अतुल कुमार श्रीवास्तव जी ने बताया कर्बला इंसानियत की दर्स गाह है

इंसान को बेदार तो हो लेने दो
हर क़ौम पुकारेगी हमारे हैं हुसैन
बेशक़ ईमाम हुसैन अस को मानने, समझने के लिए किसी क़ौम किसी मज़हब किसी फ़िरके की शर्त नही है, शर्त है इंसान होने की। जब आज लोग अपने बाप भाई पर नही रोते हैं उनके बलिदान को भूल जाते हैं तब उसी दुनिया में चौदह सौ साल पहले कर्बला की दर्दम्य, करुणामय घटना को याद करके आँसू बहाते हैं। कर्बला में हज़रत हुसैन और उनके इकहत्तर साथियों को बड़ी बेरहमी से तीन दिन का भूखा प्यासा शहीद कर दिया गया था जिसमे हज़रत ईमाम हुसैन का छह माह का बच्चा अली असग़र भी शामिल था। ग़ौर करने वाली बात है ना कर्बला की जंग हिन्दू की वजह से हुई ना रामायण महाभारत मुसलमानों की वजह से, जब जब किसी धर्म में उसके अनुष्ठानों को उसके कर्तव्यों को और धर्म की शिक्षा को बदला गया है तब तब बुराई पर अच्छाई पर विजय प्राप्त करने के लिए एक मसीहा उनके ही बीच से उठा है। कर्बला में भी मुसलमान थे, क़लमा पढ़ने वाले रसूलुल्लाह और उनकी शरीयत को मानने वाले लेकिन लोभी वैभिचारी, आतंकवादी यज़ीद ने ख़ुद को ख़लीफ़ा बनाने के लिए नवासे रसूल को बड़ी बेरहमी से तीन दिन का भूखा प्यासा शहीद करवा दिया था,और ख़ुद को मुसलमानों का ख़लीफ़ा कहता था। कर्बला की घटना एक दर्स है हमारे लिए की दुश्मन की तादात चाहे जितनी भी हो अच्छाई से जीत नही सकती। अतुल कुमार श्रीवास्तव जी सरकारी ऑफिसर है साथ ही वो एक नेक़ दिल इंसान भी है जो सर्वधर्म समभाव पर भरोसा करते हैं। अतुल कुमार श्रीवास्तव जी ने बहुत खूबसूरत अल्फ़ाज़ों से ईमाम हुसैन का परिचय दिया है उन्होंने  बताया ईमाम हुसैन पर केवल मुसलमान ही नही हिन्दू ने भी अपनी जान न्यौछावर की है आइये पढ़ते हैं अतुल कुमार श्रीवास्तव जी का पैग़ाम ए इंसानियत
मोहर्रम यूँ तो अरबी कैलेंडर का पहला महीना है लेकिन आज कर्बला और मोहर्रम शायद एक दूसरे के तर्जुमानी हो गए है, मोहर्रम का नाम सुनते ही हर एक के ज़हन में इमाम हुसैन की वो अज़ीम शहादत याद आ जाती है, जो उन्होंने इस्लाम और इंसानियत की बक़ा के लिए दी थी।
कर्बला किसी जंग का नाम नहीं, वाक़यात-ऐ-कर्बला किसी ख़ास जगह तक महदूद नहीं, और ना ही कोई रस्म-ओ-रिवाज है और ना ही कोई त्योहार.. 
कर्बला नाम है दर्स-ए-ज़िन्दगी का, हक़ की आवाज़ बुलंद करने का, ज़ुल्म के ख़िलाफ़ उठ खड़े होने का, हक़ और बातिल के फ़र्क़ को समझने का।
इमाम हुसैन एक शख़्सियत होने के साथ साथ एक सोच का नाम है, जो किसी धर्म, मज़हब, फ़िरके और संप्रदाय तक महदूद नहीं।
इमाम हुसैन की क़ुर्बानी दुनिया भर के मुसलमानों के लिए ही नहीं, तमाम इंसानियत के लिए प्रेरणा का स्रोत है। हुसैन पूरी इंसानियत के हैं। यही वज़ह है कि यजीद के साथ जंग में लाहौर के एक ब्राह्मण रहब दत्त के सात बेटों ने भी शहादत दी थी, जिनके वंशज ख़ुद को गर्व से हुसैनी ब्राह्मण कहते हैं।मोहियाल दत्त ब्राहमण ख़ुद को हुसैनी ब्राहमण कहते हैं। ये मुहर्रम में मातम भी करते हैं। फिल्मकार सुनील दत्त के अलावा पत्रकार बरखा दत्त हुसैनी ब्राह्मण हैं। इन लोगों का दावा है कि इनके पूर्वज राहिब दत्त अपने बेटों के साथ कर्बला इमाम हुसैन की मदद के लिये गये थे। दत्त ब्राह्ममण फख़्र से राहिब दत्त के लिए कहते हैं, 

