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Showing posts from August, 2020

बेटा अली अकबर मार जाएगा ये ज़ईफ़ बाप तेरे जाने से , मुझे कुछ नही दिखता तेरे जाने से

अल्लज़ी खल्क़ल मौत वल हयात लि यबलुव-कुम अय्युकुम अहसनु अ-म-ला (सूरह मुल्क़ आयत 2)  ' तर्जुमा : वह हर चीज़ पर क़ादिर है जिसने "मौत" और ज़िन्दगी को पैदा किया ताकि तुम्हे  आज़माये कि तुम मे से काम में (नेकी की राह में )  सबसे अच्छा कौन है,और वा ग़ालिब बड़ा बख़्शने वाला है । क़ुरआन पाक़ की इस आयत पर ग़ौर करें तो अल्लाह फ़रमा रहा है उसने पहले "मौत" को पैदा किया । मतलब जब ज़िन्दगी का कोई अस्तित्व नही था तभी ये सुनिश्चित होगया था एक दिन मरना है और मरना निश्चित है इसीलिए इस आयत में ज़िन्दगी से पहले मौत का ज़िक्र आया है । जैसा कि मैंने पहले बताया था इमाम हुसैन (अ) की विलादत (जन्मदिन) पर ही आसमानी फ़रिश्ते जनाबे जिबरईल हज़रत मोहम्मद s.a.w.w. के पास आते हैं और इमाम हुसैन की शहादत की ख़बर देते हैं । किस तरह इमाम हुसैन को कर्बला में 3 दिन का भूखा प्यासा शहीद किया जाएगा कौन कौन लोग इमाम हुसैन के साथ रहेंगे क्या क्या होगा सारी बातें जनाबे जिबरईल पहले ही बता देते हैं । क़ुरआन की इस आयत और कर्बला के वाक़ये से ये तो निश्चित होगया अल्लाह ने सारी चीज़ें पहले से तय कर रखी है आप देखिए पैदाईश के ही दिन शहाद...

आसमानी फ़रिश्ते "जिबरईल" ने ऐसा क्या कह दिया जिसे सुन कर हज़रत मोहम्मद और हज़रत अली रोने लगे

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अल्लामा हुसैन वाएज़ काशेफ़ी लिखते हैं 3 शाबान 4 हिजरी को इमाम हुसैन (अ) की विलादत के बाद अल्लाह ने जिब्राईल (आसमानी फ़रिश्ते) को हुक़्म दिया कि ज़मीन पर जाकर मेरे हबीब हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.व.व) को मेरी तरफ़ से हुसैन की विलादत (पैदाईश) की मुबारक़बाद दे दो और साथ ही इमाम हुसैन की शहादत का वाक़या बता कर ताज़ियत (पुरसा) भी अदा कर दो  । जनाबे जिबरईल बा हुक्मे रब्बे जलील ज़मीन पर आए और उन्होंने हज़रत मोहम्मद (स) की ख़िदमत में पहुँच कर मुबारक़बाद पेश की । उसके बाद हज़रत मोहम्मद से फ़रमाया रा रसूले ख़ुदा आपको अल्लाह की जानिब से इमाम हुसैन की शहादत की इत्तेला दी जाती है । रसूले ख़ुदा हैरान अभी अभी तो हुसैन की विलादत (पैदाईश) हुई है और शहादत की भी ख़बर आगयी । हज़रत मोहम्मद साहब ने जनाबे जिबरईल (आसमानी फ़रिश्ते) से पूछा जिबरईल माजरा क्या है मेरे हुसैन की शहादत क्यों और कैसे होगी  ?  जनाबे जिबरईल ने अर्ज़ की या रसूले ख़ुदा बारोज़े जुमा 10 मुहर्रम सन 61 हिजरी को इराक़ के कर्बला का सहरा(रेगिस्तान और जंगल) जब आपके फ़रज़न्द इमाम हुसैन (अ) को बे जुर्म ओ ख़ता मैदाने कर्बला में कुंद ख़ंजर ( ऐसा जानवर ...

