद और हज़रत अली रोने लगे

अल्लामा हुसैन वाएज़ काशेफ़ी लिखते हैं 3 शाबान 4 हिजरी को इमाम हुसैन (अ) की विलादत के बाद अल्लाह ने जिब्राईल (आसमानी फ़रिश्ते) को हुक़्म दिया कि ज़मीन पर जाकर मेरे हबीब हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.व.व) को मेरी तरफ़ से हुसैन की विलादत (पैदाईश) की मुबारक़बाद दे दो और साथ ही इमाम हुसैन की शहादत का वाक़या बता कर ताज़ियत (पुरसा) भी अदा कर दो  । जनाबे जिबरईल बा हुक्मे रब्बे जलील ज़मीन पर आए और उन्होंने हज़रत मोहम्मद (स) की ख़िदमत में पहुँच कर मुबारक़बाद पेश की । उसके बाद हज़रत मोहम्मद से फ़रमाया रा रसूले ख़ुदा आपको अल्लाह की जानिब से इमाम हुसैन की शहादत की इत्तेला दी जाती है । रसूले ख़ुदा हैरान अभी अभी तो हुसैन की विलादत (पैदाईश) हुई है और शहादत की भी ख़बर आगयी । हज़रत मोहम्मद साहब ने जनाबे जिबरईल (आसमानी फ़रिश्ते) से पूछा जिबरईल माजरा क्या है मेरे हुसैन की शहादत क्यों और कैसे होगी  ? 
जनाबे जिबरईल ने अर्ज़ की या रसूले ख़ुदा बारोज़े जुमा 10 मुहर्रम सन 61 हिजरी को इराक़ के कर्बला का सहरा(रेगिस्तान और जंगल) जब आपके फ़रज़न्द इमाम हुसैन (अ) को बे जुर्म ओ ख़ता मैदाने कर्बला में कुंद ख़ंजर ( ऐसा जानवर काटने का चाकू जिसमे धार ना हो जिससे बहुत बेरहमी से गर्दन रेत कर काटा जाए) से क़त्ल किया जाएगा इमाम हुसैन का कोई साथी ना होगा ना आप होंगे ना अली ओ फ़ात्मा (स) ना हसन होंगे बस हुसैन और उनकी औलाद चंद दोस्त और परिवार के लोग होंगे सबको क़त्ल कर दिया जाएगा । इतना सुनना था रसूले ख़ुदा रोने लगे रसूले ख़ुदा (स) का रोना सुनकर हज़रत अली (अ) आगए फ़रमाया या रसूले ख़ुदा आपके रोने का सबब क्या है इस हाल में पहले आपको कभी नही देखा है क्या बात है बताइये । रसूले ख़ुदा ने फ़रमाया ऐ अली अभी बाहुक्मे ख़ुदा जिबरईल आए थे इमाम हुसैन की विलादत के साथ साथ शहादत की भी ख़बर दी है । शहादत की ख़बर ? । हज़रत अली ने पूछा हाँ शहादत की । या रसूले ख़ुदा मुझे भी बताइये किस हाल में मेरे लाल इमाम हुसैन की शहादत होगी । हज़रत मोहम्मद ने सारा क़िस्सा बयान कर दिया मौला अली भी रोने लगे और रोते रोते दर ए शहज़ादी ज़हरा (स)  (हज़रत मोहम्मद साहब की एकलौती बेटी जिनके बेटे इमाम हसन और हुसैन थे ) ने मौला अली को इस हाल में कभी नही देखा था पूछा ऐ अबुल हसन (हज़रत अली का उपनाम जिससे वो अरब में विख्यात थे) आपके रोने का सबब क्या है । हज़रत अली ने जो हज़रत मोहम्मद से सुना था सब बयान कर दिया हज़रत फ़ात्मा ज़हरा भी रोने लगी  ।

हज़रत इमाम हुसैन को क्यों शहीद किया गया ?