'वाह दत्त सुलतान, हिंदू का धर्म, मुसलमान का ईमान, आधा हिंदू, आधा मुसलमान।'

ग्वालियर के सिंधिया परिवार की तरह बहुत से क्षत्रिय राजपरिवारों में भी बाक़ायदगी से ताजियादारी की जाती है।
तमाम हिंदू शायर गुज़रे हैं जिन्होंने मर्सिए और नौहे के ज़रिए इमाम हुसैन के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की हैं। कुल मिलाकर इमाम हुसैन के बहाने सांस्कृतिक रिश्ते मज़बूत हुए हैं और लोग क़रीब आए हैं

आज भी बहुत सी बस्तियां है जहाँ पर सिर्फ हिन्दू ताजियादारी के जरिये इमाम हुसैन को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते है। 
महात्मा गांधी ने कहा था- 'मेरा विश्वास है कि इस्लाम का विस्तार उसके अनुयायियों की तलवार के ज़ोर पर नहीं, इमाम हुसैन के सर्वोच्च बलिदान की वज़ह से हुआ। मैंने हुसैन से सीखा की मज़लूमियत में किस तरह जीत हासिल की जा सकती है! इस्लाम की बढ़ोतरी तलवार पर निर्भर नहीं करती बल्कि हुसैन के बलिदान का एक नतीजा है जो एक महान संत थे!'
तभी एक शायर मौलाना मोहम्मद अली जौहर ने कहा है कि,
क़त्ल-ए-हुसैन अस्ल में मर्ग़-ए-यज़ीद है,
इस्लाम ज़िंदा होता है हर क़र्बला के बाद।
इमाम हुसैन की भारत में मक़बूलियत और आदमियत के अलमबरदार के तौर पर पहचान बग़ैर किसी क़ौम और मिल्लत या मज़हब और फ़िरके के तौर पर है।

इस कुल कायनात पर जब भी कोई किसी ज़ुल्म के खिलाफ एहतेजाज करता है, वो इमाम हुसैन के अनुयायियों में शामिल हो जाता है, आज पूरी दुनिया मे जिस तरह इंसानियत को पामाल किया जा रहा है, ज़रूरी है कि कर्बला के मकसद को सबके सामने रखा जाए और आदमियत के इस पैग़ाम्बर कि नसीहतों से इस्लाह ली जाए।
हिंदुस्तान में मोहर्रम इत्तेहाद का मरकज़ रहा है। इसीलिए किसी शायर ने कहा है कि
दरे हुसैन पर मिलते हैं हर ख़्याल के लोग, 
ये इत्तेहाद का मरकज़ है आदमी के लिए। 
इमाम हुसैन की क़ुर्बानी दुनिया भर के मुसलमानों के लिए ही नहीं, तमाम इंसानियत के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। हुसैन कुल इंसानियत के हैं, और कुल कायनात में जहाँ भी कोई भी हक़ की सदा बुलन्द करता है, ज़ुल्म की मुख़ालफ़त करता है, वो हुसैन का अनुयायी बन जाता है।


अतुल कुमार श्रीवास्तव
निरीक्षक जनसंपर्क अधिकारी
एडीजी लॉ एंड ऑर्डर
लखनऊ

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