हम तो चले थे जानिब ए मंज़िल, पार्टीयां मिलती गई दरी बिछाते चले गएं।
मुस्लिम नेताओं को है वज़ीर ए आज़म बनने का जुनून
मुसलमानों का मुद्दा पुकारे इन्ना लील्लाहे वा इन्ना इल्लाहे राजेऊन
विधानसभा चुनाव जैसे जैसे क़रीब आरहा है मुस्लिम क़यादत और सियासत की आवाज़ बुलंद होने लगी है। लोगों को पिछड़े ग़रीबों का दर्द सताने लगा है पर मुसलमानों का दर्द नही उन्हें बस दर्द है मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति का। मुस्लिम वोट पूरा चाहिए पर सामाजिक हिस्सा शून्य देना है। अखिलेश यादव हो या ओवैसी मायावती हो या प्रियंका गाँधी योगी हो भुक्तभोगी सभी को मुस्लिम वोट चाहिए। हर पार्टी बा आवाज़-ए बुलंद कह रही है मुस्लिम को मिलाना है भाजपा को हराना है पर कोई ये नही कहता मुस्लिम को मिलाना है देश को बचाना है। कोई पार्टी देशहित की राजनीति नही कर रही अब राजनीति पिछड़े, दलित, क्षत्रिय, ब्राह्मण, अल्पसंख्यक की होकर रह गयी है। शिक्षा चिकित्सा सामाजिक सरोकर, न्याय और सुरक्षा एवं रोज़गार का मुद्दा किसी सी ग्रेड की अभिनेत्री के कपड़ो की तरह ग़ायब है। राजनीति अब ख़ानदानी विरासत होगयी है जिस सीट से हम चुनाव लड़ रहे हैं उससे हम ही लड़ेंगे या हमारे परिवार का सदस्य लड़ेगा अगर इस पार्टी ने टिकट नही दिया तो उस पार्टी से लड़ेगा पर हमारे परिवार का सदस्य ज़रूर लड़ेगा आख़िर उसे भी तो जन सेवा करनी है। कौन सी जन सेवा ? पाँच दस साल बाद सीबीआई ईडी जी जाँच वाली जन सेवा। इतना तगड़ा रिटर्न्स फिर हेरा फेरी वाला लक्ष्मी चिट फंड भी नही देता जितना तगड़ा राजनीतिक देती है। ग़रीबों के मुद्दे के साथ आते हैं ख़ुद को करोड़पति बनके निकल जाते हैं। चुनाव से पहले वो आपके चरणों में रहते हैं चुनाव के बाद आप उनके चरणों में। भाजपा को हराने की फ़िक्र हर पार्टी को सताती है पर जनता हित की बात कोई नही बताती है। मुसलमान तो किसी टेंट हॉउस की वो दरी है जो शादी और मातम दोनों में बिछाई जाती है। जब कोई मुस्लिम नेता मुसलमानों की बात करता है तो उनका दिल गार्डेन गार्डेन होजाता है जैसे ऐसा लगता है बस कल ही हिन्दुस्तान के सारे मुसलमान कलेक्टर बन जायेंगे रात ही रात मुसलमानों का घर अम्बानी का एंटीलिया होजाएगा। जोश खरोश इतना भर दिया जाता है कि लहू पम्प कैनाल बनकर लपालप हिचकौले मारने लगता है। हर मुसलमान ख़ुद को वज़ीर ए आज़म समझ कर आज़ीमो शान शहेंशाह समझने लगता है। खाने कमाने की चिंता छोड़ सकुशल सरकार बनवाने में लग जाता है जुम्मन वल्द मिम्मन भाइयों का जोश देख कर ऐसा लगता है कल ये हर गली चौराहे पर शपथ ही लेंगे। मुसलमानों के हक़ की बात करते करते अगर किसी ग़ैर मसलक के मुस्लिम को अपनी तरफ़ आता देख ले तो उस वक़्त यही निकलता है आगया, देवबंदिया, शीयवा, बरेलविया, इत्यादि ये नही कहते आगया मुसलमान, पर इन्हें चिंता मुसलमानों की है भाजपा को हराने की है रंग बिरंगे हर वैराटी के मुसलमानों को चिंता मुसलमानों की है। कभी शिया सुन्नी कभी सैय्यद ग़ैर सैय्यद कभी देवबंदी बरेलवी तो कभी किसी बात पर आपस में लड़ने वालों को चिंता मुसलमानों की है। कौन से मुसलमान जो ख़ुद एक नही है जिनका ना कोई दमदार नेता है ना ही कोई विज़न। मुद्दाविहीन मुस्लिम सियासत करने वाले मुस्लिम नेताओं से ये मुसलमान ये भी नही पूछते हैं भाई आप चुनाव जीतने के बाद हमारे लिए क्या करेंगे ? पिछड़े दलितों का कोटा है विश्विद्यालय है आपका क्या है ? उन्हें आरक्षण मिला है आपको क्या मिला है ? हमारे बच्चों को हमे शिक्षा चिकित्सा सुरक्षा में कितना न्याय मिलेगा ? जो आपके हमदर्द बनेंगे वही आपके लिए सरदर्द भी बनेंगे। आपको उकसायेंगे लड़ाएंगे सोशल मीडिया से लेकर ज़मीनी स्तर तक आपका उपयोग करके हीरो बनेगा जिसका दंश आप और आपका परिवार झेलेगा। कोई पार्टी कोई नेता आपको आपका हक़ नही दिला सकते जबतक आप ख़ुद से उसे हासिल ना करें, शिक्षा हासिल करने के लिए जज़्बा होना चाहिए जो आप मे है नही अच्छी चिकित्सा के लिए पैसा चाहिए पैसे के लिए अच्छी नौकरी या व्यापर और उसके लिए चाहिए शिक्षा जो आप हासिल नही करना चाहते क्योंकि आपको नेता जो बनना है सरकार बनवाना है चाहे परिवार भूखा मर जाए पर पार्टी की अलम्बरदारी से पीछे नही हटना है। जिंदगीभर गली चौराहों पर चाय की दुकानों पर फालतू की चर्चा करनी है राजनीतिक ग़ुलामी और नेता जी ज़िन्दाबाद भईया जी ज़िन्दाबाद करना है तालीम से मतलब नही आपस में बनती नही पर बनना आपको क़ौम का वज़ीर ए आज़म है। पहले एक हो, मुद्दे एक हो विज़न एक हो उसके बाद आप क़ौम का दर्द बांटे तो अच्छा लगेगा। खाए का ठिकाना नही नहाए के तड़के
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