होगए शहीद भाई, आज चेहलूम पर भाई को बहन रो पायी, सकीना भी थक के सोगयीं फिर मिली भईया हमे रिहाई
चेहलूम या आर्बाइन क्या होता है और ये क्यों मनाया जाता है
हज़रत मोहम्मद साहब के नवासे (नाती) हज़रत इमाम हुसैन अ.स. को दस मुहर्रम सन 61 हिजरी को कर्बला के तपते रेगिस्तान और कंटीले जंगल में इमाम हुसैन और उनके 71 साथियों को बहुत बेरहमी से तीन दिन का भूखा प्यासा शहीद कर दिया गया था जिसमे इमाम हुसैन के छह महीने के बच्चे शहज़ादे अली असग़र भी शामिल थे । यज़ीद की फ़ौज ने इमाम हुसैन के बच्चों पर भी रहम नही खाया था तीन दिन तक नहर पर पहरा लगा कर पानी रोक दिया नही कुछ खाने का था ना पीने का बच्चे प्यास से तड़प रहे हैं पर यज़ीद की फ़ौज ने पानी नही पिलाया । शहज़ादे अली असग़र जो कि केवल छः माह के थे जब प्यास से व्याकुल होकर तड़पने लगे इमाम हुसैन उन्हें मैदान ए कर्बला में यज़ीद की फौज के पास लाकर कहा "तुम्हारा गुनाहगार मैं हूँ तुम्हे मुझसे दुश्मनी है इस बच्चे ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ये तीन दिन का भूखा प्यासा है इसे पानी पिला दो " इमाम हुसैन ने शहज़ादे अली असग़र को हाथों पर ऊपर उठा कर दिखाया कि देखो मेरे साथ ये नन्हा सा बच्चा है इसे पानी पिला दो चाहो तो मुझे क़त्ल कर दो तभी यज़ीद की फौज से आवाज़ आयी हुर्मुला को बुलाओ (हुर्मुला अरब जगत का सबसे बड़ा तीरंदाज़ था) हुर्मुला को बुलाया गया और कहा गया हुसैन के बच्चे को क़त्ल कर दो वरना फौज का दिल कही नन्हे बच्चे को देखकर पिघल गया तो ये फौज बग़ावत पर उतर आएगी तभी हुर्मुला ने एक ऐसा तीर मारा जिससे हाथी घोड़े जैसे बड़े बड़े जानवरों का शिकार किया जाता है उस तीर ने इमाम हुसैन के हाथ पर जो बच्चा था उसका गला छेदते हुवे आर पार होगया और इमाम हुसैन का छः माह का नन्हा बच्चा इमाम हुसैन के ही हाथों पर दम तोड़ दिया । ज़ुल्म की इन्तेहा सिर्फ यहाँ तक नही रुकी इमाम हुसैन को क़त्ल करने के बाद उनका सर धड़ से अलग कर दिया गया और उस अलग किए गए बदन पर घोड़े दौड़ा कर पामाल (किसी चीज़ को बिल्कुल कुचल कर सपाट कर देना) कर दिया गया उसके बाद इमाम हुसैन के बचे हुवे बच्चों और महिलाओं को कैदी बना लिया गया उन्हें कोड़े लगाए गए साथ मे एक बीमार बेटा सैय्यद ए सज्जाद (हज़रत ज़ैनुलआब्दीन) भी थे जो कि बीमार थे उन्हें हतकड़ी और बेड़ी से क़ैद करके क़ैदी बना लिया गया गले में ख़ारदार तौक़ (गले की बेड़ी जो की आगे से चाकू की तरह धारदार थी ) पहना कर ज़ुल्म ओ सितम करते हुवे शाम (वर्तमान सीरिया) कर्बला (इराक़) से पैदल लाया गया । एक तरफ कांटो भरा रास्ता ऊपर से रेगिस्तान और अरब की तपती गर्मी ना पीने को पानी ना खाने को खाना अगर थक कर रुकते तो तमाचों और कोड़े से मारा जाता । ये लोग कोई और नही हज़रत मोहम्मद के घराने के सगे संबंधी थे जिन्हें क़ैदी बनाया गया जिनपर ज़ुल्म ढाया गया ।
मुहर्रम इमाम हुसैन और उनके साथ शहीद हुवे साथियों की याद में मनाया जाता है । इमाम हुसैन की एक 4 साल की नन्ही बच्ची थी जिसका नाम सकीना था इमाम हुसैन उससे बहुत प्यार करते थे बाद ए शहादत ए इमाम हुसैन ज़ालिमों ने शहज़ादी सकीना पर बहुत ज़ुल्म ढाए उन्हें तमाचों से मारा कोड़े लगाए जब प्यास लगती पानी मांगती तो पानी दिखा कर ज़मीन पर फेंक देते थे सारी महिलाओं और बच्चों को इस तरह एक रस्सी में हाथ से गर्दन तक बांधा गया था कि कोई एक भी रुकता था तो उसका गला रस्सी से कस जाता था । शहज़ादी सकीना प्यास और भूख प्यास तथा सफ़र की थकान से बार बार रुक जाती जैसे ही रुकती गला कस जाता था । इतने ज़ुल्म ओ सितम के बाद हज़रत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन को शहीद करने के बाद उनके घर के लोगों को क़ैदी बना कर इराक़ से सीरिया ज़ुल्म ढाते हुवे लाया गया और शाम (सीरिया) में यज़ीद के दरबार में कैद किया गया वहाँ किसी को ये नही पता था कि इमाम हुसैन हज़रत मोहम्मद साहब के नवासे है और ये उनके घर के सगे रिश्तेदार उनके नवासी-नवासे हैं । जिस क़ैद खाने में क़ैद किया गया था वो वो अंधेरो भरा था ना कही से रोशनी