हर काम में "इंशाअल्लाह" ज़रूर कहें। नामुमकिन को मुमकिन करता है इंशाअल्लाह
भाई ये काम कर देना आज "इंशाअल्लाह" कर देंगे, यार कल सुबह कॉलेज चलना है "इंशाअल्लाह" चलेंगे। बस हम अब कॉलेज के अंदर दाख़िल होने वाले हैं, "इंशाअल्लाह" दाख़िल हो जाएंगे। मेरी शादी होने वाली है "इंशाअल्लाह"। यार ये तू हर बात मे इंशाअल्लाह क्यों कहता है ? क्या होजाता है इंशाअल्लाह कहने से ? बात बात पर इंशाअल्लाह कहता रहता है, अरे भाई ये सब हम लोगों ने बस में है फिर इंशाअल्लाह बात बात पर क्यों कहता है ? कॉलेज जाना हो, इंशाअल्लाह, सोने जाना हो, इंशाअल्लाह, शादी करना हो इंशाअल्लाह, कुछ सोचता हूँ तो इंशाअल्लाह। अरे भाई इतना इंशाअल्लाह मत कहा कर क्या होजाएगा अगर तू इंशाअल्लाह नही कहेगा आफ़त नही टूट पड़ेगी तुझपर।
साहिल : क्या तुम जानते हो ये एक लफ़्ज़ कितना ज़्यादा पॉवरफुल है ? क्या तुम्हें पता है इस एक लफ़्ज़ से जनाबे सुलेमान की हसरत पर पानी फिर गया था ? क्या तुम्हें पता है बनी इसराइल के मग़रूर और मोमिन भाई का वाक़्या ? इंशाअल्लाह वो लफ़्ज़ है जो ख़ुदा की ज़ात को हर काम मे शामिल करता है बिना ख़ुदा के एक पत्ता भी नही हिल सकता।
चार शख़्स ऐसे गुज़रे जिनकी हुकूमत पूरी दुनिया पर थी दो मोमिन और दो मग़रूर ज़ालिम बादशाह। जनाबे सुलेमान और जनाबे ज़ुल्क़रनैन मोमीन, नमरूद और बख़्तून नस्र (फ़िरऔन) काफ़िर थे।
जनाबे सुलेमान की हुकूमत जिन,चरिंद्र,परिन्द्र, इंसान हैवान हवा पानी दुनिया की हर शय पर थी। जनाबे सुलेमान की कई सारी बीबियाँ थी उन्होंने सोचा इतनी सारी बीबियाँ है सभी से औलादे कसरत से होगी जो हुकूमत और मुल्क के काम आएगी लेकिन उन्होंने "इंशाअल्लाह" नही कहा जनाबे सुलेमान से तर्के औला हुआ जिसकी वजह से उन्हें किसी बीवी से कोई औलाद नही हुई एक से हुई भी तो वो भी मरी हुई। जनाबे सुलेमान को बहुत अफ़सोस हुआ फिर उन्हें याद आया कि उन्होंने इरादा तो किया पर "इंशाअल्लाह" कहना भूल गए, फौरन बारगाह ए इल्लाही में तौबा की , अल्लाह ने उनकी तौबा क़ुबूल की और उन्हें कई सारी औलादें अता की।
क़ुरआन की सूरह क़लम की आयत 16 से 33 तक मे फलों से लदे हुवे बाग़ के बारे में गुफ़्तगू हुईं है जिसमे सारा बाग़ आसमानी बिजली से जलकर राख़ होगया था। लफ़्ज़ ए इंशाअल्लाह की एक और दास्तान सुनिए।
इस्लाम से क़ब्ल सर ज़मीने यमन में शहर से चौबीस मिल के फासले पर एक देहात था जिसका नाम सरवान था। उस मे फलों से लदा हुआ बहुत हरा भरा बाग़ था जिसका मालिक़ एक ख़ुदाशिनास शख़्स था जो मज़लूमों और ग़रीबों की मदद करता था और जो भी मुनाफ़ा होता उसमे से अपनी ज़रूरत का हिस्सा निकाल कर ग़रीबो में बांट देता था। जब उसका आख़िरी वक़्त आया तो उसने अपने बेटों को नसीहत की, ग़रीबों का हक़ इस बाग़ मे से पहुंचाना उनकी मदद करना। जब उस शख़्स का इंतेक़ाल होगया तो उसके मग़रूर बेटो ने कहा भला हम अपने बाग़ में से इन ग़रीबों को क्यों दे एक भी तिनका इन भूखे नंगे ग़रीबों को नही दिया जाएगा। जब फल लग गए तो उन लोगों ने कहा हम रात के अंधेरे में लोगों की नज़रों से बचते बचाते जाकर सारे फल तोड़ लेंगे और उन लोगों को भनक तक नही लगेगी जो वो आएंगे हमसे मांगने ये हमारी मेहनत का फल है। हमने मेहनत की है कल इसका सिला मिलेगा वो ग़ुरूर में "इंशाअल्लाह" कहना भूल गए और इस ख़ुशी से रात होने का इंतेज़ार करने लगे कि जब आधी रात गुज़र गई ये अपने बाग़ की तरफ़ बढ़े तो क्या देखते हैं सारा बाग़ सियाह राख़ हो चुका है ना वहां कोई पेड़ है ना कोई फल है। उन्हें अपनी ग़लती का एहसास हुआ, उन्होंने अल्लाह से तौबा की, बेशक़ हमारे अख़्तियार में कुछ भी नही है जो कुछ देता है अल्लाह ही देता है और अल्लाह जिसे चाहे बेशुमार अता करता है। ख़ूब तौबा की और कहा "इंशाअल्लाह" अल्लाह अब इससे भी बेहतर हमे बाग़ात अता करेगा जिससे हम ग़रीबों की मदद करेंगे और उन्हें उनका हक़ अता करेंगे। अल्लाह ने उन्हें हरे भरे बाग़ात फिर सेअता किए, ये उनके ग़ुरूर की सज़ा थी जो वो कहते थे ये बाग़ात हमारी मेहनत से हरे भरे हुवे हैं अल्लाह की अता से नही।
बस इसीलिए जिस काम का इरादा करो तो इंशाअल्लाह ज़रूर कहो बिना इंशाअल्लाह के काम होते हुवे भी बिगड़ जाता है। कभी ख़ुद की दौलत,ताक़त,रुतबे,शोहरत ओ सेहत पर ग़ुरूर ना करे।
हर काम की शुरुआत बिस्मिल्लाह से करें, सेहत,दौलत,रुतबा,शोहरत, कुछ मिलने पर अल्लाहमदुलील्लाह कहें, अल्लाह की बनाई हुई चीज़ों को देखे तो सुभानअल्लाह कहें, किसी शख़्स की किसी ख़ूबी को देखे तो माशाअल्लाह कहे और जब किसी भी काम का इरादा करें तो इंशाअल्लाह ज़रूर कहें। इससे आपका काम आसान होगा और कोई परेशानी भी नही आएगी। शुक्र अल्लाहमदुलील्लाह। say Allahamduliillah For Everything
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