फिलीस्तीन की परेशानी क़ौम ए सबा के अज़ाब का सबब बनी

आज का फिलीस्तीन जिस ज़मीन पर बसा है कल वहाँ क़ौम ए सबा आबाद थी। अल्लाह के अज़ाब की वजह से उस ज़मीन पर क़यामत तक ऐसे ही मुसीबत ओ परेशानी, भुखमरी और खाने की किल्लत जारी रहेगी।फिलीस्तीन क्यों परेशान है, वहाँ इतनी भूखमरी क्यों हो रही है, उसको समझने के लिए हमे पहले की क़ौमों के हालात और उनकी बदमाशी को समझना बहुत ज़रूरी है।

अल्लाह जब नेमतें अता करता है तो बे शुमार अता करता है। 

वो आपकी दौलत आपके रुतबे को नही देखता वो आपके दिल ओ ईमान और आपकी नीयत को देख कर अता करता है।

ऊपर वाला बस इतना चाहता है इंसान बन कर रहो एक दूसरे की मदद करो एक दूसरे का ख़्याल रखो और जब कोई क़ौम इस से दूर होती है उसपर ग़ज़ब अज़ाब नाज़िल होता है। ये उनके किये की सज़ा होती है जो मुसल्सल चलती रहती है, और अल्लाह का अज़ाब एक बार जिस ज़मीन पर नाज़िल हो जाता है, क़यामत तक कि आने वाली नस्ल उस अज़ाब की ज़द में आजाती है। उनपर आफ़त ओ मुसीबत बनी रहती है। यहाँ तक कि वो इसी मे फ़ना हो जाते हैं। जो ज़मीन एक बार अल्लाह की ना फ़रमानी का सबब बनती है फिर उसपर बसने वाली तमाम क़ौमे उस अज़ाब से ख़ाली नही होती।

आज का फिलीस्तीन जो कभी यमन का हिस्सा था, और इसी मिस्र,यमन,जॉर्डन, सीरिया, बाबुल (ईराक़-ईरान) की सर ज़मीन पर सबसे ज़्यादा अम्बिया अस. आए और इसी ज़मीन पर सबसे ज़्यादा अज़ाब भी नाज़िल हुआ जिसकी ज़द में आजकी क़ौम भी है।

ऐसे ही एक क़ौम थी "क़ौम ए सबा"

क़ौम ए सबा यमन की ज़रख़ेज़ ज़मीन पर आबाद थी, ये ऐसी क़ौम थी जिसको नेमतें ख़ुदा भर भर कर मिली थी।

हज़रत दाऊद अस. और हज़रत सुलेमान अस. की हुकूमत के बाद अल्लाह का ख़ास लुत्फ़ो करम किसी क़ौम पर हुआ तो वो थी क़ौम ए सबा जिनका ज़िक़्र क़ुरआन की सूरह सबा में आयत 15 से 19 तक हुआ है।

इस क़ौम को ज़मीनी जन्नत का ख़िताब हासिल था। बड़े बड़े पहाड़ हरे भरे बाग़ स्वच्छ हवा शुद्ध पानी।

ये क़ौम इंजीनियरिंग का बेहतरीन नमूना थी, इस क़ौम के पास आज की उन्नत तकनीक से जैसी तकनीक थी।

खेती करने का इनका तरीक़ा नायाब था, सबसे पहले दुनिया में बांध बनाने वाली यही क़ौम थी जो बांध बना कर खेती करती थी।

आज ही कि तरह इनके पास हरे भरे क़रीने से सजे हुवे पार्क थे, झूला था, नक़्क़ाशी दार दीवारें घर, थे। 

एक मेन गेट था। एक बांध था जो सबसे बड़ा था जिसे मुआरिब था। ये समझ ले इनके जैसी सभ्यता किसी की नही थी। नक़्क़ाशी दार ईमारत, बड़े बड़े पहाड़ों को काट कर महल बनाना उसे सजाना। 

साफ सुथरी सड़क हर तरफ इंजीनियरिंग का बेहतरीन नमूना था। इतनी हरी भरी क़ौम थी इतनी उन्नत तकनीक से सराबोर क़ौम थी लेकिन अल्लाह की ना फ़रमानी और रसूल अस. के इनकार और ग़रीबों के हक़ से इंकार ने इनपर अज़ाब नाज़िल कर दिया। 

इस क़ौम के अज़ाब की वजह बनी तआम यानी खाने की बे क़दरी  अल्लाह की दी हुई नेमतों का ना शुक्र करना।

एक शख़्स ने हज़रत ईमाम जाफ़र सादिक़ अस. से पूछा सूरह सबा की आयत 19 से क्या मुराद है ?

