करोड़ों पर भारी तरबीयत की सवारी (संस्कार) भाग-1

शहर का सबसे अमीर घराना था मग़रूर आलम का। मग़रूर साहब का एक ही एकलौता बेटा था ,रोशन और वो चाहते थे उसकी शादी किसी अच्छी लड़की से होजाए। मग़रूर साहब के एक भाई थे मशकूर आलम, दोनों भाइयों में बनती नही थी। मशकूर साहब गुर्बतज़दा तो मग़रूर साहब दौलत से हैरतज़दा थे। बेशुमार दौलत लेकिन भाई का उसमे कोई हक़ नही।
शहर का दूसरा सबसे अमीर घराना था मैमुना बेग़म का, शौहर का नाम रफ़क़त अली था। रफ़क़त साहब कम पढ़े लिखे थे लेकिन मैमुना बेग़म एमबीए की हुई थी। दोनों की मोहब्बत की शादी थी जिनसे उन्हें एक औलाद थी ज़ीनत नाम की। ज़ीनत अपने बाप के घर की ज़ीनत थी। मैमुना ने गुर्बत में ज़िन्दगी गुज़ारी थी और अपने दम पर अमीर बनी थी, शौहर की एक छोटी सी नाश्ते पानी की दुकान को "ज़ीनत रेस्टॉरेंट" की पूरी चैन बनाने वाली औरत का नाम था मैमुना। मैमुना दो बहने थी, मैमुना और सफ़ीना, सफ़ीना सलीक़े की होशियार फरमाबरदार औरत थी। सफ़ीना ग़रीब ज़रूर थी लेकिन उन्होंने अपनी बच्ची नरगिस को "संस्कार" दिए थे। अब चूंकि दोनों की बच्चियां जवान होने लगी । क़िस्मत एक बार दोनों को फिर से मिलाने पर आमादा थी। जिस कॉलेज में मग़रूर आलम का बेटा रोशन पढ़ता था उसी कॉलेज में रोशन भी पढ़ता था। रोशन को ज़ीनत से मोहब्बत होगयी थी। रोशन का एक बेस्ट फ्रेंड था सफ़ीक़ कि बहन नरगिस की दोस्त थी। नरगिस के पास इतने पैसे नही थे कि वो ब्रांडेड कपड़े पहने, सलीक़े से हिजाब लगाए हुवे नरगिस शरीफ़ों की तरह कॉलेज आती और फिर घर चली जाती घर जाकर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती उसी से अपना ख़र्च पूरा करती। ये बात नरगिस को नही पता थी कि रोशन उसका चचाज़ाद भाई है। रोशन ज़ीनत सफ़ीक़ जब भी कॉलेज में होते क्लास रूम में नरगिस के पहनावे रहन सहन का मज़ाक उड़ाते। मुश्किल से वो कॉलेज पढ़ने के पैसे जुटा पाई थी। सफ़ीना ने गुर्बत में अच्छी परवरिश की थी, ग़रीबी थी लेकिन दिल की बहुत अमीर थी नरगिस वो किसी परेशानहाल को देखती तो उसकी मदद कर देती।
एक बार उसने अपनी सारी फीस एक परेशान हाल बच्चे को दे दी अब उसके पास ख़ुद की एग्जाम फीस देने के पैसे नही थे। एग्जाम फीस जमा करने मे बस दस दिन बचा था और फीस पन्द्रह हज़ार के क़रीब थी बहुत मुश्किल से उसने एक एक रुपए जोड़ कर वो फीस जुटाई थी। वो पैसा उसने उस बच्चे को देकर उसकी माँ की जान बचा ली थी, उसकी बीमार माँ के लिए दवाई के पैसे नही थे। नरगिस ने सोचा किसी की जान बचाना पढ़ाई से बढ़ कर है और वो पढ़ाई ही क्या जो किसी के काम ना आए। लेकिन उसने वो पैसा किसी की मदद को देकर ख़ुद को परेशानी में डाल लिया था अब उसके पास ख़ुद की फीस के पैसे नही थे, क्या करेगी वो कैसे फीस जमा करेगी ??
To be Continued.....

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