बोएंगे बबूल और उम्मीद आम की लगाएंगे,हम भी कुछ ऐसे शादी करते जाएंगे।

जैसे ही दौरे जदीद के साल ए जदीद का आग़ाज़ हुआ शादीयों का सिलसिला शुरू होगया। शादी वैसी शादी अब ना रहकर कॉन्ट्रैक्ट मैरिज रह गयी है। ख़ूब ख़िलाओ, पिलाओ फ़िज़ूल ख़र्ची करो और जब मन हो छोड़ दो।

क्या वजह है कि आज की शादीयों में बरक़त ख़त्म होगयी ? क्या वजह है कि लाखों करोड़ों ख़र्च करके भी हम सुकुनीयत अख़्तियार नही कर पाते ?
क्या वजह है जो शादीयाँ टूट रही है ?

उसकी वजह है शैतानियत को बढ़ावा देना। निक़ाह के नाम पर बरहना नमहरहम में नुमाईश लगाना। 

अदब ए इस्लामी के कुछ उसूल है जिसमे अल्लाह ने बरक़त रखी, रसूलअल्लाह (स.अ) फ़रमाते हैं फ़िज़ूल ख़र्ची मत करो,हमने दिल खोल के फ़िज़ूल ख़र्ची की और क़र्ज़ के बोझ तले दब गए, फिर सुनने में आया फलां का तलाक़ होगया, लोग पूछते हैं क्यों ? 

जवाब मिलता है लड़की को कुछ आता नही था ससुराल वालों का कहना नही मानती थी, लड़का ग़रीब था उसकी आमदनी कम थी। 
शादी करना बहादुरी नही है, बहादुरी आपकी तरबीयत में है, जो आप बोएंगे वही आप काटेंगे। जैसा आपने अपने बच्चों को सीखाया पढ़ाया होगा बच्चा वही करेगा, आप ग्रेंड वेडिंग की आड़ में अपने बच्चों की खामियों को छुपाना चाहते हैं। ताकि शादी की चकाचौंध में लोग आपसे आपके बच्चे के मुत्तालिक सवाल ना करें, और जब बात बिगड़े तो लोग कहें अरे इतनी अच्छी शादी की ज़रूर ग़लती दूसरे की है। 

आप जिस फटेहाल तरबीयत का फ़िज़ूल ख़र्ची करके रफू करना चाहते हैं वो सारे आम आपको बरहना (नंगा) कर देती है। आप शादी एक बार करेंगे लेकिन आपने अगर बच्चे की तरबीयत अच्छी नही की है तो जिस इज़्ज़त को बचाने के लिए आपने लाखों करोड़ों ख़र्च क़ार डाले शादी के फौरन बाद आपकी वही इज़्ज़त सारे आम गली,चौराहों, नुक्कड़,मकान में नीलाम होती रहती है। लोग चर्चा करने लगते हैं, अरे फलां की बेटी ऐसी थी उनका बेटा ऐसा था इतनी कमी थी फिर लोग आपके छप्पन भोग को याद नही करते आपकी लग्ज़री शादी को आपके मेन्यू को आपकी सजावट को याद नही करते, याद रहती है तो बस आपने जो बच्चे को सिखाया पढ़ाया है जो तरबीयत दी है जो अदब ओ तहज़ीब सिखाई है वो।  फिर ना आपका रुतबा काम आता है ना आपकी लाखों करोड़ों की लग्ज़री शादी। 

पुरानी हवेली पर नया प्लास्टर करने की जगह एक बार हवेली (बच्चों) की नए सिरे से मरम्मत(तरबीयत) कर दो।  इज़्ज़त शादी के बाद शुरू होती है और आप यौम ए अव्वल (एक दिन) की शादी से अपनी इज़्ज़त बनाना चाहते हैं। जब तक आप सही तरबीयत नही देंगे बच्चा सही नही बनेगा। अगर आप शादी से पहले अपने बच्चों के सामने घर ख़ानदान, दोस्त रिश्तेदार की बुराई करते हैं। बच्चों की छोटी छोटी ग़लतियों पर पर्दा डालते है,यही छोटे पत्थर आगे चलकर ग़लतियों का पहाड़ बन जाते हैं। जिन्हें हटाने में ज़िन्दगी गुज़र जाती है।

हज़रत अली अस. ने फ़रमाया इंसान पहाड़ों से नही छोटे छोटे पत्थरों से ठोकर खाता है,इसीलिए छोटी छोटी ग़लतियों से बचे जो आगे चलकर ग़लतियों का पहाड़ बन जाए।

अल्लाह ने सूरह नूर आयात बत्तीस (32) में फ़रमाया "ऐ मोमिनों (सच्ची राह पर चलने वाले) तुम अपने बच्चों का निक़ाह करो अगर तुम तंगदस्त हुवे तो ख़ुदा तुम्हे अपने फ़ज़लों करम से मालामाल कर देगा।

ईमाम जाफ़र सादिक़ अस. फ़रमाते हैं जो इस डर से शादी नही करता कि उनके पास कुछ नही है वो यक़ीनन अल्लाह पर शक़ करता है। 

ऐसी शादी का क्या फ़ायदा जो क़र्ज़ लेकर दूसरों से पैसे उधार लेकर,मांग के की जाए ? साधारण सा निक़ाह करो सबको नही अपने रब को ख़ुश करो,रब राज़ी तो सब राज़ी।

अदब ए इस्लामी में दावत का बहुत महत्व है उसके साथ साथ एहतराम भी है। आज शादीयों से बरक़त इस वजह से भी ख़त्म होगयी की हमने अपनी काहीलियत, सुस्ती और आलसीपने में तंगदस्त जगहों पर ला तादात भीड़ को अपनी शादीयों का हिस्सा बनाना शुरू कर दिया, तुम भी आजाओ हाँ तुम भी आजाओ। पचासों तरह के लज़ीज़ खाने बनवा दिए, लोग खाने से ज़्यादा लूटा रहे। यहूदियों की तरह एहतराम ख़त्म करके बफ़ेट सिस्टम लागू कर दिया। जब तक बैठ के खाना खिलाया जाता था एक खाने में ही इतनी लज़्ज़त होती थी कि उससे ही लोग शिक़म शेर होकर ढेर होजाते थे। अब तमाम तरह के आइटम है, भेड़ बकरी की तरह खा रहे हैं। खाने पर टूट रहे हैं बर्बाद कर रहे हैं, जबकि हमारे यहां बैठ के खाने में बरक़त है। दस्तरख़्वान तआम (बैठ के खाना) अदब ए इस्लामी और मुसलमान की सुन्नत है। अल्लाह ने दस्तरख़्वान की फ़ज़ीलत में एक पूरी सूरह नाज़िल कर दी सूरह माइदा (ख्वां) फिर भी लोगों को नही समझ में आता। फिर जगह जगह कहते फिरेंगे हमसे क्या ग़लती हुई जो बरक़त ख़त्म होगयी रिज़्क़ तंग होगया। ग़ौर ओ फ़िक़्र करें जवाब आपके अमाल में ही छुपा हुआ है।

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