सैय्यद की कास्ट नही शादियों का टेलिकास्ट होगया है इसके बिना शादी नही होगी!

अल्लाह ने क़ुरआन में बस लफ़्ज़े मुस्लमीन से हमारी रहनुमाई की है, ना कि शिया-सुन्नी से। ये तो हमने ज़माने में आने के बाद बना लिया उसी तरह सैय्यद, ग़ैर-सैय्यद का भी शरीयत में कोई हुक़्म नही है ये हमने ख़ुद से बना लिया है। ना क़ुरआन से कोई इसकी दलील है ना हदीस से, ये सैय्यद ग़ैर सैय्यद का फ़र्क़ इंसानों का बनाया हुआ है। आज कल ये चलन बहुत ज़्यादा बढ़ गया है सैय्यद; ग़ैर-सैय्यद का लोग शादियां नही करते हैं। ऊँच नीच का फ़र्क़ हो गया है, ऐसा लगता है ग़ैर-सैय्यद अछूत हैं, उनसे शादी करने से किसी रोग में मुब्तिला हो सकते हैं। जबकि इस्लाम में शादी का हुक़्म है, सैय्यद ग़ैर-सैय्यद का बिल्कुल नहीं। ये ज़माने ने सैय्यद ग़ैर-सैय्यद बना दिया है जिसका इस्लाम और शरीयत से कुछ लेना देना नही है। सैय्यद कौन होते हैं और कैसे होते हैं ? ये बहस, बहुत आम है कि सैय्यद मौला अली अलैहिस्सलाम की नस्ल से हैं। सैय्यद किसे कहते हैं और क्यों कहते हैं! अरब में बहुत सारे क़ाबिले थे उसमे से एक क़बीला था *क़ुरैश* क़ुरैश के क़बीले का ताल्लुक़ रसूलल्लाह (स.अ.व.) से है, इसी क़बीले से जनाबे अब्दे मनाफ़ के बेटे, और उनके बेटे अबू...