आ सकती थी ना कही से हवा । उसी क़ैद खाने में इमाम हुसैन की नन्ही बच्ची शहज़ादी सकीना की मौत होगयी इतने ज़ख़्म लगे थे जिसकी वजह से बच्ची ना सो पाती थी ना ही लेट पाती थी वो चार साल की मासूम बच्ची अपने पिता को रोज़ याद करती ज़ख़्म की तक़लीफ़ और बाप की जुदाई के ग़म में ना कुछ खा पाती ना सो पति बस रोती रहती और एक दिन इसी तरह रोते रोते मर गई घर वालों को लगा जो क़ैद में थे जिसमें शहज़ादी सकीना की माँ भी थी कि मेरी बच्ची को आज इतने दिन बाद सुकून की नींद आयी है और सो रही है पर जब घंटों गुज़र गए कोई हलचल नही हुई तो माँ ने आवाज़ देकर जगाया बेटी सकीना उठो बेटी सकीना उठो पर उधर से कोई आवाज़ नही आई भाई हज़रत ज़ैनुलआब्दीन और फुफ़ी शहज़ादी ज़ैनब (इमाम हुसैन की सगी बहन) क़रीब आयी उन्होंने भी जगाया कोई हलचल नही अंधेरा इतना था कि कुछ दिखता नही था चारों तरफ ख़ामोशी सी छा गयी इमाम ज़ैनुलआब्दीन ने कहा ऐ फुफ़ी ऐ माँ सकीना अब कभी नही रोयेगी वो अब बाबा (इमाम हुसैन) के पास जाने की भी ज़िद नही करेगी सकीना हम सब को छोड़ कर बाबा के पास चली गयी । क़ैद खाने में कोहराम मच गया रोने की आवाज़ सुनकर यज़ीद की बीवी आगयी उसने यज़ीद से पूछा ऐ यज़ीद तूने किसे क़ैदी बनाया है जिसके रोने की रोज़ इतनी दर्दनाक आवाज़ आती है मुझे उन क़ैदियों से मिलना है बहुत ज़िद करने पर यज़ीद ने अपनी बीवी को क़ैद खाने की तरफ जाने दिया जब यज़ीद की बीवी क़ैद में आयी और उसने पूछा आप लोग कौन क़ैदी से तब इमाम ज़ैनुलआब्दीन और शहज़ादी ज़ैनब ने अपना परिचय दिया इतना सुनकर यज़ीद की बीवी रोने लगी कि हाए मोहम्मद के घराने को इस यज़ीद ने क़ैदी बनाया मोहम्मद के नवासे को क़त्ल कर दिया । रोती रोटी यज़ीद के पास गई और कहा फ़ौरन उन क़ैदियों को रिहा करो ऐ ज़ालिम तू जानता है तूने क्या किया रसूल के घर वालों को क़ैदी बनाया रसूल के नवासे को क़त्ल किया । यज़ीद को मजबूरन रिहा करना पड़ा जब इमाम ज़ैनुलआब्दीन को यज़ीद ने बुलाया अपने दरबार में उस वक़्त अरब एशिया और यूरोप के बहुत समान्नित और बड़ी हस्ती वहाँ बैठी थी इमाम ज़ैनुलआब्दीन को देखकर सभी कहने लगे ऐ यज़ीद ये कौन क़ैदी है जिसे तूने इतना जकड़ कर रखा है इमाम ज़ैनुलआब्दीन ने अपना और अपने परिवार का परिचय दिया सभी दरबारी हक्का बक्का रह गए वो सब इमाम हुसैन और हज़रत मोहम्मद साहब को मानने वाले थे सभी यज़ीद के ख़िलाफ़ होगए और कहने लगे तभी जब तुझसे पूछा जाता था हज़रत मोहम्मद के घराने से इस सभा में कोई क्यों नही आता जो तू अपनी ख़िलाफ़त के लिए बुलाता है और तू कहता था इमाम हुसैन ने इस्लाम धर्म छोड़ दिया । ऐ यज़ीद तूने हम सभी को धोखे में रखा ग़ुमराह किया आज तेरी असलियत और सामने आगयी तू बेनक़ाब होगया सभी समझ चुके थे उनसे बहुत बड़ी ग़लती होगयी हज़रत मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन को ग़लती से क़त्ल कर दिया यज़ीद के बहकावे में आकर और पैसों की लालच में आकर ।
सभी कैदियों को रिहा कर दिया गया एक साल हज़रत रसूल के घराने को क़ैदी बनाया गया था आज ही के दिन 20 सफ़र को रिहा किया गया जो कि इमाम हुसैन की शहादत 10 मुहर्रम के बाद कि तारीख है इस तरह आज इमाम हुसैन को शहीद हुवे 40 दिन पूरे होते हैं जिनकी याद में हम *चेहलूम* मानते है इसे अरबी ज़बान में अर्बाइन अर्थात चालीस रोज़ कहते हैं । पूरी दुनिया में आजके दिन चेहलूम मनाया जाता है और इमाम हुसैन को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है इसमें सबसे बड़ा शोक सभा का आयोजन इराक़ के कर्बला शहर में होता है जहाँ इमाम हुसैन को शहीद किया गया था । कर्बला में हो इमाम हुसैन का रौज़ा है जहाँ दुनिया भर से लोग इमाम हुसैन के रौज़े की ज़ियारत करने जाते हैं । जिनमे सभी धर्म मज़हब रंग रूप के लोग शामिल होते हैं हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सभी जो इंसानियत और अमन चैन चाहता है वो हर शख़्स के आदर्श है इमाम हुसैन ।
इंसान को बेदार तो हो लेने दो
हर क़ौम पुकारेगी हमारे हैं हुसैन
👍
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