क़िस्मत का "घड़ा" शहज़ादा दर पर है खड़ा

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कहते हैं क़िस्मत का लिखा कोई टाल नही सकता । नेकी कभी ज़ाया नही जाती अल्लाह जानता है अपने बन्दों को कब क्या देना है । वो ना किसी को मग़रूर करने वाली अमीरी अता करता है ना मायूस होने वाली ग़रीबी । अल्लाह सत्तर माँओ से अफ़ज़ल है एक माँ अपने बेटे का दर्द बर्दाश्त नही कर सकती भला जो सत्तर माँओ से अफ़ज़ल हो यो  अपने बन्दों को कैसे टूटने  देगा । अल्लाह ने जब रूह ख़ल्क़ की थी तभी अपने बन्दों से अहद ले लिया था कि तुम्हे रूहे ज़मीन पर मुख़्तसर सी ज़िन्दगी के साथ भेज रहा हूँ । तुम्हे भूख, प्यास औलाद ग़ुरबत बीमारी तंगहाली से अज़मायेंगे जो मेरा बंदा होगा जो सब्र करेगा उसको उसका अज्र मिलेगा । एलिन और सिजलीन (अच्छे और बुरे नाम ए अमल को जहाँ लिखा जाएगा) में तुम्हारी हर कारस्तानी दर्ज होगी जो नेक अमाल करेगा अल्लाह उसको बेहिश्त अता करेगा और जो बद अमाल करेगा उसका ठीकाना जहन्नुम है । आज ऐसी ही एक वाक़या आप लोगो को बताते हैं कि अल्लाह जो करता है बेहतर करता है और अल्लाह कैसे अपने नेक बन्दों को मन्ज़िल ए मक़सूद तक पहुँचाता है । किसी देश में एक बादशाह रहता था बादशाह था । बादशाह ज़ालिम और लालची था एक बार वो श...

क्या इमाम हुसैन अ. स की अज़ादारी का "हमारी अर्थव्यवस्था" में योगदान है ?

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इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार साल का पहला महीना मोहर्रम होता है. इसे 'ग़म का महीना' भी माना जाता है. 12वीं शताब्दी में ग़ुलाम वंश के पहले शासक क़ुतुबुद्दीन ऐबक के समय से ही दिल्ली में इस मौक़े पर ताज़िये (मोहर्रम का जुलूस) निकाले जाते रहे हैं. उनके बाद जिस भी सुल्तान ने भारत में राज किया, उन्होंने 'ताज़िये की परंपरा' को चलने दिया. हालांकि वो मुख्य रूप से सुन्नी थे, शिया नहीं थे. पैग़ंबर-ए-इस्‍लाम हज़रत मोहम्‍मद के नाती हज़रत इमाम हुसैन को इसी मोहर्रम के महीने में कर्बला की जंग (680 ईसवी) में परिवार और दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था. कर्बला की जंग हज़रत इमाम हुसैन और बादशाह यज़ीद की सेना के बीच हुई थी. आपको ये भी रोचक लगेगा मोहर्रम में मुसलमान हज़रत इमाम हुसैन की इसी शहादत को याद करते हैं. हज़रत इमाम हुसैन का मक़बरा इराक़ के शहर कर्बला में उसी जगह है जहां ये जंग हुई थी. ये जगह इराक़ की राजधानी बग़दाद से क़रीब 120 किलोमीटर दूर है और बेहद सम्मानित स्थान है. कर्बला में इमाम हुसैन की मज़ार पर लाखों की तादाद में शोक मनाते शिया मुसलमान मोहर्रम महीने का दसवाँ दिन स...