आपने फ़रमाया (तर्जुमा) "पस उन्होंने उसपर कहा परवरदिगार हमारे सफ़र को दूर दराज बनादे और इस तरह अपने नफ़्सो पर ज़ुल्म किया तो हमने उन्हें कहानी बनाकर छोड़ दिया और टुकड़े टुकड़े कर दिया।

हज़रत ईमाम जाफ़र सादिक़ अस. ने फ़रमाया इस आयत से मुराद ऐसे लोग थे जिनकी आबादियाँ एक दूसरे से दूर थी, यह ऐसी आबादियाँ थी जिसके नीचे से नहरे जारी थी। उनके पास माल ए दुनिया बहुत ज़्यादा थी, लेकिन उन लोगों ने शुक्र ए ख़ुदा करने की जगह उसकी नेमतों का इंकार किया।
 जिसके लिए अल्लाह ने सूरह रअद की आयत 11 में फ़रमाया (तर्जुमा) " बेशक़ ख़ुदा किसी क़ौम की हालत उस वक़्त तक नही बदलता जब तक वो ख़ुद अपने को तब्दील ना करें"

ये लोग ग़रीबो से इस क़द्र हसद रखते थे कि कहते थे "ख़ुदाया हमारे सफ़रो के दरमियान फ़ासला ज़्यादा कर दे ताकि ग़रीब लोग उमरा और सरवत मंदो के हमराह सफर ना कर सकें।

क़ौम ए सबा में 13 शहर आबाद थे और हर शहर के वालों के लिए अल्लाह ने अलग अलग पैग़म्बर भेजे। ये लोग अल्लाह की नेमतों का शुक्र अदा नही करते थे।

इस क़ौम को नेमत इस क़दर मिली थी, इतने हरे भरे बाग़, फल सब्ज़ी। इतनी कसरत से अता हुई थी कि ये जो गेंहू की आटे की रोटी बनाते उसी का इस्तेमाल अपने, अपने बच्चों के पैखाने साफ़ करने में करते थे।

इस क़दर ना शुक्र किया कि उसी रोटी से पैखाना साफ़ करते करते उसका पहाड़ बना दिया।

अपने बाग़ात, अपनी खेती, अपने सुन्दर शहर पर और अपने बनाए हुवे बांध पर बहुत गुमान था। ये कहते थे इस बांध को पानी तो क्या ख़ुदा भी नही तोड़ सकता। अल्लाह के हुक़्म से सहराई चूहों ने बांध में सुराख़ करना शुरू किया और उधर से बारिश शुरू हुई बांध नीचे से खोखला होगया। दरिया के पानी के साथ बारिश का पानी मिलने से बांध टूट गया और इनके ग़ुरूर को चकनाचूर कर गया। देखते ही देखते सारा शहर उसकी आबादी, खेती, बाग़ात सब तबाह होगए।

कुछ महीने बाद जब क़हर थमा तो ना इनके पास खाने के लिए फल थे ना साफ़ पानी। ना खेती बची थी ना मवेशी।

अल्लाह की क़ुदरत की जिस गेंहू की रोटी से ये लोग पैखाना साफ कर करके उसका पहाड़ लगा दिए थे उसपर ज़रा भी आँच नही आई। फिर ये लोग भूख प्यास दे बेहाल हुवे उसी पैखाना आलूदा रोटी को खाने लगे, उसे खाने के लिए लाइन लगती, और जो गंदा पानी था उसे पीते थे।

उस तरह एक क़ौम जो सरसब्ज़ थी बाग़ात थे। नेमतों का अंबार था। तिजारत इनका बच्चा बच्चा करता था। दूर दूर तक सबा के फल सब्ज़ी मवेशी की मांग थी वो एक बार मे तबाह और बर्बाद होगयी।

लोगों को जब ढील मिलती है दौलत ओ शोहरत मिलती है वो ग़रीबों को भूल जाते हैं और सोचते हैं अब इन ग़रीबों को क्या मुँह लगाना।

हज़रत अली अस. ने फ़रमाया अल्लाह ने अमीरों के रिज़्क़ में ग़रीबों का हक़ क़रार दिया है, जो इससे मुकर गया उसने ख़ुदा को नाराज़ किया।


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