मशीनों पर सवारी एंटीबायोटिक से यारी, कहीं ये ना पड़ जाए हमे भारी

नीम हक़ीम ख़तरे जां, ये कहावत तो आपने ज़रूर सुनी होगी। आज इस आधुनिक मशीनीकरण के दौर में ये कहावत पूरी तरह से चरितार्थ होने लगी है।

हर गली मोहल्ले में मुन्ना भाई जैसे डॉक्टरों की फ़ौज खड़ी है साथ ही उनके पीछे खड़ा है पैथोलॉजी जैसा मौत का साम्रज्य। अप्रशिक्षित और अशिक्षित पैथोलॉजी वालों ने तो कितनो को बिन बीमारी के ही बीमारी देकर मार डाला।

माइक्रोसॉफ्ट जैसी टेक्निकल कम्पनी कर मालिक बिलगेट्स ने कहा कम्प्यूटर और तकनीक से कुछ भी संभव है, कम्प्यूटर ने इंसान को स्मार्ट बना दिया है। इसपर अली बाबा ग्रुप के मालिक़ जेक मा ने कहा कम्प्यूटर और तकनीक से चाहे जितनी तरक़्क़ी कर ली जाए पर *कम्प्यूटर कभी इंसान को नही बना सकता, हाँ इंसान ज़रूर कम्प्यूटर को बना सकता है नई नई तकनीक पैदा कर सकता है, कम्प्यूटर जितना भी स्मार्ट होजाए पर रहेगा इंसान से पीछे ही*। अब आते हैं हम असली मुद्दे पर भारत में 57.3% प्रतिशत फ़र्ज़ी डॉक्टर है जिनके पास किसी प्रकार की कोई डिग्री नही है उसमें भी 31.7% डॉक्टरों ने केवल हाई स्कूल तक ही शिक्षा हासिल की है ये WHO द्वारा भारत में किए गए एक सर्वे की रिपोर्ट कह रही है।

अब आप बताइये जब देश की आधी आबादी से भी ज़्यादा फ़र्ज़ी डॉक्टर हो तो क्या हम स्वस्थ रह सकते है ? ये सारा खेल सरकार की नाक के नीचे अधिकारियों की मिलीभगत से खेला जाता है। आज डॉक्टर मरीज़ को देखने से पहले ही जाँच की लम्बी चौड़ी लिस्ट बना कर अपने पसंदीदा पैथोलॉजी (विकृतिशास्त्र) वाले के पास भेज देते हैं। वहां कमीशन का खेल होता है और मरीज़ का बिल देखकर हार्ट फेल होता है।

यहाँ केवल डॉक्टर ही नही ना जाने कितने फ़र्ज़ी पैथोलॉजी लैब संचालित है जिसकी वजह से लोग असमय काल के गाल में समा रहे हैं। डॉक्टर ख़ुद से अनुभव से कम और पैथोलॉजी की रिपोर्ट से के आधार पर ज़्यादा दवा देते हैं। कई बार तो ऐसा होता है हमे कुछ लगता है डॉक्टर का अनुभव कुछ और बताता है और जाँच में कुछ और ही निकल आता है। डॉक्टर लक्षणों के आधार पर कम पैथोलॉजी की जाँच रिपोर्ट को अधिक सत्य मान कर दवा देता है जिसका नतीजा ये होता है जो बीमारी हमारे शरीर में होती भी नही है उल्टी सीधी दवा खाने से वो भी होजाती है।

ऐसा ही एक केस मेरे जानने वाले के साथ हुआ उन्हें पैर में मामूली सी अंदरूनी चोट का आभास हुआ वो लखनऊ गोमती नगर के एक प्रसिद्ध अस्पताल में जाते हैं वहां उनका ट्रीटमेंट शुरू होता है एक दो महीना उन्हें ऐसी दवा दी जाती है जिसका उस दर्द से और उस रोग से कुछ लेना देना नही होता। पैर की मामूली चोट के लिए उनहे हाई पॉवर की एंटीबायोटिक दवा दी जाती है जिसके सेवन से उनका लिवर डैमेज होगया।

ऐसे एक लाख केस है जहां डॉक्टरों की लापरवाही और पैथोलॉजी की ग़लत जाँच रिपोर्ट से लोग असमय मर जाते हैं।