हज़रत इमाम हुसैन हज़रत मोहम्मद के नवासे है हज़रत इमाम हुसैन रहम दिल और एक इंसाफ़पसन्द शख़्सियत हैं । उस वक़्त एक बादशाह हुआ करता था जिसका नाम यज़ीद था वो ख़ुद को पूरे अरब के ख़लीफ़ा बनाना चाहता था ज़ुल्म और दौलत के दम पर वो चाहता था कि सारी दुनिया सिर्फ उसे ख़लीफ़ा माने वो जो कहे वही सत्य हो वो जो कहे दुनिया उसे ही माने । इसी मुहिम में शाम (सीरिया) के बादशाह यज़ीद ने एक प्रोपगंडा शुरू किया अरब से लेकर अजम (ईरान) तक मिस्र से लेकर यूरोप तक दौलत के बल पर अपनी ख़िलाफ़त की बैयत (एक तरह की संधि जिससे उसके आदेशों को माना जाए ) ले ली यज़ीद एक ज़ालिम शराबी और अय्याश बादशाह था । इस्लामिक देशों का एकल ख़लीफ़ा बनने के लिए उसने सभी से बैयत ले ली परन्तु जब मीटिंग के लिए सभी को अपने दरबार में बुलाया तो सब कहने लगे अरे यज़ीद तू कैसा ख़लीफ़ा बना है तूने हम सब को तो बुला लिया पर जिसके घर से इस्लाम चला जो रसूल का वारिस है जो रसूल का जानशीन है क्या उसकी बैयत नही ली अगर उनकी बैयत नही ली है तो फिर तू किस बात का ख़लीफ़ा है । अगर तेरे साथ रसूल के घराने के ही लोग ना हो जिनसे इस्लाम चला तू सारे मुल्क़ से अपनी ख़िलाफ़त का आश्वासन लेकर क्या करेगा जब तुझे रसूले ख़ुदा के घराने का साथ ना मिला हो भला हम तुझे कैसे ख़लीफ़ा ए वक़्त मान ले जब रसूल ए ख़ुदा के नवासे इमाम हुसैन अभी ज़िन्दा हैं उनसे बेहतर कौन हमारी रहनुमाई करेगा कौन इस्लामिक देशों का लीडर होसकता है उन्हें क़ुरआन और इस्लाम की मालूमात है वो हमारी मुश्किलों का हल कर सकते हैं । यज़ीद सोचने लगा बात तो सही है अगर मैंने इमाम हुसैन की बैयत नही ली तो पूरी दुनिया की बैयत लेने का क्या फ़ायदा है जब रसूल के घराने से ही संधि ना और अपनी ख़िलाफ़त का आश्वासन ना मिले तब तक ये सारे लोग मुझे ख़लीफ़ा कभी नही मानेंगे ।
यज़ीद ने इमाम हुसैन को कई ख़त भेजे अपनी ख़िलाफ़त की बैयत के लिए इमाम हुसैन ने कोई जवाब नही दिया । जब यज़ीद का ज़ुल्म और अत्याचार बहुत बढ़ गया तब इमाम हुसैन ने 28 रजब सन 60 हिजरी को मदीना से कर्बला का सफ़र शुरू किया ।

इमाम हुसैन ने यज़ीद से जंग क्यों कि ?

