कौन है हज़रत अली, जाने कब और कैसे हुई शेरे ख़ुदा की शहादत
दुनिया में कौन ऐसा होगा जिसने हज़रत अली (अ. स) का नाम नही सुना होगा ।
कौन अली जिसको मदद के लिए पुकारों तो हर हाल में मदद होती है , हर मज़हब हर ज़ात हर रंग ओ ज़बान के लोग जिसे माने वो अली फिर चाहे वो मुसलमान हो या हिन्दू सिख ईसाई कोई ऐसा नही होगा जो हज़रत अली को मानता नही होगा ।
हज़रत अली मुसलमानों के चौथे ख़लीफ़ा और शियों के पहले ईमाम (नेता,रहनुमा,दिशानिर्देशक) हैं । हज़रत अली इंसाफपसंद इस्लाम पसंद करते थे । यतीमों और ग़रीबो को अपना दोस्त समझते थे जब अरब में ईसाई , यहूदी और मुस्लिम के बड़े बड़े घराने हज़रत अली को दावत पर बुलाते थे तो हज़रत अली ये कह कर मना कर देते थे की मेरी जगह इन यतीमों और ग़रीबो को दावत पर बुलाओ , रात के अंधेरे में छुप कर आप ग़रीबो के घर खाना पहुंचाते थे ।
आपसे बड़ा आलिम कोई नही था ना आपसे बड़ा कोई बहादुर आपसे दुनिया का कोई भी सवाल पूछा गया आपने उसका जवाब दिया आपने फ़रमाया ये सीना इल्म की दीवार है पूछ लो जो भी पूछना हो इससे पहले की मैं तुम्हारे दरमियान से चला जाऊं ।
आप जंग में भी अव्वल रहते थे और इल्म में भी आपने ही फ़रमाया कोई काम छोटा नही होता है ख़ुद अरब के सबसे मशहूर घराने से थे फिर भी आप मज़दूरी करते जो पैसा कमाते उससे दूसरों की मदद कर देते रात में ईबादत करते दिन मे रिज़्क़ (रोज़ी रोटी) की तलाश में निकल जाते आपको जो काम मिलता वो कर लेते आपने खेत जोतने से लेकर कुंवा खोदने तक का काम किया आपको क़ायनात का मौला कहा जाता है अर्थात दुनिया का बादशाह आपके एक इशारे पर दौलत का ढेर लग जाता पर आपने दुनिया को हक़ और इंसाफ की बाद बताई मेहनत करना सिखाया ।
आपने ही फ़रमाया इस्लाम ज़ोर ज़बरदस्ती और तलवार के बल पर नही इल्म,अदल ओ इन्साफ के बल पर फ़ैलेगा, जहां ज़रूरत हुई वहाँ जंग भी की आपकी बहुत सारी मशहूर जंगे हैं उसमें से एक है जंगे ख़ैबर, ख़ैबर एक किला था जिसके दरवाज़े का वज़न तक़रीबन सात सौ मन था जिसे आपने दो उंगलियों से क़ुव्वत ए रब्बानी से उखाड़ फेंका था ।
आपने दुनिया को मुख़ातिब करके कहा था *ऐ दुनिया जा मेरे अलावा किसी और को धोखा दे मैंने तुझे तलाक़ ए बाइन दे दिया फिर तेरी तरफ़ रुजू करने का सवाल ही नही होता । इसका मतलब ये है जिस तरह शौहर अपनी बीवी को तलाक़ दे दे तो फिर सारे रिश्ते ख़त्म होजाते हैं उसी तरह हज़रत अली ने भी दुनिया को और दुनिया की दुनियावी ख़्वाहिशों को तीन तलाक़ दे दी ।
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हज़रत अली ने दुनियावी लाज़ज़्तो के बारे में क्या फ़रमाया --
एक दिन हज़रत अली ने जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह अंसारी को लम्बी लम्बी सांस लेते देखा । पूछा ऐ जाबिर क्या तुम्हारी लम्बी ठंडी सांस दुनिया के लिए हैं ? जाबिर ने फ़रमाया मौला है तो ऐसा ही
आपने फ़रमाया ऐ जाबिर सुनो इंसान की ज़िन्दगी का दारोमदार सात चीज़ों पर है और यही सात चीजें है जिनपर लज़्ज़ातों का खात्मा है ।
1 खाने वाली चीजें 2 पीने वाली चीज़े 3 पहनने वाली चीज़ें 4 लज़्ज़त ए निक़ाह वाली चीजें 5 सवारी वाली चीजें 6 सूंघने वाली चीजें 7 सुनने वाली चीजें
ऐ जाबिर अब इनकी हक़ीक़त पर ग़ौर करो : खाने में बेहतरीन चीज़ शहद है जो मक्खी का थूक है ।
पीने की बेहतरीन चीज़ पानी है यह ज़मीन पर मारा मार फिरता है ।
बेहतरीन पहनने की चीज़ दीबाज़ (रेशम) है या कीड़े का थूक है ।
और बेहतरीन लज़्ज़त औरत है, जिसकी हद यह है कि पेशाब का मक़ाम पेशाब के मक़ाम में होता है दुनिया इसकी चीज़ सबसे ज़्यादा पसन्द करती है सबसे अच्छी निग़ाह से देखती है वह वही है जो जिस्म में सबसे गंदी है ।
और बेहतरीन सवारी घोड़ा है जो कत्लों केताल का मरकज़ है
और बेहतरीन सूंघने की चीज़ मुश्क है, जो एक जानवर के नाफ़ का सूखा हुआ खून है ।
और बेहतरीन सुनने की चीज़ गाना है जो सबसे बड़ा ग़ुनाह है ।
ऐ जाबिर ऐसी चीज़ों के लिए कोई ठंडी सांस क्यों ले ।
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हज़रत अली की शहादत