विश्व स्वस्थ संघठन के अनुसार भारत में 57.3 प्रतिशत फ़र्ज़ी चिकित्सक है जिनके पास मेडिकल की कोई डिग्री नही है उसमें 31.4 प्रतिशत केवल दसवीं पास हैं। नर्सों और मिडवाइब्स में 67.1 प्रतिशत केवल दसवीं तक पढ़ाई की है।
देश में 75 ज़िलों में किसी भी नर्स के पास मेडिकल क्वालिफिकेशन नही है। अब तो जगह जगह सभी बड़े अस्पताल ने अपना ख़ुद का पैरा नर्सिंग कॉलेज खोल रखा है उसमें भी पता नही कितने कॉलेज की मान्यता है भी या नही, इसकी भी जाँच होनी चाहिए।
सभी स्वास्थ्य कर्मियों में 59.2 प्रतिशत शहरी इलाकों में है और 40.8 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक़ देश में 20 लाख स्वास्थ कर्मी हैं। इनमें 43.6 प्रतिशत डॉक्टर, 37.5 प्रतिशत नर्से और मिडवाइब्स हैं जबकि 2.6 प्रतिशत डेंटिस्ट हैं।
जिस तरह देश मुन्ना भाई जैसे एमबीबीएस पैदा होरहे हैं एक दिन डॉक्टर का पेशा बस धंधा बन कर राह जाएगा ईलाज नही होगा। आज ईलाज के नाम पर खून चूस रहे हैं कल आप अपॉइंटमेंट लेने से पहले आपसे कहा जाएगा आप अपना दिल गुर्दा फेफड़ा सब गिरवी रख दे तभी आपका ईलाज शुरू हो सकता है।


डॉक्टरों की ही शह पर पैथोलॉजी लैब वाले अपनी मनमानी कर रहे हैं मरीज़ को उल्टी सीधी रिपोर्ट पकड़ा देते हैं उन्हें इससे फ़र्क़ नही पड़ता है कि मरीज़ का उस जाँच के आधार पर जो ईलाज चलेगा उससे क्या हाल होगा। क्योंकि उन्हें पता है डॉक्टर अपना है। डॉक्टर कोई भी ज्ञान नही रहता वो भी जाँच रिपोर्ट के आधार पर ही ईलाज शुरू करता है चाहे मरीज़ के लक्षण और तक़लीफ़ उस रिपोर्ट से मिले या ना मिले।

पैथोलॉजी लैब को चलाने के लिए पैथोलॉजी एमडी का होना अनिवार्य है। वो प्रशिक्षित हो तथा उन्हें इसका अनुभव हो। लैब टेक्नीशियन को DMLT जैसे कोर्स किये हो या माइक्रोबायोलॉजी से एमएससी हो जो कीटाणु, विषाणु और जीवाणु के बारे में एवं मानव शरीर और उसकी संरचना के बारे में जानता हो जिसे पता हो किस कैमिकल कंपाउंड से शरीर पर और उसकी कोशिका पर क्या असर पड़ेगा पर आज कल बाहरवीं पास हुवे लड़की लड़की भी लैब टेक्नीशियन बन जाते हैं लैब टेक्नीशियन की ज़रा सी लापरवाही हमे बीमार और अपाहिज बना सकती है उनकी है। सीरम संबंधी टेस्ट (एसजीपीटी) के लिए प्लेन वॉयल, सीबीसी संबधी जाँच के के लिए ईडीटी वॉयल और शुगर के लिए फ्लोराइड वॉयल का उपयोग किया जाता है। खून का नमूना लेने से पहले जिस जगह सुई लगानी हो उसे साफ करके हाथो में दस्ताना पहन कर खून का नमूना लेना चाहिए पर ऐसा नही होता है। अप्रशिक्षित और अनुभवहीन डॉक्टरों एवं पैथोलॉजी वालों के हाथ में हमारी जान है ज़रा सी लापरवाही और खेला समाप्त। 