शुक्र है इस बार "मुहर्रम" नही होगा अज़ादारी होगी

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हर साल मुहर्रम होता था इस बार इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की अज़ादारी होगी । इसबार रियाकारी और मक्कारी नही अज़ादारी होगी । इतिहास ख़ुद को दोहराता है जैसे पहले ख़ुलूस ए दिल से कम लोगो के दरमियान बिना लाउड स्पीकर बिना "नेताओ"  के अज़ादारी होती थी वो अज़ादारी होगी । हाँ हम मुहर्रम मना रहे थे अज़ादारी नही कर रहे थे । मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है हम भी नए लिबास नए औतार में मुँह में गुटखा पान रख कर लड़कियों के सामने अपने रुतबे की नुमाईश करना हँसी ठहाका लगाना मजलिसों मे ना बैठ कर बाहर महफ़िल सजाना अंजुमन बाज़ी गुट बाज़ी रियाकारी हसद,झूठ,किना,ज़िना सबको आम कर देने वाला मुहर्रम नही होगा इस बार अज़ादारी ए इमाम हुसैन होगी । गिरियाँ ओ ज़ारी होगी ख़ुलूस ए दिल से नौहा मातम मजलिस होगी कोई दिखावा नही होगा किसी की जी हुज़ूरी नही होगी शबबेदारियों के नाम पर सियासती हुजूम नही होगा मंच नही सजेगा राजनीति आक़ा नही आयेंगे ख़र्चा नही चलेगा चंदा नही मिलेगा । लोगो को इमाम हुसैन की अज़ादारी का ग़म नही है इन तमाम चीज़ों के बंद होजाने का ग़म है । आप किसी जुलूस में किसी मौलवी मौलाना को नही देखेंगे पर वो आपको...

अपनी रियाकारी से अज़ादारी की अज़मत ख़त्म कर ही दी । अल्लाह की नाराज़गी का सबब बन गयी तुम्हारी रियाकारी 😔

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मुहर्रम यू तो ये ग़म का महीना होता है पर कुछ शिया इसे राजनीति का अड्डा बना दिये है  चंदा लेने की होड़ और आधुनिकता दिखाने में ये मजलिस, जुलूस , इमामबाड़ों, मस्जिदों का अहतराम भूल जाते हैं भूल जाते है कि ये वो दर है जहाँ इंसान का ज़ेहन भी गंदा नही जा सकता वहाँ ऐसे ऐसे लोगो को लेकर पहुँच जाते है जो ना पेशाब कर इस्तानजा करता हो ना उसे अहतराम हो कि ये कौन सी जगह है । चंदा लेने वाले और देने वाले दोनों सिर्फ अपने फायदे के लिए ये कार्य करते हैं उन्हें इससे क्या लेना देना की अज़मत ए अज़ा क्या है क्या अल्लाह और शहज़ादी (स) इनके इस बेहूदा अमल को क़ुबूल करेंगी जिसे मन हो स्टेज पर चढ़ा लो जिसे मन हो रौज़े में घुसा लो सिर्फ इसलिए कि आपको वो चंदा देता है इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है कि वो कौन सी जगह है उस जगह की अज़मत कितनी है इससे कोई मतलब नही बस हमे अपने आपको अच्छा दिखाना है । क्या फ़ायदा है यार दुनिया ज़माने से चंदा लेने का ख़ुलूस ए दिल से आप छोटे से छोटा एहतमाम करें अल्लाह उसे क़ुबूल करेगा पर दिखावे की ईबादत और अज़ादारी से सिर्फ तुम अज़ीयत पहुंचा रहे हो ज़रूरी नही है मस्जिद इमामबाड़ों को इतना सजाने की । आ...

क्या हम अपनी बेटी/बेटे का घर उजाड़ रहे हैं ?

 बहोत तेज़ प्यास लगी है चलो कही चलते है कुछ खाते पीते हैं । गरीब और प्यास से बेहाल एक जोड़े ने सामने देखा एक व्यक्ति नारियल पानी बेच रहा है , चलो यार नारियल पानी पीते हैं उनके जेब में सिर्फ एक व्यक्ति के ही खाने का पैसा था लड़के ने सोचा क्यों ना बड़ा वाला नारियल ले जिसमे पानी के साथ साथ  नारियल का फल भी मिल जाये उन्होंने छांट कर एक बड़ा सा नारियल लिया सोचा इसमे से नारियल का फल भी निकलेगा पानी पिया उसका स्वाद थोड़ा कसैला लगा पर सोचा अंदर गोला होगा वो मीठा होगा जब पानी पी लिया और दुकानदार से कहा भइया हमे इसका फल निकाल कर दे दीजिए दुकानदार ने जैसे ही नारियल को फाड़ा उसमे से सफेद मीठे फल की जगह सड़ा हुवा फल निकला वो निराश और हताश होगये अब ना उनके पास पैसा था कि वो अपनी भूख मिटाते ना दुकानदार की इसमे कोई गलती थी चूँकि उस नारियल का चुनाव उन्होंने स्वयं किया था । यही हाल हमारे समाज का भी है हम अपनी बेटी की शादी करने जाते है तो पहले देखते है घर कितना बड़ा है, लड़के की कमाई कितनी है बड़ा घर बड़ी गाड़ी बड़े रुतबे और पैसे के चक्कर में हम ये भूल जाते है कि वो घर वो लोग कैसे हैं । आज सभी को डॉक्टर, इंजी...

