इस आग (तनाव) में इंसान निखर जाता या बिखर जाता है!!
इंसान का गुस्सा,हसद,जलन,और बेसरहद फ़रमाइश लतादात आरज़ूओ की ख़्वाहिश उसे तनावग्रस्त, फ़िक्रमंद करती है। टेंशन और डिप्रेशन दो ऐसी आग है जिसमे इंसान या तो निखर जाता है या फिर बिखर जाता है। कभी कभी तनाव भी कुछ ऐसे रास्ते दिखा देता है जिसे हम देख नही सकते। हमारी क़ुव्वत और तवानाई को ये तन्हाई से ही ताक़त मिलती है। जब इंसान महफ़िल में होता है तो ख़ुदा से दूर होता है और जब इंसान तन्हा होता है तब ख़ुदा के क़रीब होता है। शैतान का सबसे बड़ा हथियार औरत और दौलत है, जिसके वार से एक भी इंसान नही बचता है। औरत की लज़्ज़त और और दौलत ओ शोहरत में लतादात ज़बरदस्ती की बरक़त इंसान को ख़त्म कर देती है।
ईमाम अली अस. ने फरमाया, इंसान कभी क़ुदरती मौत नही मरता उसे दूसरों से जुड़ी बावस्ता उम्मीदें,ख़्वाहिशें मार देती है।
हम दूसरों से मदद की आस में अपनी क़ाबिलियत को खो देते हैं। जिस काम को करने का हुनर होता है उस काम को छोड़ दूसरे के काम को करने का जज़्बा पाल लेते हैं। ऊपर वाले है हर किसी को किसी एक ख़ास मक़सद से पैदा किया है। हमे जितना मिलता है उसमें हम सुकून से नही रहते और अच्छा और अच्छा इससे बेहतर की ख़्वाहिश हमे सौगात में ज़िल्लत ओ रुस्वाई अता करती है और फिर हम टेंशन और डिप्रेशन का शिकार होजाते हैं।
इंसान को उसके पिछले किसी ना किसी एक वाक़ये ने इतना बदल दिया होता है की वो कभी वैसा नही हो पाता जैसा वो पहले था।
तनाव भी ज़िन्दगी को संवारने के लिए बहुत ज़रूरी है। एक आग पर पानी में मिट्टी के बर्तन पर अंडा और आलू दोनों उबलते हैं, आग,पानी,बर्तन और वक़्त सब वही, लेकिन अंदर से नर्म अंडा कठोर बन जाता है और ऊपर से कठोर आलू नर्म बन जाता है। उसी तरह ये तनाव है, जिसे ग़ुरूर रहता है दुनिया फतह करने की ख़्वाहिश रहती है वो आलू जैसा बन जाता है और जिसके पास खोने को कुछ नही होता वो अंडे जैसा बन जाता है। क्योंकि इस ज़माने ने उसके साथ जो सुलूक़ किया था ये उसका असर दिखा रहा है। ज़ुल्म ओ ज़्यादती सहने वाला अंडे की तरह कठोर हृदय का बन जाता है और ज़ुल्म ओ ज़्यादती ज़िन्दगी भर करने वाले का दिल अपने आख़िरी वक़्त में नर्म पड़ जाता है।
आग लोहे जैसे कठोर समान को पिघला कर उसका आकार बदल देती है वही आग मिट्टी जैसी नरम चीज़ को कठोर बना कर उसका आकार बदल देती है। लोहे का आकार आग पर गर्म करके बदला जा सकता है लेकिन नरम मिट्टी को आग पर पकाने के बाद नही बदला जा सकता।
बस अब आपको अपनी इस आग (टेंशन, डिप्रेशन) की राह को चुनना है आप आलू बनना पसन्द करेंगे या अंडे जैसे बनेंगे,लोहे का आकार लेंगे या मिट्टी से मुलाक़ात करेंगे। फ़ौलाद बनके ज़माने को ख़त्म करना है या औलाद (मददगार,नेक) बनके ज़माने के लिए जीना है। फ़ौलाद की औलाद (ज़ालिम के मुक़ाबले हमदर्द नेक) बनके ज़माने का मददगार बनना है या फिर अपनी अना और ग़ुरूर में बेकार बनना है। जिनके पास कुछ नही होता वो हासिल करना चाहते हैं और जिनके पास सबकुछ है वो क़द्र करना नही जानते हैं। अक़्ल के मिज़ान पर उन चीजों को ना तौले जिसे अल्लाह ने मुक़र्रर किया है।
आप वो करते हैं जो आप चाहते हैं लेकिन होता वो है जो अल्लाह चाहता है। उसका प्लान सारे प्लान पर हावी है। ना किसी को वक़्त से पहले मिला है ना तक़दीर से ज़्यादा। फिर आप किस चीज़ से इतनी उम्मीद लगा बैठे हैं ?
सबको नही बस अपने रब को राज़ी करें, रब राज़ी तो सब राज़ी।
💯 Truth
ReplyDeleteHighly inspired
ReplyDeleteLive your best life
I’m with you