मोजिज़ा ए हिदायत, जब मिली साहू जी को रौज़ा ए मौला अली से बशारत

मुहर्रम का आगाज़ हो चुका है। सफ़ीना ए निजात का काफ़िला निकल चुका है। कश्ती ए निजात बस आपके पास पहुंचने वाली होगी। 
यही वो नाम ए हुसैन अस है जिसकी बशारत अल्लाह ने दी। यही वो हुसैन अस है जिनका झूला फरिश्तों के सरदार हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने झुलाया। यही वो हुसैन अस है जिनका नाज़ रसूलअल्लाह स.अ उठाया करते थे। यही वो हुसैन अस है जिनके नाना रहमत-उल-लील-आलमीन दोनों जहां के मालिक है बाबा शेरे ख़ुदा वली ए ख़ुदा मौला अली अस हैं। जिनकी माँ सिद्दिक़ा और ताहिरा और जन्नत की औरतों की सरदार दुखतर ए रसूल स.अ शहजादी फ़ातिमा ज़हरा है। जिनके भाई और जो ख़ुद भी जवानाने जन्नत के सरदार है। जिनके लिए हदीस ए कुद्दुस है अल्लाह फ़रमाता हैं। कि मैं एक छुपा हुआ ख़ज़ाना था, मैंने चाहा मैं पहचाना जाऊ तो मैंने नूर ए पंजतन अलैहिस्सलाम को हज़रत आदम से दो हज़ार साल पहले ख़ल्क़ किया। ये वो हुसैन है जो जिनकी पैदाईश पर अल्लाह ने फरमाया ऐ फरिश्तों ज़मीन पर जाओ आज मेरे हबीब मेरे नबी का नवासा तशरीफ़ लाया है उसकी मुबारक़बाद दे दो। जो फ़ितरुस को बाल ओ पर अता कर दें। जो राहिब की क़िस्मत को पलटा कर ला वालद को 7 औलाद अता कर दें। जो मुबाहिला की शान ए जो नातिक ए क़ुरआन हैं। 
जिनकी शान में आयत ए ततहीर नाज़िल हुई। जिसके दर पर दुश्मन भी आकर शिफ़ा पाता है। हूर बनना है या हुर्मुला ये आपको तय करना है।

अल्लाह क़ुरआन में फ़रमाता है हम जिसे चाहे गुमराही में छोड़ दें और जिसे चाहे हिदायत अता कर दें। (अल क़ुरआन)

मोजिज़ात अम्बिया और नबी ने हमेशा दिखाया जब जब लोगों ने गुमराही अख़्तियार की अल्लाह की जानिब से मोजिज़ा नाज़िल हुआ। जो अक़्ल को हैरान और ज़हनों को परेशान कर दे। उसका सबसे बड़ा मोजिज़ा है हिदायत अता करना। अल्लाह ने जिसे हिदायत अता कर दी फिर उसे कोई ग़ुमराह नही कर सकता और जिसे गुमराही में छोड़ दिया उसकी हिदायत कोई नही कर सकता है।

ऐसे ही एक मोजिज़ा हुआ सूरज साहू के वालिद के साथ भी जिन्हें अल्लाह ने बारगाहे अहलेबैत अस में हाज़िरी, ज़ाकिरी का शरफ़ बख्शा जिसकी नस्ल को गुमराही की तारीक़ से निकाल कर हिदायत की रोशनी में दाखिल कर दिया।

सूरज साहू आज हक़ीक़ी मोहिब ए अहलेबैत अस हैं। जब आज दुनिया गुमराही की तरफ भाग रही है तब इस दौर में सूरज साहू का दामन ए अहलेबैत अस को पकड़ कर सीरत ए अहलेबैत पर चलना किसी मोज़िज़े से कम नही। इसका गवाह मैं ख़ुद हूँ। सूरज साहू और आशीष साहू की मोहब्बत पर ज़रा भी शक़ नही। जो अहलेबैत की हम्द ओ सना पूरी तवानाई के साथ करते हैं।

तमाम दुश्वारियां भी आई। जिस क़ौम से वो निकल कर आए थे जिस मज़हब से वो आए उनके लिए आसान ना था। सामाजिक बहिष्कार के साथ सामाजिक असुरक्षा का भी डर था। लेकिन जो अहलेबैत अस के दर पर आया उनका मोहाफिज़ ख़ुद अल्लाह है। 