सब्र और अल्लाह का शुक्र अदा करने से मुसीबत भी नेमतों में बदल जाती है ।

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शाहिद का मायूस चेहरा देख कर सना समझ गयी कि आज भी कही कोई नौकरी नही मिली । शाहिद एक कम्पनी में अकाउंटेंट थे कोरोना की वजह से नौकरी चली गयी थी और अब कोई नौकरी नही मिल रही थी 5 महीना होगया था घर बैठे हुवे । सना ने शाहिद के मायूस चेहरे से अंदाज़ा लगा लिया था कि आज ये कुछ ज़्यादा ही मायूस है और इस वक़्त कुछ कहना सही भी नही है । घर में खाने को कुछ नही था बच्चे रोज़ नए नए खाने की फ़रमाइश करते थे । जो बच्चे हमेशा लज़ीज़ खाना खाते थे आज वो दाल रोटी चावल खा रहे है धीरे धीरे वो सब भी ख़त्म होगया और अब तो कुछ भी नही था खाने को । सना एक पढ़ी लिखी और समझदार लड़की थी और लड़कियों की तरह अपना आपा खोने वाली और शौहर पर चीखने चिल्लाने वाली नही थी । वो जानती थी अगर इस वक़्त शौहर से कुछ कहा तो बात बिगड़ जाएगी या तो शाहिद डिप्रेशन के शिकार होजाएंगे या हमारे ताल्लुक़ात तल्ख़ होजायेंगे । एक ही दो दिन में घर में खाने के सारे समान ख़त्म होगए अब तो खाने के भी लाले आगए । सना ने सब्र से काम लिया दीनी और दुनियावी बातों से जो पढ़ा जो सीखा था अब उसे अमल करने का वक़्त था । अपने चेहरे पर बिना कोई शिकन लाए या घबराए शौहर और बच्चों के सामने...

ज़िंदगी बचाने वाले मेरी दुनिया उझाड़ गए

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रात को लेटता था तो सूरह सीखाते थे नमाज़ के एहकाम बताते थे दीन की बातें बताते थे इतना सिखाया की सब सीख गया ,अब तुम्हे नमाज़ सीखना है नमाज़ पढ़ना है । हर अच्छी बातें सिखाई बुराई से हमेशा रोका ,मेरी इबादत की इब्तेदा हो चुकी थी जिस तरह चिड़िया अपने बच्चे को दाना चुगाती है मेरे नाना ने दीनी और दुनियावी ईल्म को सीखाया । बचपन से ही मुझे गोद लेकर अपने बेटे की तरह पाला पैसे से लेकर मेरी हर छोटी बड़ी ज़रूरत को पूरा किया । पढ़ाया लिखाया । जो चाहा वो दिलाया । आज भी गिरता था तो आप आकर हाथ थाम लेते थे । परेशान होता था तो कहते थे क्यों परेशान हो अभी हम ज़िन्दा है ना । बीमार पड़ता था रात रात भर जाग के मेरी देखभाल करते थे । एक बाप की तरह मेरे साया बने रहे । नौकरी से लेकर रिटायरमेंट तक कभी गिरने नही दिया और आज ऐसे वक़्त छोड़ के चले गए जब सबसे ज़्यादा आपकी ज़रूरत थी । जब दुनिया की मुश्किलात से लड़ते लड़ते हारने लगा जब आपके सहारे आपके साथ कि ज़रूरत थी तब छोड़ दिया । अब कौन मेरी मदद करेगा कौन कहेगा जो करना हो करो हम है पैसे की फ़िक़्र मत करना । घर के अकेले हो इतना मज़बूत बनो की कोई तुम्हें गिरा ना सके । मेरा बाज़ू थ...