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हज़रत अली को जंग में शहीद करने की किसी की हिम्मत नही थी जब दुश्मन ए अली ने मशवरा किया कि किस तरह अली को शहीद किया जाए जंग में तो कोई भी उनके सामने टिकता नही है तब एक दुश्मन ए अली ने फ़रमाया की अली को बस एक ही वक़्त शहीद किया जा सकता है वो है नमाज़ का वक़्त जब अली इबादत ए ख़ुदा में इस क़दर मश्गूल होजाते है कि उन्हें अल्लाह की इबादत के सिवा किसी और चीज़ का होश ही नही होता । तैयारी शुरू की गयी अब्दुल रहमान इब्ने मुल्जिम जो हज़रत का क़ातिल है उसको तय किया गया उसने एक हज़ार दिरहम की एक तलवार ख़रीदी और उसे मिस्र से लाए गए ज़हर में एक महीना तलवार को गरम करने के बाद उसी ज़हर में तलवार को बुझाता जिससे सारा ज़हर तलवार में सोख चुका था । इतिहासकारों का मानना है वो ऐसा ज़हर था जिससे सारे मिस्र को तबाह किया जा सकता था ।
वो कूफ़े आया हज़रत अली को क़त्ल करने उसकी नज़र एक हसीन औरत पर पड़ी जिसका नाम क़त्तामा बिन्ते नजबा था जो माविया की रिश्तेदार थी । इब्ने मुल्जिम उसके घर में रुक गया उसने शादी की ख़्वाहिश ज़ाहिर की उस औरत ने एक शर्त रख दी पहले हज़रत अली का सर ला कर दो उन्हें क़त्ल करो तभी तुमसे शादी करेंगे । अली का क़त्ल ही तुम्हारी मेहर है अब्दुर्रहमान इब्ने मुल्जिम ने कहा इसी काम के लिए तो मैं यहाँ आया हूँ ।
फिर वो रात आयी जिसकी सुबह ही ना हुई 19 माहे रमज़ानुल मुबारक़ को हज़रत अली बहुत बेचैन हुवे बार बार उठते और सहन में आकर आसमान की तरफ देखते जब हज़रत अली की बेटी ने पूछा बाबा क्या हुआ आपको इस हाल में पहले कभी नही देखा आप आज बहुत बेचैन है सब ख़ैरियत , हज़रत अली ने फ़रमाया बेटी आज के बाद तेरा बाबा नही मिलेगा ये कह कर सहरी का वक़्त हो चला जौ की सूखी रोटी और नमक से सहरी सहरी और सिर्फ़ नमक खजूर से इफ्तार करने वाले हज़रत अली ने कहा बेटी आज दूध लेते आना बकरी का दूध आया सहरी की नमाज़ ए फ़ज्र का वक़्त हुआ । मस्जिद में दाख़िल हुवे देखा एक शख़्स पेट क्व बल मस्जिद में सोया है उन्हें पता था आज ये उन्हें शहीद कर देगा हज़रत अली ने उससे कहा उठा जा नमाज़ का वक़्त हो चला है अपने काम को पूरा कर । फिर हज़रत अली ने अज़ान दी और नमाज़ के लिए खड़े हुवे जैसे ही सजदे में गए अब्दुर्रहमान इब्ने मुल्जिम ने वही ज़हर में बुझी हुई तलवार निकाली और सर पर ज़ोरदार वार किया यह तलवार का वार उसी जगह हुआ जहां जंग ए खंदक में उमरो बिन अब्दोवद की तलवार लग चुकी थी हज़रत अली ने फ़रमाया रब्बे काबा की क़सम आज अली क़ामयाब होगया । कूफ़े में शोर होगया कूफ़े में कोहराम मच गया सभी रोते पीटते आगए । हज़रत अली के क़ातिल को पकड़ लिया गया हज़रत अली ने अपने बेटे ईमाम हसन से शर्बत मंगवाया और कहा उसे दो वो कल से प्यासा है अपने क़ातिल को शर्बत पिलाया फिर वसीयत की देखो मेरे बाद हंगामा बरपा मत करना एक दूसरे का खून मत बहाना आपस में मिल कर रहना ग़रीबो और यतीमों का ख़्याल रखना उन्हें खाना पहुंचाना उनका मेरे सिवा इस दुनिया में कोई नही है । इसकी रस्सी खोल देना इसे एक ही ज़र्बत लगाना इसने मुझे एक ही ज़र्बत लगाई है । सारी वसीयत करने के बाद हक़ीमो ने कहा ज़हर बहुत फैल गया है थोड़ा दूध मिले तो कुछ आराम मिले पर बचना मुश्किल है । कूफ़े के हर घर से बच्चे बूढ़े जवान अपने ईमाम के लिए दूध लेकर चले आए । 21 रमज़ानुल मुबारक़ 40 हिजरी को यतीमों और ग़रीबो का ईमाम हक़ और इंसाफ का पैरोकार इल्म ओ अदल का मोहफ़ीज़ मुश्किल कुशा शेरे ख़ुदा इस दुनिया ए फ़ानी को छोड़ कर हक़ीक़ी दुनिया को चला गया । काश की दुनिया हज़रत अली को समझती तो आज दुनिया की तस्वीर कुछ और होती
अल्लाहहुमा ला'आन क़तलतन अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली इब्ने हज़रत अबू तालिब अलैहिस्सलाम । हज़रत अली के क़ातिलों पर बेशुमार लानत।
Mashallah bhai ......haye Ali as.😭
ReplyDeleteबर इब्ने मुल्जिम लानत बेशुमार
ReplyDeleteIts Beautiful
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