यज़ीद अपनी ख़िलाफ़त के नशे में इतना चूर हो चुका था कि उसने इस्लाम के मूल सिद्धांतों को बदल दिया था सारे वाजिबात (अनिवार्य कार्य) को उसने बदल दिया । शराब हराम है इस्लाम में वो शराब पी कर नमाज़ पढ़ाता दिन रात शराब के नशे में रहता मिम्बर (लकड़ी, चमड़े या पत्थर का बना ऊंचा स्थान जहाँ से इस्लामिक उपदेश दिया जाता है ) पर नशे की हालत में बंदर लेकर बैठता था और कहता था मेरा बंदर भी किसी रसूल ,नबी, इमाम से कम नही है आज ये तुम लोगो को इस्लामिक उपदेश सुनाएगा । ज़िना ( अवैध सम्बन्ध) बनाना इस्लाम में हराम है यज़ीद वो करता वो सारे काम यज़ीद करता था जिसकी इस्लाम में मनाही थी जिसे ना करने का हुक़्म अल्लाह की तरफ़ से क़ुरआन में आया था जिसे रसूले ख़ुदा ने मना किया था वो सारे अवैध काम यज़ीद करता था । वहाँ के लोग खुले तौर पर उसका विरोध नही करते थे पर इमाम हुसैन को रोज़ ख़त लिख कर कहते थे ऐ नवासा ए रसूल इस्लाम ख़तरे में है हमने जो क़ुरआन में पढ़ा और आपके नाना से जाना, सुना सीखा वो सब यज़ीद बदल दिया है वो इस्लाम के विपरीत जा रहा है आप आजाइए इस्लाम को और हमे बचा लीजिए ये हमपर बहुत ज़ुल्म ढा रहा है । जब इमाम हुसैन को रोज़ ख़त मिलने लगे तब इमाम हुसैन ने निश्चय किया यज़ीद को समझाना अब ज़रूरी होगया है । उधर यज़ीद चाहता था इमाम हुसैन उसकी बैयत कर ले अगर हुसैन बैयत नही करते तो उन्हें बात करने के बहाने बुला कर क़त्ल कर दिया जाएगा । इसी मंसूबे से यज़ीद ने फौज इकट्ठा करनी शुरू की साथ ही अपनी दौलत के ज़ोर पर कुछ लालची सहाबा के बेटों और इस्लाम के जानकारों को ख़रीद लिया और सभी को अलग अलग राज्य की हुक़ूमत का लालच दिया लालच तो शैतान का घर है और इराक़, कूफ़े सब तरफ इन लालची मुसलमानों से ये प्रोपगंडा फैला दिया कि इमाम हुसैन इस्लाम से ख़ारिज (निकाल देना) कर दिए गए हैं हुसैन ना नमाज़ पढ़ते है ना रोज़े रखते हैं ना क़ुरआन पढ़ते हैं । इमाम हुसैन अभी मदीना में से चले है सोचा हज कर ले पर यज़ीद के जासूस और सिपाही हाजियों के भेष में वहाँ पहुँच गए इमाम हुसैन को क़त्ल करने को । इमाम हुसैन को इस बात का पता चल गया इमाम हुसैन ने हज को उमरे (उमरा एक प्रकार का छोटा हज ही होता है पर अनिवार्य नही होता हज की तरह ) में बदल के निकल गए क्योंकि काबा वो पवित्र स्थान है जहाँ ख़ून ख़राबा हराम है इस स्थान की पवित्रता बची रहे इसी लिए इमाम हुसैन ने हज छोड़ दिया । उधर यज़ीद का फ़ैलाया हुआ प्रोपगंडा फैलने लगा था लोग मानने को तैयार नही थे कि इमाम हुसैन इस्लाम धर्म छोड़ के किसी और धर्म को अपनाने जा रहे हैं पर क्योंकि कुछ सहाबा (रसूल ए ख़ुदा के साथी) के परिवार के लोग यज़ीद के साथ थे और कुछ सहाबा भी तो सभी को लगा यज़ीद सच कह रहा है वरना ये सहाबा क्व परिवार वाले क्यों यज़ीद का साथ देते । कूफ़े और शाम के लोग सोचने लगे या हमने इमाम हुसैन को बुला के ग़लती