ज़िन्दगी एक "चक्रव्यूह"
हम ज़िन्दगी को अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं और क़िस्मत अपने हिसाब से, हम वो चाहते हैं जो नसीब में नही होता और नसीब वो चाहता है जो हमारी चाहत में नही होता, हम चाहते हैं सब काम होजाए और ख़ुदा चाहता है ज़िन्दगी आसान होजाए। नसीब में जो लिखा है उसे कोई मिटा नही सकता और नसीब का रिज़्क़ कोई खा नही सकता।
कुछ ऐसी ही सच्ची घटना पर आधारित ये "चक्रव्यूह" है। शुरू करते हैं आज से चक्रव्यूह सीरीज़।
अठारह साल पहले एक युवक विदेश कमाने जाता है, दो औलाद है। विदेश में सब कुछ अच्छा चलता है इज़्ज़त शोहरत दौलत सब कुछ है पर नसीब में कुछ और ही लिखा हुआ है। एक रोज़ परिवार में कुछ आपसी कलह होजाती है और वो शख़्स विदेश से अपने देश आजाता है।
हालात कुछ ऐसे बनते है उसे अपना घर छोड़ कर कहीं और बसेरा जमाना पड़ता है। जैसा कि आप भी जानते है विदेश जाना आसान है पर वहां से आकर दोबारा जाना बहुत मुश्किल, इमरजेंसी में शख़्स ये सोच कर आता है कि कुछ दिन की बात रहेगी। उस शख़्स का बॉस छुट्टी देने से इनकार करता है और कहता है हम तुम्हे छुट्टी नही दे सकते हैं। वो शख़्स कहता है मेरा घर जाना ज़रूरी है तुम मेरा बोनस और सैलरी दे दो वो कहता है अगर यहां से गए तुम्हारे पीएफ का और ग्रेज्युटी का पैसा तुम्हे नही मिलेगा। वो शख़्स परेशान होकर कोर्ट में केस कर देता है कोर्ट से उसे घर जाने की इजाज़त मिल जाती है वो शख़्स घर सैलरी लेकर आजाता है। उस शख़्स के मालिक और उसके बीच कोर्ट कहता है तुम्हारा आपसी मामला है अगर तुम्हारा मालिक सहमती देता है तो तुम्हे तुम्हारे पीएफ की रक़म और बाक़ी पैसा मिल जाएगा जो इंडियन क़रीब 22 लाख बनता है।
वो शख़्स अपने मुल्क़ आजाता है, यहाँ आने के बाद हालात बदल जाते हैं और इसी तरह डेढ़ साल गुज़र जाता है।
दो औलाद है, तीसरे का कोई प्लान नही है। शौहर बीवी है ज़ाहिर है ताल्लुक़ात भी क़ायम होगा, बीवी हमीला (प्रेग्नेंट) होती है। बतौर उस शख़्स के हम लोग ये बच्चा चाहते ही नही थे प्रोटेक्शन के जीतने तऱीके थे उसे आज़मा लिया लेकिन कहते है ना जो नसीब में लिखा है वो मिलकर रहेगा। डिलीवरी का वक़्त आता है, डिलीवरी के वक़्त डॉक्टर कहता है ऑपरेशन होगा बिना ऑपरेशन बच्चा पैदा नही होगा इससे माँ और बच्चे दोनों की जान को ख़तरा रहेगा। वो शख़्स कहता है जो ईश्वर ना उम्मीदी को उम्मीद में बदल दे और तमाम रुकावट के बावजूद अपना रास्ता बना दें वही ईश्वर हमारे बच्चे की भी नॉर्मल डिलीवरी करवाएगा, डॉक्टर कहता है कोई सवाल नही है नॉर्मल डिलीवरी का,हम रिस्क नही ले सकते आप फॉर्म पर साइन कर दे जो भी होगा सब आपकी ज़िम्मेदारी। केस क्रिटिकल होजाता है, ऑपरेशन थिएटर में जाते हैं, एक घंटे बाद वापस आते हैं और कहते हैं मुबारक़ हो आपको बेटा हुआ है। वो शख़्स कहता है नॉर्मल हुआ है ना ?
डॉक्टर शॉकड होजाती है कि तुम्हे कैसे पता कि नॉर्मल ही होगा ? वो कहता है मुझे अपने ईश्वर पर पूरा भरोसा है जो दुनिया की तमाम बेरिकेटिंग तोड़ कर इसे दुनिया में भेज सकता है उसके लिए क्या मुश्किल।
तभी उस शख़्स के पास विदेश से उसके मालिक की कॉल आती है, अहमद तुम्हारा बोनस भेज रहे हैं 12 लाख इंडियन हुआ है बाक़ी पीएफ तुम्हारा यहाँ आने के बाद मिलेगा। वो शख़्स आसमान की जानिब देखने लगता है, जिसके जेब में इतना पैसा नही होता कि वो ऑपरेशन के लिए हामी भरे और डॉक्टर से कह सके आप ऑपरेशन कीजिए, अचानक उसके पास इतना पैसा आना किसी अजूबे से कम नही। वो भी तब जब रास्ते बंद हो चुके हो, मालिक नाराज़ हो और आप अपने मुल्क में हो। ये किसी चमत्कार से कम नही था।
किस तरह ईश्वर अपने बंदों के लिए रास्ता बनाता है, ये उसका एक उदाहरण हैं। सिर्फ उस बच्चे को ज़मीन पर उतरना रहता है उसके लिए किस तरह का चक्रव्यूह रचता है। ऐसे ही हमारी ज़िन्दगी में हर घटना है जो निर्धारित है और बिना उसकी मर्ज़ी के कुछ नही होगा। हम चाहे कितनी कोशिश कर ले जो नसीब में लिखा है वो मिलकर रहेगा। लोगों की साज़िशों से,धोखे,फ़रेब से परेशान मत हो, जो लिखा है वो होकर रहेगा आप चाहे कितनी भी कोशिश कर लें।
ऐसे ही किसी और सच्ची घटना के "चक्रव्यूह" के साथ जल्द ही मिलते है। तब तक अपना ख़्याल रखें, और ईश्वर पर ऐसे भरोसा रखें जैसे अपनी मौत पर, सही समय आने पर आपको सब मिलेगा, इज़्ज़त शोहरत दौलत, रिज़्क़,मौत हयात,अमीरी ग़रीबी, दुख,दर्द,बीमारी, सब उसी के अख़्तियार में है इंसान बस कठपुतली है। लोगों के साथ भलाई करें, अच्छा करें,आपके हिस्से में भी वही आएगा। जो जैसा करेगा वैसा भरेगा, ईश्वर के चक्रव्यूह में सब फंसे हुवे हैं। ज़िन्दगी के चक्रव्यूह का रचयिता ईश्वर है, आप जो करेंगे वैसा ही भरेंगे।
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