आज सूरज साहू पुख़्ता अक़ीदे के साथ हुसैनी कहलाते हैं। जिनके परिवार ने अपने आपको अहलेबैत अस के नाम वक़्फ़ कर दिया है।

शीराज़ ए हिन्द ज़िला जौनपुर से नगर की उत्तरी सीमा पर अहियापुर (भंडारी स्टेशन) रोड से बाई तरफ जाने पर डॉ उपाध्याय के सामने मौजूद है वो हिदायत का मोजिज़ा

आइए जानते है कैसे हुआ हिदायत का मोजिज़ा।


सलामुन अ़लैकुम मोमनीन
मेरा नाम सूरज है मेरे परिवार में मेरी वालिदा एक बड़े भाई है और दो बहन है मेरे भाई नाम आशीष उर्फ सोनू है
और हमारी फ़ैमिली को 25 साल से ज़्यादा हो गए अहलेबैत अ़लैहिमुस्सलाम को मानते हुवे। मेरे वालिद मरहूम को 8 साल की उम्र में एक मलून ने बर्फ़ी में कुछ खिला दिया था जिसकी वजह से मेरे वालिद की अक़्ल सही से काम नही करती थी,और मेरे वालिद हर जगह गए जिसने जहां बताया वहां चले गए। लेकिन फिर भी ठीक न हुए फिर मेरे वालिद हम्ज़ा चिश्ती बाबा के यहां गए वहां कुछ ठीक हुए उसके बाद मेरे वालिद के कुछ शिया दोस्त थे उन्होंने कहा कि इनसे बड़ा भी एक दर है शाह के पंजे (रौज़ा ए मौला अली अस)  वहां आपका काम और जल्दी से हो जाएगा। शाह के पंजे जाने के बाद मेरे वालिद अच्छी तरह से ठीक हो गए और मेरे वालिद मरहूम का अक़ीदा अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के लिए और बढ़ने लगा और मेरे वालिद साहब ने नहजुल बलाग़ह पढ़ी और मौला अली(अ.) के मुरीद हो गए, हम लोगों की पैदाइश से पहले मेरे वालिद मरहूम पंजे शरीफ़, सदर इमामबारगाह जाया करते थे, फिर हुसैन टेकरी(36 मर्तबा), नजफ़े हिंद जोगीपुरा(72 मर्तबा) गए और अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के दर से मेरे वालिद साहब ने जो भी मांगा वो मिला और जिस किसी का कोई काम न होता था तो मेरे वालिद मरहूम दरे अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम पर भेजते थे और उनकी मुश्किलें हल हो जाती थी और मेरे वालिद ने हम सबको बचपन से ही नादे अली, मुनाजत, तस्बीह, दुआ याद करा दिया था।
1995-96 से हमलोग नदीम सरवर का नौहा सुनते आए है और आज भी सारे पुराने नौहे हम लोग सुनते है
और मेरे वालिद मरहूम हर मजलिस व जुलूस में भी जाया करते थे और आज हम लोग भी मजलिसों मातम व जुलूसों में जाया करते हैं
और अल्हम्दुलिल्लाह आज भी मेरा घर पूरी तरह से मुहम्मद व आले मुहम्मद अलैहिमुस्सलाम को मानते भी है और उनकी बताई हुई बातों पर अमल करने की भी कोशिश करते है।

ये है सूरज साहू के वालिद का हिदायत का मोजिज़ा। बेशक अल्लाह जिसे चाहे इज़्ज़त अता करें जिसे चाहे ज़िल्लत अता करे। आज सूरज साहू के हाथ में ऐसा हूनर दिया है जिसकी बदौलत वो हुबहु किसी रौज़े, मस्जिद, इमामबारगाह, की शबी बना सकते हैं। इनकी दुकान पर एक अलम लगा हुआ है। ना ये ख़ुद गाना सुने ना दूसरे लोगों को सुनने दें। अल्लाह ने सूरज साहू के परिवार को वो अज़ीम तोहफ़ा अता किया जिसके लिए माँ का एक होना और बाप का नेक होना शर्त होती है। यानी मोहब्बत ए अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम। 

अगर आपके साथ भी कोई मोजिज़ा हुआ हो तो हमे ज़रूर बताएं।

सूरज साहू द्वारा बनाई गई कर्बला के ईमाम हुसैन अस के रौज़े की शबी

Comments

  1. Mashallah, jazakumullah, stay blessed Suraj Bhai,
    You aqueeda and your artwork is really appreciative.

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