की जो नौज़बिल्लाह ख़ुद इस्लाम को नही मानते वो हमें कैसे बचायेंगे । भला नवासा ए रसूल अपने नाना के दीन को कभी छोड़ सकता था जो नातिक़ ए क़ुरआन (क़ुरआन का जानने वाला जिसके घर से क़ुरआन अल्लाह का उपदेश सारे संसार में फैला हो) वो भला दीन छोड़ सकता है वो नमाज़ रोज़ा छोड़ सकता है । यज़ीद का प्रोपगंडा काम कर गया था फिर भी लोगो का मन इमाम हुसैन के खिलाफ़ जंग लड़ने का नही था उसने इराक़ कूफ़े शहर के घरों से सभी औरतों को बुलाया और कहा अपने अपने मर्दों को इमाम हुसैन के ख़िलाफ़ जंग के लिए तैयार करो तुम्हे मुँह मांगा इनाम मिलेगा । सबने अपने अपने मर्दो को तैयार किया इमाम हुसैन से जंग करने को मर्द तो औरत के हुस्न का ग़ुलाम है वो तो औरत के मायाजाल में फंसा हुआ है । सारे मर्द मान गए । सब ने यज़ीद से कहा यज़ीद हम कैसे मान ले हुसैन दीन से ख़ारिज़ होगए हैं और तुझसे (स्वयं घोषितईस्लामिक ख़लीफ़ा वा इस्लामिक जानकर ) से जंग करने आरहे हैं । यज़ीद ने कहा अगर तुम्हें यक़ीन ना हो तो देख लेना इमाम हुसैन अपने पूरे परिवार के साथ दूसरा धर्म अपनाने जा रहे हैं अगर मुझसे मिलने आते तो अकेले आते । सब यज़ीद के प्रोपगंडा के शिकार होगए और सबको यही लगता था इमाम हुसैन इस्लाम धर्म छोड़ के दूसरे धर्म अपनाने जा रहे हैं और अगर यज़ीद ने उन्हें मना किया दूसरा धर्म अपनाने से तो इमाम हुसैन यज़ीद से जंग करेंगे । इमाम हुसैन तो सब पहले से जानते थे कि क्या होना है वो नवासा ए रसूल थे और अल्लाह की तरफ़ से जो ज्ञान हज़रत मोहम्मद साहब हज़रत अली को मिला था वही दिव्य ज्ञान इमाम हुसैन को भी पर क्योंकि दुनिया को ताक़त नही इल्म (शिक्षा) की रोशनी दिखानी थी इमाम हुसैन के लिए यज़ीद का 3 लाख (कही कही लेखकों ने 9 लाख़ लश्कर की तादात बताई है) का लश्कर तबाह करने में पल भर का समय नही लगता । इमाम हुसैन तो इस्लाम में हुई तब्दीली और यज़ीद द्वारा किये जारहे ज़ुल्मों सितम से लोगो को बचाने यज़ीद को समझाने निकले थे इमाम हुसैन को पहले ही पता था कि उनके साथ क्या होने वाला है इसीलिए जनाबे जिबरईल ने जितने लोगो के बारे में बताया था जो कर्बला में शहीद होंगे केवल उन्हें ही लेकर चले थे महिलाओं बच्चों के अलावा परिवार और चंद दोस्तो की संख्या केवल 72 थी यही इमाम हुसैन के 72 साथी कर्बला में शहीद हुवे थे जिसमे 8-10 साल के भांजे औन और मोहम्मद 13 साल का भतीजा हज़रत क़ासिम 18 साल का जवान बेटा अली अकबर और 6 महीने का इमाम हुसैन का बच्चा जनाबे अली असग़र प्रमुख हैं जिन्हें बेरहमी से क़त्ल कर दिया गया । इस तरह यज़ीद ने झूठ प्रोपगंडा बना कर और दौलत के लालची इस्लामिक फ़र्ज़ी विद्ववानों को मिला कर एक सुनियोजित साज़िश के तहत बेरहमी से क़त्ल कर दिया ।

अगले अध्यय में पढ़िए इमाम हुसैन पे परिवार वालों और इमाम हुसैन की शहादत कैसे हुयी

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