अल्लाह ने पहले ज़िन्दगी बनाई या मौत ? ज़िन्दगी सख़्त होती है या मौत ?
क़ुरआन एक किताब नही एक पूरी क़ायनात है उसे समझने की ज़रूरत है पढ़ने की नही क्योंकि क़ुरआन का मायने ही पढ़ा हुआ है । क़ुरआन समझने के लिए आई है ताकि आप अपनी तक़लीफ़ों का हल इससे निकाल सकें ।
क़ुरआन की हर सूरह हमारी ज़िन्दगी से होकर गुज़रती है ज़रूरत है उसको समझने की पस अगर आपके दिल और नीयत पाक़ है तो आपको क़ुरआन और उसके लफ़्ज़ समझ आयेंगे वरना आपको बस एक अरबी क़िताब लगेगी ।
क़ुरआन ने कैसे हमारी ज़िन्दगी के हर मरहले को पहले ही बता दिया हमने कभी ग़ौर ही नही किया ।
सबसे पहले ग़ौर करते हैं क़ुरआन के दिल (सूरह यासीन) पर जिसका तर्जुमा कुछ इस तरह है *और हम जिस शख़्स को बहुत ज़्यादा उम्र देते है तो उसे खलक़त के उलट कर फिर बच्चों की तरह मजबूर कर देते हैं तो क्या वो लोग समझते नही*। इस आयत पर अगर ग़ौर करें तो तो बहुत सारे सवाल के जवाब आपको मिल जायेंगे बुजुर्गों का बीमार होना, बच्चों की तरह ज़िद्द करना पेशाब पैखाना बिस्तर पर कर देना जैसे बच्चे पैदा होते हैं मजबूर होते हैं वैसे ही उम्र ज़्यादा होने पर इंसान फिर से मजबूर होता है और ये क़ुदरत का नियम है जिसे अल्लाह ने क़ुरआन मे पहले ही बता दिया है । बुजुर्गों का इस उम्र में मजबूर होना बच्चों की तरह हरक़त करना ये क़ुदरती है इसमें उनका कोई दोष नही है ।
अब अल्लाह फिर सूरह मुल्क़ में फ़रमा रहा है *अललज़ी खलक़त मौत वल हयात* जिसका तर्जुमा कुछ इस तरह है *हमने मौत और ज़िन्दगी को पैदा किया ताकि तुम्हे आज़माये की तुममें से काम में अच्छा कौन है* । आपने ग़ौर किया ? अल्लाह फ़रमा रहा है उसने पहले मौत को पैदा किया ,लफ़्ज़ ए मौत पहले आया है फिर ज़िन्दगी का ज़िक्र है । इसका मतलब ये हुआ ज़िन्दगी से ज़्यादा तक़लीफ़ मौत से होती है । पैदा होकर दुनिया में आने से कई रिश्ते क़ायम होजाते हैं ,रिश्तों के साथ एक लगाव होजाता है इंसान जब दुनिया से जाता है तो सारी उम्मीद और हसरत को साथ लेकर चला जाता है । अल्लाह ने फ़रमाया मौत को पैदा किया इसका मतलब है मौत के साथ इंसान के मरने की वजह वक़्त जगह सब्र सब पैदा किया । वरना जिस अल्लाह ने 6 दिनों में पूरी क़ायनात पैदा की उसे मौत को पैदा करने के लिए वक़्त नही लगता । हमे लगता है ज़िन्दगी जीना आसान है पर क़ुरआन तो कुछ और ही कह रहा है ज़िन्दगी से ज़्यादा सख़्त मौत है । ज़िन्दगी बचाने के लिए डॉक्टर है जिनके पास जान बचाने के तरीके है पर मरते हुवे को ज़िन्दा नही कर सकते ना मरने वाले के खानदान वालों के ग़म और तक़लीफ़ को कम कर सकते हैं इसीलिए एक दौर के ख़ात्मे के लिए उसकी वजह उसकी जगह उसका वक़्त उसके रिश्ते सब पहले तय किये फिर मौत को उसके लिए पैदा किया । ज़िन्दगी हम किसी भी तरह से जी लेते हैं ख़ुशी ग़म अमीरी ग़रीबी घर बेघर के पर मारने के लिए हमारे बस कोई अल्फ़ाज़ नही होता उसका एक बहाना होता है । ज़िन्दगी का मज़ा उतना ही ले जितना मौत की तक़लीफ़ को सह सकें क्योंकि मौत बर हक़ है एक ऐसा सच है जिसे झुठलाया नही जा सकता । अगर मौत ना आती तो सारे रिश्ते नाते सारी संवेदना , अच्छाई बुराई, ख़ुशी ग़म सब ख़त्म होजाता अगर आपको ये पता चल जाता कि आप सौ साल ज़िन्दा रहेंगे तो आपके बच्चे आपके नाते रिश्तेदार आपसे बेताल्लुक़ होजाते इस दुनिया में ख़ुशी ग़म नाम की चीज़ ख़त्म होजाती , माँ बाप भाई बहन ये सारे रिश्ते किसी काम के ना रहते लोग मरने वाले दिन आते आपके पास खड़े रहते जब आप मर जाते आपको उठा कर दफना देते । बस इसीलिए मौत को एक राज़ रखा गया जिसका इल्म सिर्फ़ अल्लाह को है और इसी ज़िन्दगी मौत के बीच सारे रिश्ते क़ायम है हर एक से लगाव है मोहब्बत है ख़ुशी ग़म अहमियत शादी ब्याह औलाद,जुनून शोहरत, लगन, अमीरी ग़रीबी ऊंच नीच है अगर मौत ना होती तो शायद ही दुनिया का और उसके रिश्तों का कोई वजूद होता ज़िन्दगी जीना बहुत आसान है पर मरना बहुत मुश्किल कोई नही चाहता अपनो को छोड़ कर इस ऐशोआराम को अपनी दौलत ओ शोहरत को छोड़ कर जाएं । ये दुआ ताबीज़ नजूमियों के चक्कर लगाने और दूसरों के सामने अपने हाल रोने से पहले अगर एक बार क़ुरआन पर ग़ौर कर ले तो आपको आपको आपके सारे मसायल के हल मिल जायेंगे क़ुरआन में हर ख़ुश्क ओ तर चीज़ों का ज़िक़्र है आसमान की ऊंचाइयों से लेकर समुन्दर की गहराइयों तक का सारा राज़ इशारों में क़ुरआन मे बता दिया गया है । बस अपने दिल ओ नियत को पाक़ कीजिये और क़ुरआन पर ग़ौर कीजिए फिर आपको दुनिया से शिक़ायत करने का मौक़ा नही मिलेगा ।
अगर आपको पसन्द आए तो हमे कमेंट करके ज़रूर बताएं । आपके फीड बैक का हमे इंतेज़ार रहेगा । वस्सलाम
Good 👍
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