या नबी हम शर्मिंदा हैं, मुसलमान शैतान के कारिंदा हैं

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हज़रत मोहम्मद सल्लाहो अहले वा इलाही वस्सलम फ़रमाते हैं । वतन से मोहब्बत ईमान की निशानी हैं । जिस रसूल ने ये कहा हो वतन से मोहब्बत ईमान की निशानी है उसने सीधे तौर पर बता दिया अपने मुल्क़ अपने देश से मोहब्बत करो अब ये हम पर सुन्नत है कि अपने देश से मोहब्बत करें । ये वही रसूल हैं जिन्हें हर तरह की अज़ीयत दी गयी अज़ीयत देने वाले कोई ग़ैर नही अपने थे । वही अज़ीयत आज भी अपने दे रहे हैं । पूरी दुनिया में राहमतुल आलमीन बनकर आए नबी की उम्मत ही एक दूसरे को अज़ीयत दे रही है कभी ईरान-इराक़ कभी सऊदी-ईरान, सीरिया ,यमन, तुर्की , अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान यहाँ मुसलमान ही मुसलमान का दुश्मन है । मुसलमान ही एक दूसरे को अज़ीयत दे रहा है कभी जन्नत की लालच का ख़्वाब देखा कर क़त्लो ग़ारत करके कभी हूरों की आरज़ू लेकर बेगुनाहों का ख़ून बहाता रहता है । जिस नारा ए तक़बीर को हर घर में बुलंद होना था उसे जेहादी बना दिया गया

अल्लामा इक़बाल ने क्या ख़ूब कहा है

अजब तमाशा हुआ इस्लाम की तक़दीर के साथ
क़त्ल ए शब्बीर भी हुआ तो नारा ए तक़बीर के साथ

 क्या यही शिक्षा दिया था रसूल ने कि मेरे बाद उम्मत इतनी तब्दीलियाँ कर दे । जिस नबी ने लाख मुसीबत सही पत्थर खाएं ज़िला बतर होना पड़ा किसके लिए हमारे और आपके लिए अगर नबी भी उस वक़्त बग़ावत करते क़त्ल ओ ग़ारत करते अपनो से लड़ते तो आज हमारा नामों निशान ना होता लेकिन नबी ने सब्र से काम लिया और इसलिए तक़लीफ़ सहते रहे ताकि हमे तक़लीफ़ ना सहनी पड़े । पर हुआ उसका उल्टा हम एक दूसरे के दुश्मन बन गए अमन ओ चैन का पैग़ाम देने की जगह दहशतगर्द कहलाने लगे । आख़िर ये कौन सा इस्लाम कौन सा मुसलमान है जो अपने नबी की सीरत और क़ुरआन के पैग़ाम के विपरीत जा रहा है । यक़ीनन ये मुसलमान नही है पर दुनिया ने इन्हें ही मुसलमान समझ लिया । हम किसी की हिमायत और एक दूसरे को नीचा दिखाने को अपनी शान समझने लगे । सऊदी, तुर्की, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान, इराक़ के ग़लत फैसलों का समर्थन करके ख़ुद को बड़ा समझने लगे ये समझने लगे बस मुस्लिम ही सबसे ताक़तवर है आज पूरी दुनिया में अगर आप हो तो अपनी ताक़त के ज़ोर पर नही अपने इल्म के ज़ोर पर पूरी दुनिया में मुसलमान है कभी सोचा है क्यों है ? कुछ तो डर के होगए की चलो मुसलमान है हमे क़त्ल नही किया जाएगा और कुछ आपकी अच्छाइयों से पर ये क्या ये कौन सा मुस्लमान है जो मस्जिदों में धमाके करता है मुसलमान ही मुसलमान को मारता है । 1400 साल से अब तक मुसलमान ही मुसलमान का दुश्मन रहा है और आज भी है कभी मिल्कियत को लेकर कभी फ़िरके को लेकर कभी कुछ लेकर आज भी मुसलमान ही मुसलमान से लड़ रहा है और ये लड़ता रहेगा क्योंकि ना ये रसूल के मानने वाला मुसलमान है ना इस्लाम वाला ये तो बस खून लगा कर शहीदों में शामिल होने वाला मुसलमान है । काम ऐसा करो कि दुनिया कहे ये मुसलमान है ना कि "ये काम मुसलमान का है" । वक़्त है एक होजाओ जब क़ुरआन ने हमे शिया -सुन्नी हनफ़ी वहाबी अहले हदीस इत्यादि नही कहा सिर्फ मुस्लिम कहा तो फिर किस बिना पर हम अलग हैं ? 

क़ुरआन फ़रमा रहा है : मोमीन तो आपस में भाई भाई है तो अपने भाइयों में समझौता करा दिया करो और अल्लाह से डरते रहो ताकि तुमपर रहम किया जाए (सूरह हुजरात आयत 10)

हज़रत रसूल ए ख़ुदा स0अ0व0व0 फ़रमाते हैं 
। वो मुस्लिम जो हैसियत के बावजूद क़र्ज़ चुकाने में देरी करता है उसने तमाम मुस्लिमों पर ज़ुल्म किया 

रोज़े क़यामत ख़ुदा के नज़दीक सबसे अज़ीम मन्ज़िलत उस शख़्स की होगी जो रूहे ज़मीन पर लोगो कप सबसे ज़्यादा नसीहत करता रहा है ।

मुस्लिम वो हैं जिसके हाथ और ज़बान से मुसलमान सलामत रहें 

बेशक़ हमारे शिया (दोस्त) वो हैं जो हमारी पैरवी करें हमारे नक़्शे क़दम पर चले और हमारे क़ीरदार को अपनाएं

अल क़ुरआन : और जब उनसे कहा जाता है कि ज़मीन पर फ़साद ना करो तो वो जवाब देते हैं हम तो सुधार करने वाले हैं । सावधान ! हक़ीक़त मे यही लोग फ़साद पैदा करने वाले हैं , परन्तु वह समझ नही रखते (सूरह बकरा आयत 11-12) 
क़ुरआन ने साफ तौर पर इशारा करके बता दिया है कि ज़ुल्म ज़बरदस्ती इस्लाम नही है जो लोग फ़साद फ़ैलाते हैं बेगुनाहों का क़त्ल करते हैं वो इस्लाम और मुसलमान नही हैं । ना वो लोग हैं जो फ़िरक़ों में बंटे हुवे हैं । जन्नत जहन्नुम सब आमाल से पायेगा जिसका जैसा आमाल होगा वो उसका हक़दार होगा  ना कि किसी बेगुनाह को मारने से जन्नत मिलती है ना किसी को काफ़िर कहने से बल्कि आपके आमाल और आपके लोगों से व्यवहार के अनुसार आपको जन्नत जहन्नुम मिलेगी । आइये रसूल की सीरत पर जलते हुवे इत्तेहादुल मुसेलमीन के पैग़ाम को आम करें और अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़ ले अगर हमें गुमराह नही होना हो वरना शैतान तो हमारे हमराह शाना बा शाना खड़ा ही है फूट डालने और ग़ुमराह करने को । और अल्लाह ने फ़रमाया लकुम दीनकुम वलिये दीन । दीन में किसी तरह की ज़ोर ज़बरदस्ती नही है । हर इंसान अपने आमाल का मालिक है । इस ईद मिलादुन्नबी हफ़्त ए वहदत 12 से 17 रबीउल अव्वल तक कोशिश करें एक दूसरे को उम्मत ए मुस्लेमीन की और रसूल की सीरत की पैरवी करने की । वरना ढल तो रहे हैं एक दिन हम ख़त्म भी होजायेंगे ।

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