क्या पैथोलॉजी वाले कोई फ़रिश्ता है ? भगवान है ? नही ना वो भी एक मशीन के सहारे हैं मशीन में खून का नमूना तापमान के अनुसार रिपोर्ट देता है कम ज़्यादा तापमान पर रिपोर्ट अलग आ सकती है। फिर आप इतने दावे से कैसे कह सकते हैं की पैथोलॉजी की रिपोर्ट सही हो सकती है। *इंसान ने मशीनों को बनाया है मशीन ने इंसान को नही* मशीन सर्वादसत्य हो इसकी क्या गारण्टी है ? आपको कमज़ोरी लग रही हो आपको बुखार लग रहा हो और आप फूल बॉडी चेकअप करवा लें उसके आधार पर दवा खाएं फिर भी आपको कमज़ोरी और बुख़ार लगे तो आप क्या समझेंगे ? मैं नही मानता कि जाँच रिपोर्ट सही होती है , आप अलग अलग पैथोलॉजी में जाँच करवाए सभी की भिन्न भिन्न रिपोर्ट आएगी कभी आपने सोचा है ऐसा क्यों होता है ? मशीन एक केमिकल एक जाँच एक लैब टेक्नीशियन की जानकारी एक फिर भी रिपोर्ट अलग अलग क्यों आजाती है ? क्योंकि हम मशीनों से अपना ईलाज करवाने लगे हैं डॉक्टर भी बिना डिग्री का गूगल का सहारा ले रहा है हम भी। चारो तरफ मौत के सौदागर का बाज़ार गर्म है  स्वास्थ्य के क्षेत्र में इतना ज़्यादा प्रतिस्पर्धा, होगयी है हर प्रतिद्वंद्वी अलग अलग ऑफर दे रहा है कहीं किसी जाँच का चार सौ लग रहा है कहीं सात सौ। अभी हाल में कोरोना काल में ना जाने कितने कोरोना पॉजिटिव मरीज़ को पैसा लेकर निगेटिव रिपोर्ट थमा दी गयी नोएडा में इसका पूरा रैकेट पकड़ा गया था पचास हज़ार से ज़्यादा कोरोना पॉजिटिव को नेगेटिव बना दिया गया था। ऐसे ना जाने कितने लैब में खेल होता होगा, ना डॉक्टर को अनुभव है ना इसकी कोई रोक टोक हर जाँच रिपोर्ट को हम सत्य मान के ईलाज करवाने लगते हैं। अरे भाई वो मशीन है मशीन फिर से कह रहे हैं। ख़ुद जाँच रिपोर्ट पर लिखा होता है टेक्निकल कारणों से त्रुटि होसकती है या किसी अन्य कारण से। हर डॉक्टर ने एंटीबायोटिक दवाओं को च्यवनप्राश बना कर देना शुरू कर दिया है सामान्य बुखार हो या डेंगू सर मे दर्द हो या पेट में हाथ में चोट लगे या सर में सभी की सामान्य एंटीबायोटिक। एंटीबायोटिक रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है हमे रोगों से लड़ने की ताक़त प्रदान करती है पर जब यही एंटीबायोटिक दवाओं का हमारा शरीर आदि होजाएगा तो हमारा शरीर रोगों से कभी नही लड़ पाएगा। जो डॉक्टर आपको हर पीड़ा के लिए एंटीबायोटिक थमा देता हो उसके यहां जाना बिल्कुल बन्द करदे। कोशिश करें आयुर्वेदिक या यूनानी दवा खाने की ऐलोपैथिक दवाओं के सेवन से हम ना चाहते हुवे भी बीमार होसकते हैं। हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार के केमिकल, मिनरल, विटामिन्स, प्रोटीन और हार्मोन्स पाए जाते हैं और आपको तो पता ही है अगर केमिकल एक सामान्य ना हो तो दो विभिन्न प्रकार के केमिकल केमिस्ट्री से एक नया केमिकल जन्म ले लेता है उसी तरह हमारा शरीर है अगर जो रोग ना हो उसकी दवा की जाए तो वो अलग तरह का रोग पैदा कर देगा। शरीर जो जाँच और दवा का आदि ना बनाए कोशिश करें आयुर्वेदिक दवाओं और यूनानी दवाओं के सेवन की अगर एलोपैथिक को दिखाना हो तो किसी एमबीबीएस एमडी को हो दिखाए जिसे अनुभव हो और जो दक्ष हो अपने पेशे में नीम हक़ीम से बच के रहे। टेक्नोलॉजी हमे सब दे सकती है पर स्वास्थ्य नही दे सकती है मशीनों से ज़्यादा ख़ुद पर भरोसा करें साथ ही डॉक्टर की क़ाबिलियत पर ऐसे डॉक्टर के पास ना जाए जो जाँच के आधार पर आपका ईलाज शुरू करता हो और बात बात पर एंटीबायोटिक दवाओं का आपको आदी बनाता हो।

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